मेडिटेशन क्यों करना चाहिए। मेरे पास बहुत सारे लोग आते है और कहते हैं कि सर, मुझे मेडिटेशन करना है। जब मैं उनसे पूछता हूँ कि आपको मेडिटेशन करना क्यो है तो कोई कहते है कि मेरे गुस्से को कम करने के लिए, कोई कहते है कि मेरे अंदर से नेगेटिविटी को दूर करने के लिए, कोई कहते है कि मुझे बिमारी है, उस बीमारी को ठीक करने के लिए। मैक्सिमम जो लोग जाते हैं ऐसी ही बातें करते हैं। उनको यह पता ही नहीं है कि मेडिटेशन करना क्यों है, मेडिटेशन का परम उद्देश्य क्या है, ध्यान का परम उद्देश्य क्या है।
शारीरिक बीमारियों को ठीक करना, मानसिक बीमारियों को ठीक करना, साइकोलॉजिकल बेनेफिट्स, फिजिकल बेनेफिट्स ये सब तो है ही। साइकोलॉजिकल बेनेफिट्स, फिजिकल बेनेफिट्स, मेंटल बेनेफिट्स, इस तरह के हजारों बेनेफिट्स से तो है ही यदि आप ध्यान करेंगे तो लेकिन हम इन बेनिफिट्स पर ज्यादा बात नहीं करते हैं। लोग वैसे भी लोभी है ही, हमेशा फायदें के बारे में सोचते हैं और यदि हम इन बेनिफिट्स के बारे में बोलेंगे तो बस, इन्हीं बेनिफिट्स के लिए वे ध्यान करने लग जाएंगे और उसके आगे कभी नहीं निकल पाएंगे।
वे सोचेंगे कि मैंने ध्यान किया और मेरी बीमारी ठीक हो गई, अब मुझे ध्यान करने की क्या जरूरत है। तो हमें इस भ्रम से निकलने की जरूरत है कि ध्यान केवल तात्कालिक लाभ के लिए है। मेडिटेशन का परम उद्देश्य यह नहीं है। हमारे यहां जो मेडिटेशन सिखाया जाता है, जो ध्यान और प्राणायाम सिखाए जाते है और जो भी ज्ञान दिया जाता है उसका परम उद्देश्य है, परम सत्य को जानना, परमतत्व को जानना यानि खुद को जागना, आप इसे आत्म साक्षात्कार कह लीजिए, गॉड-रिअलाईजेशन कह लीजिए। हठयोग में कहा गया है, उन्मानी की अवस्था को प्राप्त करना, तटस्थ हो जाना आदि ये सभी पर्यायवाची शब्द है। उसे परम शिव या परम कृष्ण कहिए, या दैवीय शक्ति, ये सभी पर्यायवाची शब्द है। वह परम चेतना है, परम सत्य है, वह एक ही है। हजारों सालों से लोग, हजार तरीके से पूजते हैं, पुकारते हैं, ध्यान-तपस्या करते हैं। सत्य तो एक ही है। तो उस परम सत्य की उपलब्धि के लिए हम मेडिटेशन करवाते हैं जिसकी गौतम बुद्ध ने, कबीर साहब ने उपलब्धि की थी, परम सत्य को जाना था, खुद को जाना था।
आप अपने आपको शरीर मानते हैं, अपने आपको शरीर तक सीमित मानते है कि सबकुछ आप शरीर ही है, सीमित तक सीमित है। जबकि वास्तव में आप बहुत विशाल है, इतने विशाल है कि आपको मापा नहीं जा सकता है, आप खुद को नहीं माप सकते हैं। आपके सारे दुखों का कारण है कि आप अपने आपको बहुत सीमित, इस शरीर तक सीमित समझ रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं है। आप जप ध्यान सीख लेते हैं, जब ध्यान करते हैं और ध्यान घटित हो जाता है तो आपको एक ऐसी विराटता का अनुभव