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अपने धर्म  के  प्रति  आसक्ति

सबसे  बड़ा अंहकार

 

"सारे धर्मों का उद्देश्य यही होना चाहिए कि मैं खुद को कैसे मिटा दूं। लोगों ने धर्म के मूल मर्म को भूलाकर, धर्म को शुभ-अशुभ, शुद्ध-अशुद्ध, पाप-पुण्य कर्म में परिभाषित कर दिया है और इसके चक्र में लोगों को फंसा कर रख दिया। पूरे जहां में जहर डाल दिया है कि हिंदू शैतान है, हम महान हैं, मुस्लिम शैतान है, हम महान है। सभी धर्मालम्बियों को लगता है कि हम महान है, बाकी सब सही रास्ते पर नहीं है। ये सब बंद होना चाहिए अब, यह द्वंद्ध का, द्वैत का खेल। परमात्मा ने किसी को बांटा ही नहीं। परमात्मा को जानने वालों ने, मानने वालों ने, फॉलो करने वालों ने धर्म के नाम पर सबकुछ बांट दिया।"

 

सबसे बड़ी आसक्ति, मेरा धर्म। मेरे धर्म का प्रचार करना है, यह सबसे स्ट्रांग अहंकार बना हुआ है। सबसे बड़ा अटैचमेंट है। हमारे धर्म को फैलाना है, पूरे विश्व में, यह सबसे बड़ा अहंकार और अटैचमेंट है। मैं जिस ज्ञान की ओर इशारा कर रहा हूँ, वहां जब पहुंच जाएंगे तो वहां कोई क्रिश्चियनिटी नहीं है, कोई हिंदू नहीं है, कोई बुद्धिष्ट नहीं है, कोई इस्लाम नहीं है, कोई जैनिज्म नहीं है, कोई सिख नहीं है। वहां ये सब मिट जाते हैं। ये सब रहते हैं तो सिर्फ बाहर बने रहते हैं। मन और बुद्धि में से मिट जाते है। मन और बुद्धि से खत्म हो जायेंगे तो पूर्ण चेतना जागृत हो जाएगी। फिर सिर्फ चेतना ही रहती है। इसलिए बुद्ध ने इन सबसे इंकार किया और कहा सिर्फ चेतना है। सिर्फ चेतना मतलब कॅन्शियस।

यदि परम सत्य का बोध किया ही नहीं और किसी को लगता है कि मैं अच्छा कर्म कर रहा हूँ, अपने हिंदुत्व को फैलाने के लिए, क्रिश्चियनिटी को फैलाने के लिए, इस्लाम को फैलाने के लिए। मेरे धर्म को स्वीकार कर लो, तो वह मेरा और तुम्हारा में फंसा हुआ है। जबकि मैं तो कहता हूँ कि अपनेमैंको ही खत्म कर दो। जब तक आईनेस है, मैं है, तब तक मेरा-तेरा है, और यह जब तक है, तब तक विभाजन है, और जब तक विभाजन है, तब तक एक दूसरे के प्रति हमारे सोच में दूरी बनी हुई है, विपरीतता है। हम कहेंगे कि मेरा वाला तुम मानो और वे कहेंगे कि हमारा वाला तुम मानो।

आप मुझे बताइए, उदाहरणतः एक परिवार में सब लोग पक्के क्रिश्चियन है, सभी क्रिश्चियनिटी की सभी बातें मानते है, तो क्या उनके परिवार में झगड़ा नहीं होता है, क्या एक दूसरे को मारने को उतारूं नहीं होते हैं, क्या क्रिश्चियन धर्म के हस्बैंड और वाइफ में झगड़े नहीं होते हैं, तलाक नहीं होते हैं। होते हैं, एक-दूसरे को डाइवर्स देकर, दूसरों के साथ शादी करते हैं। वहां भी अशांति बनी हुई है, दुख बना हुआ है, ना। तो फिर उस धर्म को फॉलो करते हुए, अपने धर्म के प्रति इतनी दृढ़ता रहते हुए भी, यह सब क्यों हो रहा है। कुछ तो गड़बड़ है ना। इस बात को आप समझिए। सिर्फ क्रिश्चियन धर्म में ही नहीं, बाकी सारे धर्म वालों को भी मैं कह रहा हूँ।

