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साक्षी ध्यान विधि

(हर समय ध्यान में कैसे रहे)

जब नकारात्मक घटना आती है, कोई आपसे तर्क कर रहा है, कोई गाली दे रहा है, कोई झगड़ा हो गया, किसी ने ऐसा कटु शब्द बोल दिया है जिससे आपको दुख पहुँचा, उस वक्त स्थिरता बनाए रखिएगा, धैर्य शक्ति बनाए रखिएगा। यह साधना है आपके लिए। सामने वालों को सुनने के लिए यदि आप में धैर्य शक्ति है, स्थिरता है, तो यह भी आपका ध्यान है। मैं ऐसा नहीं कर रहा हूँ कि उसको आपको कुछ बोलना नहीं है, जरूरत पड़े तो दो बात आप भी बोले। लेकिन उस वक्त भी आप ध्यान रखें कि मेरा शरीर एक यंत्र है और शरीर के द्वारा प्रकृति उसको भी कुछ बोल रही है, मैं द्रष्टा बनकर देख रहा हूँ, साक्षी बनकर देख रहा हूँ।

इसको मैं कहता हूँ कि कन्वर्ट योर टॉक इनटू मेडिटेशन, बिकॉज यू आर नॉट टॉकिंग। अपनी बातचीत को ध्यान में बदल दो क्योंकि आप बातचीत नहीं कर रहे हो, आप बात नहीं कर रहे हो। जब भी किसी से बातचीत चल रही हो, लड़ाई-झगड़ा मारपीट भी हो तो खुद को पीछे से खड़े होकर देखो कि यह मेरा मन कर रहा है और मन, बुद्धि, अहंकार, ये प्रकृति के विभाग है। हर क्षण को ध्यान बना लीजिए। जब किसी से बात कर रहे है और यह सोच रहे है कि मैं कर रहा हूँ तो यह कर्ता भाव है, ऐसे करने से आप अकर्ता से कर्ता में शिफ्ट हो जाते है। आपका जो घर है, आप उस घर को छोड़कर दूसरे के घर में घुस जाएंगे तो लड़ाई झगड़ा तो होगा ही फिर।

कर्ता भाव जाएगा, वहां पर आप भ्रमित हो जाएंगे तो इसलिए तुरंत कन्वर्ट योर टॉक इनटू मेडिटेशन, चाहे जो भी परिस्थिति हो। आप घर पर गए, किसी ने कुछ बोल दिया, उसकी आवाज आपके भीतर गई, उसकी बात आपके अंदर गई तो आपकी चेतना के अंदर, अब उसकी बात ही आपके लिए एक क्वेश्चन पेपर है, परीक्षा है।

सामने वाले को तो धन्यवाद देना चाहिए, किसको, जो आपको ज्यादा दुःख पहुंचाता है, जो आपको हर्ट करता है, क्योकि वही आपको इस संसार से निकालने वाला है। जो व्यक्ति हमेशा आपकी तारीफ करता है, वो हो सकता है आपके अहंकार को और चरम सीमा तक बढ़ा देगा। जो आपको ज्यादा दुःख पहुंचाता है, हर्ट करता है, वही तो बताएगा कि अभी भी तुम स्थिर नहीं हुए हो, स्थिर चित्तवाला नहीं हुए हो, अभी भी तुम निरोध नहीं हुए हो। हमने आपके भीतर अपनी बातों का हाथ डाला तो उससे अभी भी विष निकल कर रहा है। जिस दिन हम हाथ डालेंगे और निकल कर कुछ नहीं आयेगा, खाली हाथ आयेगा, उस दिन तूम स्थिर चित्त वाला होंगे। जैसे आप मुझे जितनी भी गाली दे, कुछ भी करें, कुछ भी बोले, आपकी बात एक हाथ की तरह है जो मेरे अंदर गई कुछ निकालने के लिए, निकल कर कुछ नहीं आया। यदि विष है तो निकल कर जाएगा। यदि मेरे भीतर क्रोध है तो आपका हाथ रूपी बात क्रोध लेकर आएगी। और अगर क्रोध नहीं है तो क्या लेकर आएगी प्रेम।

तो इसलिए इसको भी ध्यान में बदल देना है कि जब सामने वाला ऐसी बातें कह रहा है जो आपको पसंद नहीं है और आप अपने मन का संतुलन खो रहे हैं, तो इसका मतलब सामने वाले व्यक्ति ने आपको तुरंत अपने बस में कर लिया, नियंत्रण में कर लिया है। मैं तो पुरुषों को कहता हूँ कि जब रास्ते पर चल रहे हो, कोई सुंदर स्त्री रही है और घूमकर जैसे ही तुमने देखा तो यह होश में रहना चाहिए कि मैं क्यों देख रहा हूँ, क्योंकि स्त्री की सुंदरता ने तुम्हें तुरंत बस में कर लिया। तुम आत्म ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान की तो बात छोड़ो, एक सुंदरता का विचार मन में आया और तुम्हें बस में कर लिया।

