ध्यान क्या है?
‘‘ध्यान वह शक्ति है जो आपके अंदर एकाग्रता लाती है। एकाग्रता से आप ऊर्जा के एक केंद्र पर आते हैं और उस ऊर्जा से आप ब्रह्मांड में व्याप्त समष्टि ऊर्जा के साथ यूनियन में आ जाते हैं। उस ऊर्जा के साथ एकात्म होते हैं और अंत में इन सारी ऊर्जाओं के परे जाकर, ऊर्जा रहित, निष्क्रिय, न्यूट्रल, निर्गुण ब्रह्म की स्थिति पर पहुंच जाते हैं। वही स्व का बोध है, वही आत्मज्ञान है, वह ही मुक्ति है।"
नमस्कार। आज हम समझेंगे कि ध्यान क्या है? बहुत बेसिक नॉलेज कि ध्यान क्या है। देखिए, ध्यान अग्नि है, मैं कहता हूँ कि ध्यान अग्नि है, बशर्त आपको ध्यान करना आना चाहिए। ध्यान वह अग्नि है जो आपके भीतर के सारे विकारों को जलाकर भस्म कर देती है। आपकी आत्मा के ऊपर जितना भी आवरण चढ़ा हुआ है, ध्यान रूपी अग्नि उसे जला कर नाश कर देती है और पीछे बच जाता है शुद्ध परम चैतन्य स्वरूप। जैसे सोने को आग में डालने से उसके ऊपर लगी सारी अशुद्धियां निकल जाती है और पीछे रह जाता है शुद्ध सोना। सोने के ऊपर जो भी आवरण लगा हुआ रहता है, वह अग्नि जल देती है और अंत में, शुद्ध सोना बच जाता है। ठीक इसी प्रकार से, ध्यान से शुद्धतम चेतना बच जाती है जो आपका असली स्वरूप है। इस मायने में ध्यान अग्नि है जो जलाकर सारे आवरणों को भस्म कर देती है। लेकिन आपको ध्यान करना आना चाहिए। ध्यान को किसी गुरु से समझे। किसी गुरु से लेकर, स्थापित करें तो आपका ध्यान ज्यादा पावरफुल होगा।

हम बात करेंगे कि ध्यान करने से क्या होता है और ध्यान कैसे करना चाहिए। तो चलिए देखते हैं। जब कोई ध्यान करता है तो उसको पहले यह समझ होनी चाहिए कि मुझे ध्यान क्यों करना चाहिए। कुछ लोग ध्यान इसलिए करते हैं ताकि उनकी एंजायटी, डिप्रेशन दूर हो जाए या ध्यान इसलिए करते हैं ताकि उनका शरीर स्वस्थ बना रहे। कोई मानसिक स्वास्थ्य के लिए ध्यान करते हैं। यदि आप क्षणिक लाभ के लिए, शारीरिक और मानसिक लाभ के लिए ध्यान करते हैं तो आपकी ध्यान की यात्रा लम्बी नही चलेगी और आपकी यात्रा हमसे कट जाएगी क्योंकि हमारा ध्यान का परम उद्देश्य है, आत्मबोध, सत्य को जानना, उस परम ईश्वर परमात्मा में विलीन हो जाना, सारे दुःखों से निवृत्ति, जन्म और मृत्यु के चक्रो से निवृत्ति। सारे दुःख और क्लेषों से पूर्ण रूप से छुटकारा।
यहां तक पहुंचने के बाद, आप परम शांति और परम आनंद का केन्द्र बन जाते है। पूरी प्रकृति आपकी परिधि होती है और आप उसका केन्द्र बन जाते है। आप चारों दिशाओं में, दूर से दूर, समीप से समीप, कण-कण में स्व का बोध कर लेते है और यही ध्यान का परम उद्देश्य है।
इसके अतिरिक्त ध्यान का परम उद्देश्य अपनी इंद्रियों को बस में कर लेना है। ध्यान से आप अपनी इंद्रियों को अपने नियंत्रण में रख सकते हैं और यह नियन्त्रण कब आता है? जब आप आत्म बोध कर लेते हैं, तब नियन्त्रण आता हैं। ध्यान से आपके भीतर की सारी वासनाएं भस्म हो जाती है। सारी वासनाएं जो चित्त में पड़ी है, ध्यान उन सारी वासनाओं का नाश कर देता है। यह है ध्यान।
