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सेक्स को मेडिटेशन में कैसे कन्वर्ट करे?

https://www.youtube.com/watch?v=Sp5WsSrNcVM

        सेक्स मेडिटेशन टू दी लिबरेशन यानी कि सेक्स को मेडिटेशन में कैसे कन्वर्ट करें। तंत्र में इसको बड़ा महत्व दिया गया है। आपको इसे समझना पड़ेगा। अगर आप शादीशुदा है तो इसका फायदा आप उठा सकते हैं। लेकिन साथ ही साथ, मैं उन लोगों को सावधान करना चाहता हूँ जो लोग शादीशुदा नहीं है। वो ऐसा ना सोचे कि मैं जल्दी शादी कर लूँ और सेक्स करके परमात्मा को प्राप्त कर लूँ। मेरे प्यारे, ऐसे बहुत सारे लोग हैं, जो शादीशुदा है और खूब सेक्स करते हैं, सेक्स में ही डूबे रहते है, सेक्स के गुलाम बने हुए हैं। तो उनको परमात्मा की प्राप्ति कैसे मिलेगी, मिलेगी भी नहीं। कैसे मिलेगी, जो सेक्स के प्रति इतने आसक्त हो गए है कि उससे ऊपर ही नही उठ पाते है। अपने पति या पत्नी से मन नहीं भर रहा है तो दूसरी लड़कियों पर नजर रखते है। मैंने देखा है साठ-सत्तर साल के बूढ़े भी इससे उबर नहीं पाते है। रास्ते में तेरह साल, सोलह साल, इक्कीस साल की लड़लियाँ जाती है, कामी पुरूष अपनी आँखों की बड़ी-बड़ी कर लेते हैं और देखते हैं। ऊपर से नीचे उनके फिगर को देखते हैं, उनके ब्रेस्ट को देखते हैं। साठ-सत्तर-पच्चहत्तर साल के वृद्ध हो गए, लेकिन अभी भी उनके चित्त में सेक्स का संस्कार जबरदस्त तरीके से पड़ा हुआ है। शरीर बूढा हो गया लेकिन मन से वैसे के वैसे बने रहते है। वे फिर परमात्मा को  कैसे प्राप्त करेंगे। दुनिया में ऐसे-ऐसी व्यभिचारी भी है जो दो चार नहीं अनेकों स्त्रियों के साथ संभोग कर चुके हैं। फिर वे परमात्मा की प्राप्ति की आशा कैसे कर सकते है? 

        इसलिए जो शादीशुदा नहीं है, वे ऐसा ना सोचे कि मैं किसी को जल्दी से ढूंढ लूँ और उसके साथ सेक्स करूँ और परमात्मा को प्राप्त हो जाऊँ, क्योंकि सेक्स परमात्मा का द्वार है। हाँ है, लेकिन सेक्स में अंतिम स्टेज पर धैर्य रखने वाले के लिए वह द्वार खुलता है। जिनके आम जीवन में धैर्य नहीं है, वे उस क्षण कैसे धैर्य रखेंगे। इसलिए लोग फंस जाते है, क्योंकि इस स्टेज पर सेक्स में एक ऐसा आनंद मिलता है कि उस आनंद में वो जकड़ जाते हैं और परमात्मा के द्वार में प्रवेश करना याद ही नहीं रहता हे।

        तो सेक्स से मेडिटेशन तंत्र में एक मार्ग बताया गया है, लेकिन इस मार्ग में ज्यादा से ज्यादा लोग फंस जाते हैं। जो पहले ही शादीशुदा वे ध्यान से सुनें और जो नहीं है वे भी भविष्य के लिए ध्यान से सुनें। यह मार्ग जितना सुविधाजनक है और उतना खतरनाक भी है। शादीशुदा दम्पत्ती सेक्स को मेडिटेशन में कैसे कन्वर्ट करें, आओ, इसे समझते हैं। जब आप अपने पार्टनर के साथ सेक्स करते हैं, तो इसमें हड़बड़ी ना करें। स्थिरता बनाए रखें। थोड़ा समय लें, बीस मिनट, तीस मिनट समय लें। एक झटके में निपटने की कोशिश ना करें कि जाऊं, चढ़ जाऊं और दो-चार मिनट में वीर्य निकल जाए और खत्म। यदि ऐसा करेंगे तो न तो यह विधि काम करेगी और ना ही आपकी पत्नी संतुष्ट होगी।