आप कमजोर हो कि सामने वाले व्यक्ति ने दो ऊँची आवाज लगाई और आप काँपने लग गए, क्रोधित हो गए। आप संसार के बहुत कमजोर व्यक्ति हो। जो शक्तिशाली होता है, वह तो स्थिर रहता है, स्थिर चित्त वाला होता है। सामने वालों की बातों से प्रभावित नहीं होता है। आराम से बातें करेगा, शांतिपूर्वक बातें करेगा, विवेक पूर्ण बात करेगा, लड़ाई झगड़ा नहीं करेगा।

कमजोर व्यक्ति का स्विच कोई भी दबा सकता है, और वह तुरन्त स्टार्ट हो जाएगा, रेडियो और टेलीविजन की तरह। तो देखना इन बातों को, आप मेरे कहने का तात्पर्य समझ रहे होंगे। शिविर से जब वापस घर जाएंगे तो देखना कि पूरे संसार के हाथ में, परिवार वाले के हाथ में, कहीं आप अपना स्विच देकर तो नहीं रखे हो। ट्रेन में जाओगे, तब भी कोई स्विच दबायेगे, घर पर जाओगे तब भी कोई स्विच दबाने वाले रहेंगे, जैसे ही स्विच दबायेगे, किसी की भी ओर से कोई एनर्जी आपकी पास आई, बात आई, आंखों से किसी ने गुस्से की नजर से देखा, नफरत की नजर से देखा, ईर्ष्या भाव से देखा, जैसे ही अंदर गई, तुरंत आपको सजग हो जाना है, अवेयर हो जाना है कि उसकी बात भीतर गई तो मेरे अंदर क्या घटित हो रहा है, मेरे अंतर जगत में, मेरे आंतरिक जगत में क्या हो रहा है। अंतर्मुखी हो जाना है, तुरंत दृष्टा बन जाना है। बाहर नहीं देखना है बाहर तो आंखों फाड़कर सबको रहे हो और उन लोगों के अंदर की कमिया भी दिखती है इन आंखों से, उनके हाव भाव आदि। आप बाहरी दृष्टा, दूसरों के दृष्टा बने हुए हो। दूसरों के दृष्टा संसार के सारे लोग बन के बैठे है। आपकी गली में कोई घर है, क्या पहन की निकलती हैं, क्या पहन कर आती है वह लड़की, सब नजर रखते हैं। कौन लड़का आया, कौन व्यक्ति आया, किससे बात कर रही है, रास्ते पर निकल कर कितनी देर तक बात कर रही है, सब दृष्टा बन के पड़े हुए हैं, लेकिन अपने दृष्टा कोई नहीं बनते हैं।

मैं कह रहा हूँ कि अब आपको अपने दृष्टा बनना है। कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोले, तुरंत अपने ध्यान को अंदर ले जाना है, और देखना है कि मेरे हृदय में, क्या इमोशन फूट रहा है, गुस्सा रहा, तो गुस्से को पलट कर आप देखना शुरू कर दीजिए। अरे, गुस्सा रहा, रहा है, रहा है, मैं देख रहा हूँ तू भी आजा, कैसे रहा है। आप पूरे सजग हो जाएंगे तो गुस्सा खत्म हो जाएगा, ही नहीं पाएगा, उसका निरोध जाएगा, वो जलकर भस्म होने लग जाएगा। एक एक जो भी इमोशन रहा है, एक एक जो भी बात मन में रही है, एक एक जो भी विचार रहा है अंदर, तुरंत दृष्टा बनकर देखना शुरू करो। किसी की भी बात से अंदर प्रभावित कौन हो रहा है, तुरंत दृष्टा बन जाओ। यह चौबिस घण्टें की जाने वाली ध्यान की विधि बताई है मैंने।

इससे पहले कहा कि नकारात्मक घटनाएँ तो चालू ही रहेगी, कब तक, जब तक यह शरीर रहेगा। बड़े-बड़े साधु महात्माओं की जिंदगी में भी बीसों बीमारियां आई, वे तो आती जाती रहेगी, यह शरीर तो नश्वर है। प्रकृति हर क्षण बदल रही है। बदलाव ही प्रकृति का शाश्वत नियम है। ध्यान में रखना है, कभी भी नहीं चाहना कि मेरा बेटा, मेरा बेटी, मेरी पति या मेरी पत्नी अभी जैसा है, ऐसे ही सदा रहे। ऐसा चाहत पालकर दुःख की बेड़िया लगा ली है आपने। जब प्रकृति बदल रही है तो सब बदल जाएंगे। आज आपके पति या पत्नी जैसी है, कल ऐसी नहीं रहेगी, बदल जाएंगे, उनका शरीर बदल जाएगा, उनकी मानसिकता बदल जाएगी, उनकी ऊर्जाएँ बदल जाएगी।