होगा कि आपका मन, शरीर, बुद्धि, अहंकार सब हिल जाते है। कुछ समझ नहीं आता है। मानो अभी तब एक रूम में बंद थे और अचानक से उसे खोल दिया गया और अचानक से आप पूरे बदल जाते हो। अब तक आप जो सोच रही थे कि मैं यह हूँ, अब लगता है कि मैं तो वह हूँ ही नहीं। जो सोच रहे थे उसकी मृत्यु ही हो गई। आपकी अपनी खुद की बनाई हुई आईडेण्टिटी थी कि मैं हिंदू हूँ, मैं मुस्लिम हूँ, मैं सिख हूँ।
जो भी आपकी आईडेण्टिटी, पर्सनैलिटी आपके मन में बनी हुई थी, वह फूली डिज़ोल्ड, भंग, विघटित हो गई। अंहकार शून्य हो गया। महाशून्य हो गया। परम चेतना में प्रवेश करके परम चेतना ही हो गया। इसलिए एकबार तो सब कुछ हिल जाता है।
तो संपूर्ण दुखो की निवृत्ति का रास्ता मात्र एक ही है और वह है स्वयं को जानना या आत्म साक्षात्कार या परमात्मा का साक्षात्कार या कह लीजिए गॉड-रिलाइजेशन। जब तक आपको परम सत्य, परमात्मा की उपलब्धि नहीं होंगी तब तक आपकी कोई भी समस्याओं का निवारण नहीं है, आप चाहे लाख कोशिश कर लीजिए। कितनी भी कोशिश कर लीजिए, अमीर से अमीर व्यक्ति बन जाइए, फेमस से फेमस पर्सन बन जाएं, इस दुनिया में चाहे कुछ भी करते हुए तो भी आपके अंदर वह परम शांति, परम आनंद कभी नहीं आ सकता है। आएगा लेकिन क्षणभंगुर खुशी आएगी और फिर चली जाएंगी। आएगी और चली जाएगी। यह प्रकृति है, प्रकृति में सब कुछ घूम रहा है, कुछ भी स्थिर नहीं है, इसीलिए अस्थिरता में स्थिरत को प्राप्त करना है। उस केंद्र पर पहुंचना है जहां आपके शरीर, आपके मन, आपकी बुद्धि के द्वारा पहुंचा जा सकता है, ये सभी आपके साधन है, जानने के लिए, स्वयं की उपलब्धि के लिए। हजारों ऐसी टेक्नीक्स है, मैथड्स है जिससे आप स्वयं की उपलब्धि कर सकते हैं, स्वयं को जान सकते है।
कई प्रकार के ध्यान है जो आपके स्वभाव के तदनुरूप है उस ध्यान को आप अमल कीजिए, उस पर चलिए, अपने जीवन में। जो भी ध्यान, योग, तपस्या, मंत्र, जप, कीर्तन, संकीर्तन ये सब उस महा परमशांति, परमसुख, निराकार, आनंदस्वरूप सागर की ओर ही लेकर जाता है। लेकिन आपको यह ज्ञान होना चाहिए कि मैं जो कीर्तन कर रहा हूँ, संकीर्तन कर रहा हूँ सत्संग सुन रहा हूँ, ध्यान कर रहा हूँ, तपस्या कर रहा हूँ जप भी कर रहा हूँ, किसलिए कर रहा हूँ। मैं ईश्वर की उपलब्धि के लिए कि यह सब कर रहा हूँ, यह बात क्लियर-कट आपके दिमाग में होनी चाहिए। इसलिए हम जब ध्यान करवाते है तो पहले बताते है कि वाय मेडिटेशन, ध्यान क्यों करना है।