        जो मैं बता रहा हूँ, उसे ध्यान से सुनें। किसी भी चीज को सफल बनाने के लिए, उसकी एक पद्धति होती है, एक रास्ता होता है, एक टेक्निक होती है। मैं पहले भी कई बार कह चुका हूँ कि प्रकृति की हरेक चीज परमात्मा का द्वारा खोल सकती है। प्रकृति में वो सारी चीजें उपलब्ध है। आप उन चीजों को जरिया बना सकते हो परमात्मा तक पहुंचने का। उसमें से एक सेक्स भी है। सेक्स से मुक्ति के लिए सेक्स को ही आप यूज कर सकते हो। सेक्स से मुक्ति यानी कि सेक्स के जो क्रियाकलाप है, उसमें उतर कर मुक्त हो जाना है। तो सेक्स से मुक्ति कैसे? जल्दबाजी ना करें, बिल्कुल धीरे धीरे, अपने पार्टनर के साथ होशपूर्वक, पूर्ण जागृति के साथ उतरे। 

        ध्यान में भी ऐसा नहीं होता है कि जैसे ही अचानक ध्यान के लिए बैठे, आंखें बंद की ओर तुरंत एक-दो मिनट में ध्यान लग जाता है। उच्च कोटि का साधक बनने के लिए बहुत प्राणायाम करना पड़ता है, योग करना पड़ता है, मंत्र जप करना पड़ता है, सत्संग सुनना पड़ता है, बहुत पापड़ बेलने पड़ते है। तब कहीं जाकर धीरे-धीरे जाकर वह उच्च कोटि का साधक बनता है। स्टेप बाय स्टेप प्रोसेस से गुजरता हुआ वह आता है, तब वह ध्यान में जैसे ही बैठता है, तब दस से बीस मिनट में उसका चित्त स्थिर होने लगता है, कोई एक चीज पर, कोई बिंदु पर वह स्थिर हो पाता है। और अंत में सभी साधन, मंत्र, जप, कीर्तन सब छूठ जाते हैं। 

        ठीक इसी प्रकार से, सेक्स में भी आपको धीरे-धीरे बढ़ना है, तब ऊर्जा आपके अंदर आने लग जाएगी। क्योंकि सेक्स की जो एनर्जी है, यह सबसे पॉवरफुल एनर्जी है, सबसे शक्तिशाली एनर्जी है। मनुष्य के शरीर में सेक्स इज थ मोस्ट पॉवरफुल एनर्जी एण्ड देट कैन ट्रांसफॉर्म योर लाइफ। आई मीन दिस केन ट्रांसफॉर्म यू फ्रॉम दिस वर्ल्ड टू दी प्योर कॉन्शियस। आपके भव सागर बंधन, माया रूपी जगत से निकाल कर सत्य का दर्शन करवा देगी। इसलिए इस विधि में धीरे-धीरे उतरना है। एक दूसरे के साथ खेलना है। एक-एक अंग को स्पर्श करना है। उन्हें महसूस करना है और साथ ही साथ यह होश भी रखना है कि मेरा हाथ स्पर्श कर रहा है और यह इसलिए कर रहा है कि क्यों मेरे चित में यह संस्कार पड़ा है, सेक्स करने का। इसलिए उस संस्कार से वासना उत्पन्न हुई है, वासना से विचारों की तरंग चल रही है और प्रकृतिवश यह प्रक्रिया हो रही है, अपने आप हो रही है और इन सभी क्रियाओं को मैं साक्षी बनकर देख भी रहा हूँ कि मेरा शरीर क्या कर रहा है। पति और पत्नी दोनों को यह बात ध्यान रखनी है। फूल अवेयरनेस रखना है। यदि दोनों में से कोई एक भी आध्यात्मिक मार्ग पर है तो उसे तो ये बातें ध्यान रखनी ही चाहिए और उसे अप्लाई करना चाहिए।  

        अपने अंदर होने वाली हर गतिविधि का, अंदर किस प्रकार की एनर्जी किस पूरे शरीर में फैल रही है, उसको आप देख रहे हैं, साक्षी बन कर देख रहे हैं, अवेयर है उसके प्रति कि क्या घटनाएं हो रही है, पूरे शरीर में कैसे तरंगें फैल रही है, कितना बेचैन हो गया है आपका शरीर, इतना आतुर हो गया है कि कब स्खलन हो, कब सेमन निकलें, कब मेरा शरीर उस आनन्द तक पहुंचें और कब आनन्द की अनुभूति हो। इन सारे विचारों को बिल्कुल स्थिर होकर, एकदम साक्षी भाव से देखने लग जाए। 