इसलिए, ध्यान क्यों करूं, कैसे करूं, इसका ज्ञान होना अत्यन्त आवश्यक है। इसलिए कहा गया है पहले ज्ञान फिर ध्यान। तो ध्यान शुरू करने से पहले यह दिमाग में रखना है कि मुझे ध्यान क्यों करना है। ध्यान का परम उद्देश्य होना चाहिए, स्वःबोध, आत्मबोध, सत्य को जानना। ध्यान करना है- चित्त की सारी वासनाओं से मुक्त हो जाने के लिए, सत, रजस और तमस का निरोध करके, उनसे ऊपर उठ जाने के लिए और इस क्रियावान प्रकृति की चाल को समझकर, क्रिया रहित केंद्र में स्थापित हो जाने के लिए।
जैसे ही आपको आत्मबोध होगा तो आपको पता चलेगा कि मेरा जन्म और मृत्यु तो कभी हुई ही नहीं, और यही है, ध्यान का असली मकसद। असलियत में ध्यान किसी न किसी गुरु के पास जाकर, उनसे ग्रहण करना चाहिए। गुरु आपको ध्यान की विधि देता है, और साथ-साथ में दीक्षा भी देता है, गुरू ब्रह्म में लीन रहता है, अपनी शुद्धतम एनर्जी भी आपके अंदर ट्रांसफर करता है जो आपको ध्यान के मार्ग में आगे लेकर जाती है। जब तक कोई योग्य गुरु नहीं मिलता है तो आप जहां पर है, वहीं पर ध्यान कर सकते हैं। कहीं न कहीं पूरा अस्तित्व ही आपका गुरु ही है। अगर मैं बोल रहा हूँ तो मैं भी उसके अस्तित्व में हूँ। सही अर्थों में देखा जाए तो पूरा अस्तित्व आपकी परिधि है और आप उसका केंद्र है। यह ध्यान करने के बाद, आत्मबोध होने के बाद, इसका बोध होता है, अनुभूति होती है।
तो ध्यान में होता है क्या है? जब हम ध्यान करते हैं तो हमें एक बात का ध्यान रखना है, मैंने देखा है, बहुत सारे लोग वर्षों-वर्षों तक ध्यान करते हैं, गुरुओं को बदलते रहते हैं, इधर-उधर भटकते रहते हैं। दुनिया भर के शास्त्रों को निचोड़ते रहते हैं, पढ़ते रहते हैं और बुद्धि के स्तर पर वे जान भी लेते हैं कि ब्रह्म क्या है, सत्य क्या है और वे बहुत ज्ञानवान, बुद्धिवान और विवेकवान भी बन जाते हैं। लेकिन मैं कहता हूँ कि ध्यान में जिस दिन आपका सारा विवेक गिर गया, जिस दिन आपकी सारी बुद्धि गिर गई, जिस दिन आपकी सारी समझ, नॉलेज गिर गई, असमझ की स्थिति आ गई कि मुझे कुछ पता ही नहीं तो समझ लेना, ध्यान सफल हो गया।
पहले ध्यान का बीज बोना है, फिर नियमित रूप से उसे सींचना है, धूप व हवा पहुँचानी है और जो भी उर्वरक की आवश्यकता है, उसकी पूर्ति करनी है। वे सारी चीजें चाहिए, जिससे वह अंकुरित हो और वृक्ष बने, और उस वृक्ष में फूल खिले। इसी प्रकार से ध्यान होता है। यदि आपने ध्यान का बीज अपने अंदर स्थापित किया है, तो उसे अंकुरित होने दें, बड़ा होने दे। लेकिन होता क्या है कि कुछ लोग बीज तो लगाते हैं, वह बीज अंकुरित भी होता है, फिर उसे ऊपर नहीं आने देते, पहले ही उसे मार देते हैं। कुछ लोगों के ध्यान का वृक्ष थोड़ा सा बड़ा भी होता है लेकिन वे उसकी परवाह नही करते हुए, दूसरी ध्यान विधि का बीज रोप देते है। पहले वाले की परवाह छोड़ देते है, सूखा देते है, या मार देते है। इस प्रकार ऐसे लोग ध्यान को नियमित नहीं करते हैं। कुछ साल नियमित करते हैं और फिर छोड़ देते है, और वे भी क्या करें, क्योंकि उनका अभी भटकना लिखा है।