कोई भी धर्म हो, आप उस धर्म को मानने वाले हो, आपको अपने धर्म के प्रति निष्ठा है, अपने धर्म को लेकर आप अडिग रहते हो, अपने धर्म का झंडा गाड़े हुए हो, लेकिन मैं आपसे पूछ रहा हूँ कि क्या आप उस धर्म की बातों को मानते हो, क्या आप में और आपके परिवार के सदस्यों में प्रेम शांति है? यदि अशांति है और अभी भी एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या, नफरत, झगड़ा, झंझट चलते रहता है, तो यह कैसा धर्म है फिर।

वास्तविकता यह है कि लोग अपने मन के लेवल पर, अपने-अपने धर्म की, अपने-अपने तरीके से व्याख्या करते हैं, मूल्यांकन करते हैं और अपने अहंकार का विस्तार करते हैं। इस संसार में किसी भी धर्म के लोग अगर अपने धर्म का प्रचार करते हैं और फैलाने चाहते हैं तो वे और कुछ नहीं, केवल अपने अहंकार का विस्तार करना चाहते हैं। जिस दिन अंदर से वह अहंकार है मिट जाएगा तो कोई क्रिश्चियनिटी नहीं है, कोई हिन्दुज्म नहीं है, कोई इस्लाम नहीं है, कोई बुद्धिज्म नहीं है, कोई धर्म नहीं है। सारे धर्म एक जगह जाकर मिट जाते हैं यदि आप उस जगह पर पहुंच गये तो आत्म ज्ञान हो गया।

जब आपको यह समझ में गया तो आपमें क्रूरता की भावना आएगी ही नहीं। अशांति, नहीं आएगी; दुख, नहीं रहेगा। काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया सारे द्वंद्ध मिट जायेंगे, खत्म हो जायेंगे। बुद्ध ने क्या कहा, मैंने ध्यान में सब कुछ खो दिया। सब कुछ खो दिया- काम, क्रोध, लोभ, मोह, माया। पाया कुछ नहीं। जो मैंने अज्ञानतावश एकत्रित करके, अपनी पहचान बनाई थी कि मैं यह हूँ, वह हूँ, उसको मैंने खो दिया, जो भी मेरे ऊपर आवरण थे, वे सब निकल गए, साफ हो गए और अंत में बच गया, मैं।

अब आप आनंद स्वरूप हो, परमात्मा स्वरूप हो, परमेश्वर स्वरूप हो, शांत स्वरूप हो, गुणातीत स्वरूप हो, भावातीत स्वरूप हो, अनंत स्वरूप हो, अजन्मा स्वरूप हो, शाश्वत स्वरूप हो, सर्वत्र, सर्वव्यापी स्वरूप हो, ब्रह्म हो, जिसकी कोई जन्म मृत्यु है ही नहीं। यहां तक तो पहुँचे ही नहीं है और धर्म का साम्राज्य फैलाते है इसीलिए मैं कहता हूँ कि ये सारे जो लोग है, जो धर्म के नाम पर समाज में जाने या अनजाने में नफरत फैला रहे हैं, लोगों को विभाजित कर रहे हैं, बांट रहे हैं; उनके लिए यह समय है, जागो, समझो कि सत्य क्या है, आत्मा क्या है, वह परम तत्व कौन है, तुम कौन हो। बहुत प्रचार कर लिया अपने धर्म का, बहुत शास्त्र पढ़ लिए, अब समय गया, अब अंदर जाने का समय गया है, भीतर मुड़ने का समय गया है, बहुत घूम लिए बाहर।