        जब पूर्ण रूप से अंतिम अवस्था आ जाएं कि अब स्खलन होने ही वाला है, उस समय अपने पार्टनर से थोड़ी दूरी बना लें, स्खलन न करें, वीर्यपात न करें, उसे रोक लें और ध्यान में बैठ जाए, अपनी ऊर्जा को, जो नीचे बहने को आतुर है, उस पर ध्यान करे और मूलाधार को ऊपर की ओर सिकोड़े, संकुचन करें। उसी ऊर्जा में दस-बीस मिनट रहने की काशिश करें। आप उस वक्त यदि कुण्डलिनी शक्ति का आव्हान करते है तो आपकी कुंडललिनी शक्ति जग भी शक्ति है।

        या आप ध्यान में मग्न होकर अपने आप से निरन्तर यह प्रश्न कर सकते है कि मैं कौन हूँ, हू एम आई, मैं कौन हूँ। जब आपमें ऊर्जा घनिष्ठ हो जाती है तो आपके विचार खत्म हो जाते हैं। आप उस ऊर्जा के साथ एक हो जाते हैं। उस वक्त जो भी संकल्प लोगे, वह बिजली की तरह काम करती है, और वही आपकी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत कर सकती है। आपकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत होकर, सुषुम्ना नाड़ी से प्राणशक्ति प्रवाति होकर सहस्त्रार तक भी आ सकती है। इस प्रकार आप सेक्स की शक्ति से मुक्ति प्राप्त कर सकते है जो कि तंत्र का ही एक मार्ग है।

        यदि स्खलन हो जाता है तो इस मार्ग में आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। स्खलन नहीं करना है, ऊर्जा को अधोगामी नहीं करना है, उर्ध्वगामी बनाना है, ऊर्जा को जागृत कर देना है। पानी की तरह बहा दोगे तो हताशा और अग्नि बना दोगे तो यह ऊर्जा इस जगत से सत्य की जगत की और रूपांतरित हो सकती हैं।

        अगर स्खलन हो भी गया, रोक नहीं पाए या पत्नी या पति दोनों में से कोई एक यदि आध्यात्मिक मार्ग में नहीं है तो एक दूसरे को सेटिस्फाई के लिए, करना पड़ेगा तो संबंध बना लीजिए और हो जाने के बाद, शांत बैठे रहिये और अगले दस से पन्द्रह मिनट तक। पूरे मृतक की भांति पड़े रहे और साक्षी ध्यान करें। अपनी बॉडी को देखें कि इस बॉडी ने क्या काम किया है। यह मैंने थोड़े ही क्या है, यह तो प्रकृति ने किया है, इस शरीर ने ही किया है। मैं तो सर्वव्यापक आत्मा हूँ, एक चेतना हूँ। पूरे शरीर को देखे कि शरीर किस तरीके से बना हुआ है, जिसके अंदर यह वीर्य उत्पन्न होता है। किस तरीके से उस पुरुष का लिंग आनंदित करता है और किस तरीके से स्त्री या पुरुष दोनों एक स्टेज पर पहुंचने हैं तो किस तरीके से आनंदित होते है। उन विचारों में नहीं खोना है, साक्षी बनकर उन्हें देखना है। कि यह कौन है जो आनंदित हो रहा है इस शरीर में कैसी घटनाएं घटती है, क्या क्रियाएं होती है। इन सारी चीजों को बारीकी से परखे, निरीक्षण करें, अनुसंधान करें। देखते रहे और देखें कि इस चित्त में सेक्स का संस्कार है, जिसकी वजह से यह हो रहा है। अब में इसके प्रति होशपूर्वक हूँ। देखे कि इसमें तो मैं क्षणभर के लिए ही आनन्दित हूँ, इससे मेरा शरीर सुस्त हो गया है क्योंकि थोड़ी सी एनर्जी निकल गई है। सेक्स एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा सबसे ज्यादा एनर्जी लॉस होती है। इसलिए ऊर्जा की मात्रा कम हो जाती है, तो उस कम हुई ऊर्जा को भी आप देखें। उसकी वजह से थकान को देखें। शरीर की अवस्था को देखे। 