देखिए, जब आप ध्यान करेंगे, तो ध्यान में सबसे बड़ी गलती लोग क्या करते हैं, जब ध्यान में बैठते हैं तो बहुत हिलते-डुलते है। मैंने देखा है, अपने ध्यान सेशन में। बहुत से लोग स्थिर नहीं बैठते, शरीर को हिलाएंगे डुलाएंगे। जब तक आप शरीर को हिलाएंगे डुलाएंगे, तब तक ध्यान घटित नहीं होगा। आपका मन, आपका शरीर और आपकी श्वांस, ये तीनों एक दूसरे से कनेक्ट है। अगर श्वांस की गति ज्यादा तेज होगी, तो मन भी हिलेगा और मन हिलेगा, तो शरीर हिलेगा और शरीर हिलेगा तो मन हिलेगा और मन हिलेगा तो श्वांस भी स्थिर नहीं रहेगी। ध्यान में इन तीनों को- शरीर, मन और श्वांस को एक ही रेखा में लाना होता है।
आप जब भी ध्यान करते हैं, तो आपकी एक ऊँगली भी नहीं हिलनी चाहिए। आपका शरीर थोड़ा सा भी नहीं हिलना चाहिए। बात को जरा गहराई से समझने की कोशिश करें। आपके शरीर में थोड़ा सा भी हिलना-डुलना होगा, तो आप ध्यान में नहीं उतर पाएंगे। ध्यान नहीं होगा क्योंकि आपका शरीर हिला यानी कि आपके अंदर जो चेतना है, जो मन है वह मन भी हिल जाता है जो कि चेतना का स्तर ही है, तो वह भी हिल गया। जैसे किसी बर्तन में पानी है, बर्तन हिलाया तो पानी भी हिल गया। ठीक इसी प्रकार शरीर हिला तो फिर मन हिल गया, फिर श्वांस।
ध्यान तो हम बहुत तरीके से कर सकते हैं। ध्यान की विधियां तो बहुत है। विज्ञान भैरव तंत्र में एक सौ बारह विधियां बताई गई है, तो एक सौ बारह विधियों में से कोई भी विधि आप अप्लाई कर सकते हैं। जो भी आपको अच्छी लगे और जो भी आपके साथ मैच करें और जो आपके स्वभाव के साथ कनेक्ट हो रही है यानी कि जिस विधि से आप अंदर उतर रहे हैं। लेकिन ध्यान करते वक्त, यह बात आपको समझ में आनी चाहिए कि शरीर का थोड़ा सा भी हिलना-डुलना ना हो।
इसीलिए हमारे ऋषि मुनियों ने, योगियों ने यह कहा कि अगर ध्यान के मार्ग में जाएंगे, योग के मार्ग में जायेंगे तो आप सुखासन, सिंद्वासन, पद्मासन में बैठने का इतना अभ्यास करो कि शरीर में दर्द ना हो और आप घंटों उस आसन में बैठ सको। ऐसा आपको अभ्यास करना है। उस आसन में सिद्धता हासिल कर लेनी है, उसका अभ्यस्त हो जाना है। अगर आपने थोड़ा सा भी शरीर हिलाया, मन हिलाया तो ध्यान घटित नहीं होगा। तो आपको प्रैक्टिस करते रहना है, बैठने की प्रैक्टिस करना है। चाहे आप किसी भी विधि से ध्यान कर रहे हो, चाहे आप श्वांस पर ध्यान कर रहे हो जिसे बुद्ध विधि या आनापन विधि या शिव विधि भी कहा जाता है। विज्ञान भैरव तंत्र में श्वांस से संबंधित नौ विधियां बताई गई है।