पूरे देश में, पूरी पृथ्वी पर जितने सारे कंट्रीज है, हर जगह पर, लोगों की जो मानसिकता बनी हुई है, जो भीतर संस्कार पड़े है, बुद्धि की जो दशा हुई है, ये सब धर्म से हुई है। लोगों में जो संस्कार बने है, वे उनके घर परिवार, मां-बाप से बने है, जिस समाज धर्म से वे बंधे है। उनके डीएनए में उनका धर्म दौड़ रहा है। इसीलिए पूरे विश्व में जितनी नफरत और बुरे कर्म हो रहे हैं, यह धर्म को अच्छी तरह से ना समझने के कारण है। असली धर्म क्या है, असली धर्म सत्य है, परमात्मा है, परमेश्वर है। असली धर्म भीतर घटता है। बाहर जो धर्म प्रचलित है, ये शब्दों का, और हमारे मन का, माया जाल का धर्म है यह धर्म आपको सुख शांति नहीं देगा, यह धर्म आपको सिर्फ यही सिखाएगा कि पाप कर्म क्या है, पुण्य कर्म क्या है, क्या शुभ है और क्या अशुभ है।

हिंदू कहेंगे कि हम सबसे महान है क्योंकि हमारे भारत में सारे देवी-देवता आए। हमारे यहां समय-समय पर भगवान ने अवतार ले-ले लेकर हमें समझाया है। क्रिश्चयन कहेंगे कि हमारा जीसस महान है, मुसलमान कहेंगे कि हमारा हज़रत मोहम्मद महान है, वह मैसेंजर है, उन्होंने सब बताया। इसी प्रकार, सब इसी में बंठे हुए हैं, मेरा-तेरा, तेरा-मेरा। यहां तक कि भगवान को भी बांट देते हैं, मेरा भगवान, तेरा भगवान। सिखाने वाले की शिक्षा को तो जीवन में उतारा ही नहीं। सिखाने वाले ने तो अपना धर्म फैलाया ही नहीं। उनको मानने वालों ने तो उसे ही बांट दिया है।

भारत में कृष्ण को लेकर, शिव को लेकर, अलग-अलग देवी-देवताओं को लेकर लोग बंटे है। कृष्ण के फॉलोअर्स कहते हैं कि कृष्ण परम है, शिवा के फॉलोअर्स कहते हैं शिव ही सबकुछ है। अरे भाई, परमात्मा सर्वव्यापी है। आत्मा सर्वव्यापी है, आत्मा कण-कण में है, हर जगह है, हर चीज में है। फिर कैसे तुम बांट सकते हो। गीता को मानते हो, कृष्ण को मानते हो, पर कृष्ण की बात को नहीं मानते हो। गीता में साफ लिखा है, वह कण-कण में है। परमेश्वर, परमात्मा क्रिश्चियन में, बुद्धिस्ट में, हिन्दु में, मुस्मिल में प्रत्येक में व्याप्त है, हर जगह व्याप्त है। उसके लिए तो ये विभाजन है ही नहीं। फिर हम बांट कैसे सकते हैं। जिसे बांट नहीं सकते है, हमें वहां तक पहुंचना है। जहां पर बांटना हो रहा है, तो वहां पर मारपीट की प्लानिंग चलती है, नफरत की प्लानिंग चलती है, झगड़ा-झंझट की प्लानिंग चलती है। जहां पर बांट ही नहीं सकते है कि मेरे लिए अब कोई क्रिश्चियन नहीं है, बुद्धिस्ट नहीं है, कुछ नहीं है तब आप इंद्रिय जीत बन गए, इंद्रिय विजेता बन गए, तीनों लोकों के मालिक बन गए। अब तीनों लोक आपमें है। आप उस स्थिति में पहुंच जाते हैं।

सारे धर्मों का उद्देश्य यही होना चाहिए कि मैं खुद को कैसे मिटा दूं। लोगों ने धर्म के मूल मर्म को भूलाकर, धर्म को शुभ-अशुभ, शुद्ध-अशुद्ध, पाप-पुण्य कर्म में परिभाषित कर दिया है और इसके चक्र में लोगों को फंसा कर रख दिया। पूरे जहां में जहर डाल दिया है कि हिंदू शैतान है, हम महान हैं, मुस्लिम शैतान है, हम महान है। सभी धर्मालम्बियों को लगता है कि हम महान है, बाकी सब सही रास्ते पर नहीं है। ये सब बंद होना चाहिए अब, यह द्वंद्ध का, द्वेत का खेल। परमात्मा ने किसी को बांटा ही नहीं। परमात्मा को जानने वालों ने, मानने वालों ने, फॉलो करने वालों ने धर्म के नाम पर सबकुछ बांट दिया।

