गुरु जब शक्ति पात करता है तो मूल बात यह है कि वह एक एनर्जी आप में प्रवेश करता है। जब वह एनर्जी प्रवेश करेगी तो वह आपकी पात्रता के अनुसार ही प्रवेश करेगी कि आपकी पात्रता कितनी है; क्योंकि इस संसार में, इस जगत में, जिसकी जितनी पात्रता होती है, स्थूल जगत में भी, सभी लोग आईएएस ऑफिसर नहीं बन सकते हैं। जिसकी पात्रता है वही एग्जाम पास कर सकते हैं, वही अधिकारी बन सकते हैं, बाकी लोग नहीं बन सकते है। हालांकि चाहत तो सबकी होती है। आध्यात्मिक मार्ग भी ऐसा ही एक मार्ग है। इस मार्ग में भी, अपने आप को, आप ही देखें कि मैं कितना अच्छा हूँ, कितना बुरा हूँ, मैं अंदर से कितना शुद्ध हूँ, कितना अशुद्ध हूँ।
इस मार्ग में, प्रथम तो आपको प्यूरिफिकेशन की जरूरत पड़ती है, शुद्धता की जरूरत पड़ती है। कितने हम द्वैष से भरे है, नेगेटिविटी से भरे हुए है, इसके लिए शुरू में हमें सात्विक आयामों की जरूरत पड़ती है। आगे चलकर उसे भी छोड़ देना पड़ता है। शुरूआत में ये हमारे लिए सहायक है।
तो शक्तिपात दीक्षा में, जब कोई भी गुरु इनिशिएट करता है तो एनर्जी आपमें प्रवेश करती है, एनर्जी आपमें स्थापित होती है। वह एनर्जी धीरे-धीरे आपको पूरी तरह से मुक्ति , मोक्ष या ईश्वर के दर्शन या स्व का बोध कहिए, जिस अर्थ में आप समझ सकते हैं, उधर लेकर जाती है। कोई कोई विरला होता है कि बहुत जल्दी ही परम सत्य को, परम ज्ञान को, परम शांति को पा लेता है, कोई-कोई। वो लाखों- करोड़ों में एक होता है। बाकियों की यात्रा शुरू होती है। अब इसी में से, कुछ लोग जल्दी ही, जैसे ही शक्ति पात करते हैं तो उनके अंदर कुछ वाइब्रेशन स्टार्ट हो जाता है या कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है। कुंडलिनी शक्ति के बारे में आप लोगों ने सुना होंगा! हमारे अंदर उस शक्ति की अवेकनिंग भी स्टार्ट हो जाती है। लेकिन मैक्सिमम लोगों की अवेकनिग थर्ड आई तक होती है, कभी-कभार ऊपर सहस्त्रार तक आती है।
लेकिन यह यात्रा यही तक नहीं है। यह तो एक शुरुआत है, इसे एक प्रकार से छोटा-मोटा साक्षात्कार समझ सकते हैं या आप ऐसा भी समझ सकते है कि आपके सूक्ष्म शरीर के अंदर कुछ घटित हुआ है। लेकिन यही सब कुछ नहीं है। ध्यान देना है। जब इनिशिएशन किया जाता है तो जिनकी पात्रता होती है, जो योग्य शिष्य है, वह तो इस शिविर के पहले दिन, दूसरे दिन, इन तीन-चार दिनों में ही 80 प्रतिशत साधक अवेक हो जाते हैं। जिन साधको की पात्रता है वे तो पहले ही दिन जागृत हो जाते है और जिनकी पात्रता कम है, धीरे-धीरे उनकी पात्रता बढ़ती है और वे भी अवेक होने लगते है। अवेक भी कैसे होते हैं, पहले दिन पहले सेशन में 5-10 साधक, फिर नेक्स्ट सेशन में कुछ, फिर नेक्स्ट सेशन में कुछ। इस प्रकार शिविर के अंतिम दिन तक 80 प्रतिशत साधक अवेक हो जाते हैं। कुछ जो साधक बच जाते हैं, वे जब घर पर जाते हैं, आगे ध्यान करते हैं तो घर पर अवेक होते हैं। कुछ यहां से जाते से ही, रास्ते में ही जाते-जाते अवेक हो जाते हैं।
जो बच जाते है, घर पर दो-तीन महीना ध्यान करना है और फिर दोबारा आना है, फिर नहीं हुआ तो फिर आना पड़ेगा। धीर-धीरे जब प्यूरिफिकेशन हो जाती है, नेगेटिविटी हट जाती है और जैसे ही ट्रैफिक क्लीयर होता है, एकाग्र हो पाते है, शुद्ध हो जाते है, तब वह स्प्रीचुअल घटना आपके अंदर घटित होती है। यदि कोई पूरा नेगेटिविटी से भरा पड़ा हुआ है, लोभ, मोह, काम, क्रोध से परिपूर्ण है और चाहे कि इस प्रकार की पवित्र घटना आपके अंदर घट जाएं, तो ऐसा नहीं होता है। अपने आप को शुद्ध करना पड़ता है। अपने आप को प्योर करना पड़ता है। अपने आपको पूरी एनर्जी से भरना पड़ता है। जैसे बिना इलेक्ट्रिसिटी ना फेन चलेगा, ना एसी चलेगा। इसी प्रकार से हमें अंदर एनर्जी चाहिए। एनर्जी से ही हम छलांग लगते है आगे की ओर। इस एनर्जी से हमारे अंदर की छापों-संस्कारों का नाश होता है। अंदर की वृत्तियों का नाश होता है और सूक्ष्म शरीर के अंदर वह घटना घटित होती है जिसे हम कुंडलिनी शक्ति का जागरण कहते हैं या सुषुम्ना नाड़ी का एक्टिवेशन कहते हैं। सुषुम्ना नाड़ी से एनर्जी फ्लो होकर ऊपर आने लगती है।
तो आप लोगों से यही कहना चाहता हूँ कि जब इनिशिएशन की जाती तो मन में अगर यह आशा आप रखे हुए हैं कि गुरु जी मेरे पास में आएंगे और मुझे छुयेंगे तो मैं जागृत हो जाऊँगा, इसे पूरी तरह से अपने दिमाग से बाहर निकाल दीजिए; क्योंकि आपकी पात्रता होगी तब ही मैं आपकी ओर खींचा आऊँगा। अगर पात्रता नहीं होगी तो आपको शिविर में दो बार, तीन बार भी आना पड़ सकता है। जब मैं देखूंगा कि आप एकाग्र हो गए हैं तभी इनीशिएशन की जाएगी। एकाग्र नहीं होंगे तो इनीशिएशन नहीं की जायेगी। जैसे मैं कहता हूँ कि एकत्रित लकड़ियों में आग सुलगाई जा सकती है, बिखरी हुई लकड़ियों में अगर आग जलाने चाहेंगे तो नहीं जलेगी। अगर आप आंख खोल के देखते रहेंगे, आंख नहीं भी खोलेंगे लेकिन एकाग्र नहीं होंगे तो आप पर इनिशिएशन उस लेवल पर काम नहीं करेगा। प्रवेश करने के लिए, आपको थोड़ा सा द्वार खोलना पड़ेगा। ध्यान से मेरी बात समझ लीजिए। दूसरा कोई रोता है, चिल्लाता हैं, उठ कर जाते हैं तब भी आपका ध्यान केवल खुद पर रखना है, कोशिश करना है अपने भीतर ही जाने के लिए, एकाग्र होने के लिए। कोशिश करना कि मैं कैसे एक विचार पर ठहर जाऊँ, एक ही विचार पर ठहर जाना।
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