लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि तुम जितनी भागदौड़ बाहर कर रहे हों, जितनी भी हाय-तौबा मचा रहो हों, जितना भी उथल-पुथल मचा रहो हों, जितना भी द्वंद्ध है, क्लेश है, द्वैष है, राग-द्वैष जो भी आपके जीवन में है इन सबका कारण तुमने खुद ने रचा है और अभी भी रच रहे हो। एक बार अन्तर्मुखी होकर अपने अन्दर दखों, क्या वाकई ये सब तुम्हें परम शांति देने वाले हैं? सुख देने वाले है? नहीं। परम शांति और सुख का केन्द्र हमारे भीतर है। अतः भीतर झांको।
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