यदि उनका कोई पहले का प्रारब्ध है, तो प्रारब्ध बस कभी जेल में चले जाएंगे, किसी से लड़ाई झगड़ा हो जाएगा, किसी से मारपीट हो जाएगी, किसी और से शादी भी हो सकती है, कुछ भी हो सकता है तो सर्टेनिटी, निश्चितता प्रकृति में नहीं है और जो सर्टेनिटी ढूंढता है, वह दुखी हो जाता है। सिर्फ आत्मा तत्व ही अबदलाव है, केवल वही बदलती नहीं।

प्रकृति में कोई भी चीज के साथ, आप चाहेंगे कि अब ऐसा ही मेरी सिचुएशन रहेगी, नहीं, आज आपके सामने जो पुत्र है, कल उसकी मृत्यु हो सकती है, उसकी डेड बॉडी आपको जलानी पड़ सकती है, ऐसी सिचुएशन सकती है। लेकिन आप क्या चाहते हैं कि यह जीवित ही रहे, यही गलत है। प्रकृति में कब क्या घटना घटेगी, यह आपको पता नहीं है इसीलिए अपने आप को हमेशा वर्तमान में रखना है, सहज भाव में रखना है, जो कुछ भी होगा, पूरी स्थिरता के साथ, मैं स्वीकार कर लूंगा। मैं कहता हूँ कि बाद में स्वीकार करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है क्योंकि स्वीकार करने वाला भी नहीं बचता है। कहते हैं ना लोग, ‘‘एक्सेप्ट सिचुएशंस एज दे आर" परिस्थितियाँ जैसी है, उन्हें वैसी ही स्वीकार कर लो। यही साधना है। बाद में एक्सेप्ट करने की भी जरूरत नहीं पड़ती है, अपने आप हो जाती है।

तो जब आप वापस घर जाएंगे तो इन चीजों पर ध्यान रखना है, आपकी परीक्षाएँ आएगी, आपके बेटा से, बेटी से, पुत्र से, समाज से, प्रकति से, मौसम से हर तरह से आएगी, लेकिन उसमें अगर आप हृदय में गुरु के प्रति श्रद्धा भक्ति रखते हुए कि गुरु जी ने मुझे कहा है मेरे सामने वाला जब भी मुझसे बात करेगा, कटु वचन बोलेगा तो मुझे स्थिर रहना है, गुरु ने मुझे कहा है कि स्थिर शांत रहना है, विवेक पूर्ण रहना है, जब सामने वाला कह रहा है, उसकी बात मेरे अंदर जा रही है, अपने भीतर प्रवेश कर रही है तो उसकी बातों से मेरे अंदर क्या लहर उठ रही है, उसको भी मैं दृष्टा भाव से देख रहा हूँ। फर्स्ट पोजीशन, सेकंड पोजीशन मैं थर्ड पोजीशन में गया हूँ। तब उयसे आप आराम से बातचीत करें। तो यह आपका ध्यान बन जाएगा।

प्रारब्ध बस नकारात्मक और सकारात्मक सिचुएशन तो आती रहेंगी, सबकी। आप लोग यहां पर आए हैं और यदि यह सोच रहे है कि  यहां पर गए है तो हम पूरे पॉजिटिव हो गए है और जाएंगे तब हमारी जिंदगी में कोई नकारात्मक घटनाएँ नहीं घटेगी, यह बिल्कुल गलत सोचना है। हमारे यहां पर आने से और तेजी से नकारात्मक घटनाएँ घटती है। अब वापस जाएंगे तो उल्टा और तेजी से घटेगी, क्योंकि आपके जो प्रारब्ध है, वे तेजी से खत्म होंगे, कटेंगे। प्रारब्ध यानी कि हमारे जो कर्म है वो तो आएंगे ही। हमने जो कल कर चुके है उसका परिणाम आज हमारे पास आना ही आना है। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है। इससे कोई नहीं बच सकता है। तो उस समय यह मत सोचना कि गुरुजी के शिविर में जाने के बाद भी कुछ फायदा नहीं हुआ, क्यों कि मेरी जिंदगी में, मैं जैसा चाहता हूँ वैसा तो होता ही नहीं है।

    आप याद रखना, गुरु का काम होता है आपकी चाहत को ही मार देना। इसीलिए प्रकृति को अपनी चाहत के अनुसार चलाने की कोशिश मत करना और गुरु को भी चलाने की कोशिश मत करना, अपनी चाहत के अनुसार। वैसे भी आपकी चाहत के अनुसार होता नहीं है क्योंकि आप तो दृष्टा मात्र हो, अकर्त्ता हो। जिस दिन आपको यह पता चलेगा तब सोचोगे मैं इतने दिन बेवकूफ बुद्धु बना पड़ा था। धन्यवाद।

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