गुरू शिष्य की एक छोटी सी कहानी शेयर कर रहा हूँ। एक समय एक साधक एक गुरु के पास पहुंचा और उस गुरु को कहा कि गुरु जी, मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ। जब साधक ने गुरु से कहा कि मैं आपका शिष्य बनना चाहता हूँ, आपके मार्गदर्शन में साधना करना चाहता हूँ, अपने लक्ष्य को पूरा करना चाहता हूँ, तब उस गुरु ने उस शिष्य की परीक्षा लेने की सोची। गुरू ने उस साधक से कहा कि मैं तुम्हारी एक परीक्षा लूंगा। यदि तुम उसमें उत्तीर्ण हो गये तो मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा। शिष्य ने स्वीकार कर लिया। तो गुरू ने उस साधक को कहा कि मेरे पास एक चिड़िया है, तुम इस चिड़ियां को कहीं ऐसी जगह ले जाओ और इसकी गर्दन मरोड़ दो, इसकी हत्या कर दो, जहां तुम्हें यह करते हुए कोई नहीं देखता हो और इसकी हत्या करके मेरे पास आना है, यही तुम्हारी परीक्षा है।
यह सुनकर वह शिष्य अंदर से दंग रह गया कि अरे, ये क्या? परीक्षा मैं गुरु जी मुझसे एक चिड़िया की हत्या करवाएंगे! वह यह बात सोच ही रहा था, तभी गुरु जी ने उसे पुनः स्मरण करवाया कि ध्यान रखना, जो मैंने कहा है कि इस चिड़ियां की हत्या उस जगह पर करना जहां तुम्हें कोई ना देख रहा हो। तुम्हे ऐसा करते हुए यदि किसी ने देख लिया तो तुम इस परीक्षा में फेल हो जाओगे अर्थात् जब तुम हत्या कर रह होंगे, उस वक्त तुम्हें कोई देखना नहीं चाहिए। गुरूजी से उसने यह बात सुनी, और उसने गुरु जी वह चिड़िया ली और जाने की अनुमति ली।
गुरूजी से वह चिड़िया लेकर वह साधक रवाना हो गया। चलता गया, चलता गया लेकिन हर तरफ कोई ना कोई था। उसने भीड़भाड़ से हटकर नया रास्ता पकड़ लिया ताकि वहां उसे कोई नहीं देख सकें। चिड़िया की गर्दन मरोड़ने से पहले उसने इधर-उधर देखा, नजर दौड़ाई कि कोई आ तो नहीं रहा है, मुझे देख तो नहीं रहा है, ताकि मैं यहीं पर उस चिड़िया की गर्दन मरोड़ दूं, तब तक दूर से लोग आते हुए नजर आए, वे उसकी तरफ देखते हुए आ रहे थे। यद्यपि वे आस-पास नहीं थे, किन्तु वे दूर से उसे देख रहे थे। इसलिए वह वहां से हट गया और आगे चलता गया। चलते-चलते वह एक खाली मैदान में पहुँच गया जहां दूर-दूर तक कोई मनुष्य दिखाई नहीं दे रहा था।
वह मैदान के उस कोने में गया जहां एक पेड़ था। वहां जाकर वह उस पेड़ के नीचे बैठ गया। फिर सोचा कि मैं अब यहां पर इसकी हत्या कर दूँ, इसकी गर्दन मरोड़ दूँ। फिर उसने आस-पास देखा। तो उसने पाया कि आस-पास कुछ जंतु है, गाय-बकरी है ,वे देख रहे हैं मुझे। अरे, ये देख रहे तो यहां भी मैं इसकी हत्या नहीं कर पाऊंगा। फिर उसने सोचा कि अब मैं कहां जाऊं। तो मैदान के बगल में ही जंगल था, तो वह जंगल के अंदर चला गया। काफी अंदर जाने के बाद उसने सोचा कि अब यह सही जगह है। वह वहां फिर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और चारों ओर देखा कि मुझे यहां कोई देख तो नहीं रहा है। तभी उसकी नजर पेड़ की डाल पर बैठे एक पक्षी पर पड़ी। वह पक्षी उसकी ओर ही देख रहा था। उसने खुद से बोला, अरे, यहां तो वह पक्षी मुझे देख रहा है। उसने सोचा कि यहां पर भी मैं यह काम नहीं कर पाऊंगा। अब क्या करूं?