अब आप मुझे बताइए कि क्या परमात्मा ऐसा करेगा कि किसी एक धर्म के लोगों को ज्यादा प्यार मोहब्बत देगा और किसी दूसरे को नहीं देगा। सभी तो परमात्मा के ही बच्चे हैं, तो परमात्मा तो सबके लिए एक जैसा, एक स्वरूप, एक बराबर है ना। परमात्मा तो कोई पार्शियलिटी, भेदभाव नहीं करेगा, ना।

जो अपने आप को क्रिश्चियन कहते है, अपने आप को हिंदू कहते हैं, सनातन कहते हैं, बुद्धिस्ट कहते हैं, मुस्लिम कहते हैं, यहूदी कहते हैं या जो भी धर्म का कहते हैं, तो आप मुझे बताइए कि क्या परमात्मा ऐसा करेगा कि तुम हिंदू नहीं हो इसलिए मैं तुम्हें कम प्यार करूंगा। या तुम मुस्लिम नहीं हो इसलिए मैं तुम्हें कम प्यार करूंगा। ऐसा है क्या? नहीं ना। तो ये सारे जो धर्म के नाम पर अपना झंडा गाढ़ कर रहे हैं, आपने धर्म का साम्राज्य फैला रहे हैं, जो अपने धर्म के नाम पर प्राउड फील करते हैं, उनको मैं यह कहना चाहता हूँ कि परमात्मा सारे धर्म के लोगों के लिए एक बराबर है, एक जैसा है, सबके अंदर है, सर्वव्यापी है, इसीलिए हर धर्म के लोगों के अंदर एक ही परमात्मा का दर्शन करो। उससे प्रीत करो, उस प्रीत के महासागर में डूब जाओं।

सबके अंदर उस आत्मा को देखो। सब के अंदर उस परमात्मा के दर्शन करो, चाहे वह किसी भी धर्म का हो। क्योंकि परमात्मा सबके भीतर है, सर्वत्र है, सब जगह है। इसलिए सबके अंदर उसी एक परमात्मा के दर्शन करो। सभी को सबके अंदर परमात्मा का दर्शन करना चाहिए, बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी जाति-धर्म के, बिना कोई ऊंच-नीच के। किसी की जाति देखें, किसकी कास्ट क्या है, कौन ब्राह्मण है, कौन शुद्र है, कौन वैश्य है, कौन क्षत्रिय है, कौन क्रिश्यचन है, कौन किस जाति-धर्म का है, सभी भेद-भाव को पार कर जाओ और उस अभेद में चलें जाओ, उस अद्वैत में प्रवेश करके, उसी एक परमात्मा का दर्शन करो और परमात्मा बन जाओ।

यही मेरा मैसेज है, उन सभी लोगों के लिए जो धर्म के नाम पर एडिक्ट है और अपने अहंकार का साम्राज्य फैला रहे हैं, उसे खत्म करो और अंदर अपने स्वरूप को जानो, भीतर की ओर मुड़ो, खुद को जानो और खुद में सबको देखों, सबसे प्रेम करों। प्रेम का साम्राज्य फैलाओ। बाहर के धर्म को नष्ट करने की कोशिश ना करें। कोई भी धर्म है, उस धर्म में भी परमात्मा ही है। सब धर्म में परमात्मा है। परमात्मा ही, सब को देखो। कोई भेदभाव ना करो। जानने का मन है तो सारे धर्मों को पढ़ो, जानो। तो सारे धर्म के लोग, सब एक साथ हो जाएं, सब एक हो जाएं। क्योंकि हम सब एक ही है। हमारा जगत एक स्वरूप हैं। सब कुछ, सूक्ष्म जगत से लेकर स्थूल जगत, निराकार जगत सब कुछ आपका ही स्वरूप है, आपका ही रूप है इसलिए अपना ही सब में दर्शन करों। धन्यवाद।   

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