आप जब अंतिम अवस्था तक पहुँच जाते है, अपने आपको जान जाते है, परम सत्य के साथ एक हो जाते हैं, तो इसे कहा जाता है कि आप पूरे एक्जिस्टेंस के साथ एक हो गए, एकात्म। अस्तित्व के साथ एक होने के प्यार में जब आप होते है तो आप एक अनन्त, शास्वत, अजन्मा, निश्चल, परम प्रकाश की तरह स्वयं को पाते है आप। परम चैतन्य की उपलब्धि होती है। हम इसके लिए ध्यान करवाते हैं। इस ध्यान की यात्रा में छोटे-छोटे गिफ्ट मिल ही जाते है। कोई शारीरिक, मानसिक बीमारी, जो कुछ भी है, वह ठीक हो रहा है, तो होने दो। लेकिन आसक्त मत हो, वो तो केवल गिफ्ट है। सामान्य दुनिया में भी जब हम बड़ी चीजों की प्राप्ति में लगते हैं, बड़ा लक्ष्य है तो उसे प्राप्त करने के दरम्यान छोटी-छोटी चीजें प्राप्त हो ही जाती है हैं।
यदि आप सोचेंगे कि मैं मेरी बीमारी को ठीक करने के लिए ध्यान करूं, तो आप इतनी भिखारी की तरह हो जो बस केवल शरीर में अटका हआ है, अपने भौतिक शरीर में ही अटके हुए हो। हमारे यहां पर आध्यात्मिक जागरण की बात की जा रही है, अंदर , ध्यान में, उस परम नित्य ज्योति की खोज में उतरना है। जब यहां आपको कहा जाता है कि भीतर उतरना है तो लोग सकते हैं कि यह पाँच-छः फुट के शरीर के भीतर उतरने की बात कर रहे है, अरे नहीं भाई। अंदर उतरते-उतरते ब्रह्मांड के अंदर उतरते है और फिर ब्रहमांड के भी पार चले जाते है जहां से ब्रह्मांड निकल कर आया है और उसके साथ एक हो जाते हो और मालिक बन जाते हो, राजा बन जाते हो, स्थूल, सूक्ष्म और कारण जगत शरीर के मालिक बन जाते हो। हम इसके लिए ध्यान करवाते हैं। बाकी सब, शारीरिक बिमारियाँ, मानसिक बिमारियाँ, अपने आप खत्म होती है। जब परमात्मा की उपलब्धि हो जाती है, परमात्मा का साक्षात्कार हो जाता है यानी कि स्वयं को जान जाते हो, तो आपको कई प्रकार की उपलब्धियाँ होती है, कई प्रकार के सिद्धियाँ आ जाती है, तो आने दीजिए, भले कोई भी सिद्धी आएं, आपके बहुत सारे चक्र, हैण्ड चक्र खुलेंगे, तो खुलते है तो खुलने दीजिए, सिद्धियां आने दीजिए। लेकिन उनमें फंस कर अटक नहीं जाना है। हमारा लक्ष्य है परमात्मा का साक्षात्कार।
बहुत सारे लोग आध्यात्मिक यात्रा में, जब ध्यान करते है और उनको जब सिद्धियाँ मिलती है तो वे इसमें अटक जाते हैं और वे और ज्यादा, और ज्यादा की आशा करने लगते है, मुझे ये सिद्धी चाहिए, मेरी यह आकांक्षा पूरी हो जाएं आदि आदि। ऐसे साधक सिद्धियों में अटक कर जन्मो-जन्मो तक भटक जाते हैं। तो आपको सिद्धियों में अटकना नहीं है, उस तरफ ध्यान ही नहीं देना है। क्या करेंगे अगर आपको सिद्धी प्राप्त हो भी जाएं, 10 साल, 20 साल से सिद्धियों में मग्न रहोगे तो परम सत्य से दूर रहोगे। इसलिए सिद्धियों, कामनाओं के चक्कर में बिल्कुल ना रहें। ये सब स्वतः ही आएगी, अपने आप आती है लेकिन हमें बिना इसमें आसक्त हुए आगे बढ़ते रहना है। आपका लक्ष्य अंतिम सत्य तक पहुंचना है अतः आप पहले उस ब्रह्म में प्रवेश करें और ब्रह्म ही हो जाएं, यहीं हमारा लक्ष्य हो और इसीलिए हम ध्यान करवाते हैं।
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