        इस प्रकार, इन सारी चीजों का निरीक्षण करें, देखें और साथ ही साथ यह स्मरण करें कि यह मैं नहीं कर रहा हूँ यह मेरा शरीर कर रहा है। मैं तो परम चेतना, सदाशिव, शांत स्वरूप हूँ, अविलक्षण हूँ। सत, रजस और तमस के कारण प्रकृति में ये घटनाएं घट रही है। इन गुणों से प्रभावित होकर इस शरीर पर ये घटनाएं घट रही है। आई एम जस्ट वॉचर। आई एम ऑनली नॉवर।

        यह साधना बहुत जबरदस्त है। जब भी आप ऐसी एक्टिविटी में उतरते हैं तो पहले कोशिश करें कि इजेक्युलेशन ना हो, स्खलन ना हो। उसे रोक लिया जाए औ उसे साधना की ओर कन्वर्ट कर दिया जाए। और जैसा मैंने बताया, उस एनर्जी के साथ एक हो जाना है। जब स्खलन होने ही वाला हो, उस समय आप विचारों से मुक्त हो जाते हैं, उस क्षण में प्रवेश करने के लिए मैं कहता हूँ। उस आकाश में, उस चिदाकाश में, उस इन्फिनिट स्काई में। यदि एक क्षण के लिए भी विचार रूक गया, मन रूक गया, तो उस ठहराव में ही चेतना सुषुम्ना से उर्ध्व प्रवाहित होने लगती है। जब सब कुछ ठहर जायेगा तब आप जाग्रत हो जायेंगे और एक दिन आप उस परमात्मा को प्राप्त कर लेंगे। 

        पृथ्वी पर ऐसी कई जगह है जहां पर तांत्रिक क्रियाओं की जाती है और सेक्स को मार्ग बनाया जाता है, परमात्मा तक पहुंचने का। ऐसे ही सेल्फ रिलाइजेशन के लिए कितने ही सारे मार्ग है। अघौरी मांस खाकर भी सेल्फ रिलाइजेशन करना चाहते है। यह बहुत आश्चर्यजनक बात है कि दूसरे मनुष्य का मांस खाकर कैसे परमात्मा की प्राप्ति? उसके पीछे भी कोई भेद है। लेकिन अघौरी उनका ही मांस खाते है जो ध्यान, आध्यात्मिक राह पर था, जिसने जीते जी अपनी चेतना का स्तर काफी बढ़ाया था। जप, तप, साधना किया हुआ था। जो भी योगी होते है, ध्यान के मार्ग पर तो उनकी चेतना बढ़ जाती है, तो उनके मांस में, उनकी कोशिकाओं में, प्रत्येक सेल्स में, न्यूरॉन्स में चेतना बढ़ी हुई होती है क्यों हमारी चेतना वहीं फैली होती है। जब ऐसे किसी योगी का प्राण निकलता है, और बॉडी रह जाती है और उस मृतक बॉडी को अगर चौब्बीस घंटें के अंदर पानी में बहा दिया जाता है तो अघौरी की उस पर नजर होती है, वे उसे खाना चाहते है और यदि जलाते भी है तो मौका मिलने पर उसका बचा हुआ मांस खाते है। इस प्रकार अघौरी अपनी चेतना का स्तर बढ़ाते है। जैसा कहते है न कि अन्न ही मन है। जिस प्रकार का भोजन लेते है उसी प्रकार की चेतना का भी विकास होता है। तो यह भी एक मार्ग होता है लेकिन बहुत ही रिस्की मार्ग है। जैसा कि मैंने शुरू में ही कहा कि आप किसी भी चीज को मार्ग बना सकते हो, परमात्मा तक पहुँचने के लिए।