तो ध्यान में कभी भी हिले नही। अगर ध्यान के दौरान आपके शरीर में कहीं दर्द हो रहा है तो आपका ध्यान तो उस दर्द पर जाएगा। तो फिर आप ध्यान नहीं कर पाएंगे। अगर आप उस दर्द को साक्षी बनकर देखने लग गए और आधा घंटे या एक घंटे तक बैठ पाए तो ठीक है, अति उत्तम है। आप ऐसा कीजिए। अगर यह भी नहीं कर पा रहे है, दर्द की वजह से आपका ध्यान टूट रहा है तो आप जमीन पर लेट जाइए, तो भी ध्यान घटित हो सकता है। लेकिन होश में रहना है और इतना याद रखिए कि ध्यान में आपके शरीर का कोई भी अंग ना हिले। यहां तक कि हमारे मुंह में जीभ की हलन चलन भी भी रुक जाना चाहिए। जीभ अगर ताल्लु के लगी है तो ताल्लू पर ही ठहर जानी चाहिए। असली ध्यान में ये जो गाल है, उसे हिलाना भी मुश्किल हो जाता है।
बहुत शांति से, गहराई में उतरते हैं तो सब कुछ स्थिर होने लगता है और इस स्थिरता का अनुभव करते-करते उस परम स्थिरता में प्रवेश कर जाते हैं जहां से आप वापस कभी भी नहीं आते हैं। तो यह ध्यान रखिए कि ध्यान में मेरे शरीर का कोई अंग ना हिले। श्वांस पर ध्यान कर रहे हैं तो भी इस बात का स्मरण रहे कि मेरा शरीर ना हिले। या तो जमीन पर लेट जाए या कुर्सी पर बैठ जाए आराम से। किसी आरामदायक आसन में बैठे कि हिले और डुले नही। हिलते-डोलते रहेंगे, शरीर को इधर-उधर करते रहेंगे, तो ध्यान घटित नहीं होगा, ध्यान फलित नहीं होगा।
तो मैंने आपको बताया कि ध्यान अग्नि है जो सारे विकारों को जलाकर भस्म कर देती है, जो भी वासनाएं चित्त में पड़ी हुई है। चित्त को पूरा साफ होने पर, शुद्ध, परम, परमात्मा, चैतन्य रूप में, शुद्ध चेतना में आप आ जाते हैं, जो आपका मूल रूप है। बस उसके ऊपर वासनाओं का और संस्कारों का जो आवरण चढ़ गया है, आवरण पड़ा हुआ है, ध्यान उसे जलाकर भस्म कर देता है।
ध्यान वह शक्ति है जो आपके अंदर एकाग्रता लाती है। एकाग्रता से आप ऊर्जा के एक केंद्र पर आते हैं और उस ऊर्जा से आप ब्रह्मांड में व्याप्त समष्टि ऊर्जा के साथ यूनियन में आ जाते हैं। उस ऊर्जा के साथ एकात्म होते हैं और अंत में इन सारी ऊर्जाओं के परे जाकर, ऊर्जा रहित, निष्क्रिय, न्यूट्रल, निर्गुण ब्रह्म की स्थिति पर पहुंच जाते हैं। वही स्व का बोध है, वही आत्मज्ञान है, वह ही मुक्ति है।
फिर आपको मुक्ति मिल जाती है आपको, लिबरेशन मिल गई आपको। अब प्रकृति की कोई चीज आपको छू नहीं पायेगी। आपको मतलब इस शरीर की बात नहीं कर रहा हूँ, इस शरीर को तो छूएगी लेकिन आपको नहीं। आप यह शरीर नहीं है, आप आत्मस्थित की अवस्था है। कोई अवस्था है यह कहना भी गलत है क्योंकि अवस्थाओं की भी कोई सीमा होती है। वहां पहुंच कर आप असीम हो जाते हो।
तो ध्यान क्या है, इसे मैंने आपको बताने के लिए पर्याप्त प्रयास किया है। अगर आपके दोनों कानों के द्वार खुले है और मेरी बातें आपने अंदर तक उतरी है, तो जरूर मेरी बातें आपको स्व का बोध करवायेगी, सत्य का बोध कराएंगी और आप भी परमात्मावत्, सत्यवत्, आनंदवत्, शांतिवत्, उस परम चेतना में विलीन हो जाएंगे और वही परम चेतना स्वरूप, मंगल स्वरूप, शांत स्वरूप, निरामय स्वरूप, पूर्ण स्वरूप हो जाएंगे। नमस्कार।
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