वह कई जगह गया, उसने कई उपाय किए लेकिन हर उपाय फैल हो गया। अंत में, उसके दिमाग में एक आईडिया आया कि अब मैं जमीन खोदता हूँ, एक गड्डा बनाता हूँ और गड्डे में बंद हो जाता हूँ। उसके अंदर कोई मुझे नहीं देख पायेगा। उसने खुदाई की, गड्डे में चला गया और ऊपर से कुछ ढक दिया। जब वह अंदर चले गया और सोचा कि अब तो मुझे कोई नहीं देखेगा। थोड़ी देर के लिए वह शांत होकर बैठ गया। फिर सोचा कि अब मैं यहां पर इसकी गर्दन मरोड़ सकता हूं। यहां मुझे कोई नहीं देख पायेगा।
परन्तु जैसे ही उसकी गर्दन मरोड़ने के लिए वह मेण्टली तैयार हुआ तो उसने देखा कि अरे, मेरा हाथ मुड़ रहा है, उसकी गर्दन मरोड़ने के लिए। इसका मतलब मेरे भीतर कोई है जो यह सब देख रहा है कि मैं इसकी हत्या करने वाला हूँ। मेरे भीतर बैठा कोई देख रहा है। तो वो घबरा गया। अद्भुत! वह विचार करने लगा कि मैं कहां जाऊं? कैसे करूं? मैं तो कर रहा हूँ, लेकिन मेरे भीतर कोई है जो यह देख रहा है निरंतर। अंत में उसने अपने आप से कहा कि नहीं, मुझसे यह काम नहीं होगा। भले ही मुझे उस गुरु का सानिध्य नहीं मिलें। मुझे कोई देख रहा है, फिर मैं इसको कैसे मार दूँ।
कोई भी व्यक्ति गलत काम कब करता है, जब उसको लगता है कि मुझे कोई नहीं देख रहा है, तभी वह गलत काम करता है। जब उसको लगता है कि कोई मेरे आस-पास है, कोई देख रहा है, तो गलत काम कर ही नहीं सकता है। और जिसको उसके भीतर वाला मिल जाए निरंतर देख रहा है, जिसको उस साधक जैसी खुद को देखने की दृष्टि मिल जाए, तो वह गलत काम कर ही नहीं सकता है। गलत काम करना तो बहुत दूर, दिमाग में गलत विचार आना भी बड़ा मुश्किल हो जाएगा।
वह साधक सरेंडर हो गया और उस गुरु जी के पास गया और कहा कि अपनी चिड़िया लीजिए। मुझे आपका सानिध्य नहीं चाहिए क्योंकि मैं इसकी हत्या नहीं कर पाया। गुरु जी ने उससे कहा कि क्यों, क्यों नहीं कर पाए? तो उसने पूरी कहानी बताई और अंत में कहा कि मैं गड्डे में भी गया और सोचा कि इसकी गर्दन मरोड़ दूँ लेकिन मैंने देखा कि मेरे भीतर कोई है, कुछ है जो मुझे निरन्तर देख रहा है इसलिए मैं यह काम नहीं कर पाया।
तब गुरु जी मुस्कुराए और कहा कि तुम मेरी परीक्षा में पास हो गए। आज से तुम मेरे शिष्य हो। तुम आश्रम में रह सकते हो। तो पहले के समय में ऐसी ऐसी परीक्षाएं, कभी-कभी गुरू लेते थे। जब शिष्य गुरू की परीक्षा में सफल होता है तभी वह गुरु का मार्गदर्शन प्राप्त कर सकता है, ज्ञान प्राप्त सकता है। यदि वह शिष्य गर्दन मरोड़ कर आ जाता तो गुरु कहते कि अभी जाओ, हो सकता है, तुम्हे और कई जन्म लग जायेंगे या किसी दूसरे गुरु के पास भेज देते। लेकिन उस शिष्य ने यह एग्जाम पास कर लिया।
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