        कई ऐसी जगह है जहाँ तान्त्रिक क्रियाएं कराई जाती है, जैसे एक स्त्री और एक पुरूष को गुरू बुलाता है, और दोनों को नग्न करवा देता है और दोनों को कहा जाता है कि तुम्हें परस्पर स्पर्श नहीं करना है, केवल देखना है और सोचना है। तुम एक दूसरे के शरीर के अंगों को देखो। उनकी आंखों में देखों, स्तन को देखों, उनके होठों को देखों। एक-एक अंग को देखो और देखते-देखते तूम पुरी तरह से डूबते ही जाओ देखने में। स्त्री को भी कहा जाता है और पुरुष को भी कहा जाता है। पुरूष पर प्रयोग करने के लिए ऐसी स्त्री को लाया जाता है जिसकी पहले ही कुण्डलिनी जागरण हो चुका हो या जो पहले से ही मुक्त अवस्था में है। उसे कहा जाता है कि एक साधक आया है, उसे देखो। जब उस साधक के अन्दर सेक्स की ऊर्जा फूट पड़ेगी, नस-नस में सेक्स की तरंग उठेगी कि अब मैं उसे स्पर्श करूँ और अपना तनाव दूर करूँ। सेक्स भी एक तनाव ही है क्योंकि यह अवस्था तनाव पैदा कर देती है और समाप्त नहीं होता जब तक स्खलन न हो जाए या उस ऊर्जा को उर्ध्वगामी न कर दिया जाएं।

        जब गुरु देखता है कि इसके अंदर सेक्स की ऊर्जा आगे चरम पर आ गई तो वह उस स्त्री को साइड में कर देता है, हटा देता है, उस वक्त उसका मन लगभग शून्य होता है, विचार रहित अवस्था होती है, उसी वक्त साधक को गुरू शक्तिपात करता है, उसको इनीशिएट कर देता है और जैसे ही इनीशिएशन करता है तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है, जब यह शक्ति जाग्रत होती है तो धीरे-धीरे उसके चित्त के संस्कारों का नाश करती है, उसके प्रारब्ध को खत्म करती है और धीरे-धीरे उसको आत्मबोध की ओर लेकर जाती है और अंत में साधक परम शिवा, परम चेतना में लय कर जाता है। अब उसकी व्यक्तिगत जो भी पहचान थी, वह मिट जाती है। अब वह मुक्त हो जाता है। क्योंकि वह शक्ति एक अग्नि है, चित्त के सारे संस्कारों को जलाकर भस्म कर देती है। तो इस तरीके से भी साधना करवाई जाती है। बहुत सारे लोगों को यह पता नहीं है।

        कुछ भी मार्ग बनाया जा सकता है, परमात्मा तक पहुंचने के लिए। बशर्ते आपके अंदर परमात्मा को पाने की अभिलाषा होना चाहिए। और ऐसा हो रहा है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य के अंदर अपना अलग ही चित्त बना हुआ है। सबके चित्त और चित्त की वृत्तियां अलग अलग है, एक समान नहीं है। इसीलिए मैं हमेशा कहता हूँ कि चित्त के स्वभाव के अनुसार मैं विधि दूंगा यदि उसकी परमात्मा की प्राप्ति की चाहत है तो। चित्त के स्वभाव के अनुसार विधि काम करती है। 

        यदि कोई पूर्व्र जन्म में तंत्र मार्ग से होकर आया और इस जन्म में कोई और विधि देंगे तो वह विधि उस पर काम ही नहीं करेगी। तंत्रों में भी कई विधियाँ है। वह पिछली विधि पर ही चलेग तो उसके लिए थोड़ा आसान होगा, परमात्मा तक का सफर तय करने के लिए। 

        लेकिन ये सब एक तामसिक राह पर चलकर, सात्विकता तक पहुंचा जाता है। तंत्र विवियों में रिस्क फैक्टर बहत ज्यादा है। साधक भटक जाते हैं। और वे भटकते इसलिए है कि वे उससे प्राप्त क्षणिक आनन्द में ही अटक जाते हैं। जहाँ आदमी भटका, वहाँ आदमी अटका। मैं ज्यादा से ज्यादा लोगों को कहता हूँ कि अब सात्विक मार्ग अपनाइए, सात्विक ज्ञान का सेवन कीजिए, सात्विक समाज बनाये, सात्विक परिवार बनाय, सात्विक फूल की तरह खिलें। अपनी सुगंध बिखरे। मैं तो सारे मार्ग बता सकता हूँ। उन सारे मार्गो में कोई मार्ग छोटा या बड़ा नहीं है। परमात्मा तक पहुंचने के लिए सभी मार्ग समान है। आप अपने चित्त के स्वभाव के अनुसार अग्रसर हो और उस मार्ग को अपनाये और आगे बढ़े।


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