Blogs

  • Home
  • Blog
  • ध्यान कौन कर सकता है? आपका ध्यान क्यों नहीं लगता?
VjxcN9P2fuykDnB1asbCrgATI.jpg

प्रकृति पहले अव्यक्त अवस्था में होती है फिर सत, रजस और तमस इन तीन गुणों के कारण प्रकृति व्यक्त होती है। जैसे आपके घर पर जो कुछ भी उपलब्ध है-आटा, दाल, चावल; ये सभी भोजन का अव्यक्त रूप है, उसी से तो आप खाने के लिए कुछ बनायेंगे, जो उपलब्ध नहीं है उससे कैसे बनायेंगे। उन पदार्थों से जब भोजन बन गया तो वह व्यक्त रूप में आ गया।

इसी प्रकार प्रकृति पहले अपनी मूल अवस्था में रहती है, उसमें जो होता है, उसी से वह व्यक्त होती है। पूर ब्रह्मांड का कण-कण इन्हीं तीन गुणों सत, रजस और तमस से परिपूर्ण है और हम सभी लोगों का शरीर, मन, बुद्धि सभी इन तीन गुणां से ही बनी है।

प्रकृति के तीन ये तीन सत, रजस और तमस ही क्रियाशील है, ये तीन गुण पूरी प्रकृति में व्याप्त है। इन तीन गुणों के अनुसार आहार, विचार, ज्ञान, बुद्धि के प्रकृति अलग-अलग डिपार्टमेंट है। तमस का एक अलग डिपार्टमेंट है, राजसिक वृत्ति वाले का आहार, ज्ञान, बुद्धि, विचार यह अलग है, इसी प्रकार सात्विक।

कहा जाता है कि ध्यानी वही हो सकता है जो सात्विक वृत्ति वाला है। मेरे उद्देश्य आपको कम समय में समझाना, इस पर बहुत बड़ा प्रवचन दिया जा सकता है, प्रकृति के तीन गुण पर। लेकिन हमारा हाईलाईट इस बात पर है कि सात्विक वृत्ति वाले ही ध्यान कर सकते हैं या सात्त्विक वृत्ति वाले ही ध्यान से जुड़ सकते हैं। गलती से राजसिक और तामसिक वाले ध्यान में आ भी गए तो एक-दिन जागते है फिर उनको बहुत जगाना पड़ता है, बहुत। जैसे सामान्य नींद में आलसी बहुत मुश्किल से उठता है, कभी-कभी तो पानी भी डालना पड़ता है जबकि सात्विक व्यक्ति एक बार कहते ही उठ जाता है।

कोई-कोई तो ऐसे तामसी और आलसी होते है कि घर में चोरी हो रही है, तो बोलते है, चोरी होने दो परन्तु मुझे अभी सोने दो। उसको लगता है कि नींद से बड़ा अभी कुछ भी नहीं है है और वास्तव में, नींद प्रगाढ़ आनंद की अवस्था है, नींद में आपको बहुत गहरा आनंद मिलता है, इसीलिए नींद सबको प्यारी होती है। आप जब नींद में सो रहे हो और कोई आपको डिस्टर्ब करें तो उस वक्त वह इंसान आपके लिए सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है क्योंकि वह हमारी शांति और आनंद की राह में डिस्टर्ब कर रहा है। 

जबकि सात्विक वृत्ति वाले लोगों का आहार, विचार, बुद्धि, सोच के बारे में थोड़ा सा मैं बताता हूँ-वे आलसी नहीं होते हैं, उनमें ईर्ष्या नहीं होती हैं, वे दूसरो से तुलना नहीं करते हैं, काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, अंहकार के प्रति आसक्ति नहीं रहती हैं या लगभग आसक्ति रहित रहते है। उक्त सभी बुराईयों के प्रति लगभग आसक्ति रहित रहते, संपूर्ण नहीं, लेकिन कोशिश रहती है कि इनकी ओर मैं खींचा ना जाऊँ।

सात्विक वृत्ति वाले लोग दूसरों से प्रेम करते हैं, निस्वार्थ भाव से। एक दूसरे की सहायता करते हैं। सत्य वाचन करते हैं। उनमें सहन शक्ति होती है। हर परिस्थिति का सामना करने की उनमें शक्ति होती है। चीजों को सही तरीके से परखने और निर्णय लेने की शक्ति होती है। ये सभी दैविक गुण है यानी कि डिवाइन वर्चूज। दैविक प्रवृत्तियाँ ही हमारे भीतर सात्विक गुण है। इनका आहर सात्विक होता है, इनका आहार शुद्ध होता है। कहते है ना कि अन्न ही मन है। आज विज्ञान भी कहता है कि हम जो लेते हैं वहीं मन है। मन और शरीर एक दूसरे का पूरक है। मन में जो घटता है वह शरीर के माध्यम से घटता है और शरीर में कुछ होता है तो मन में अहसास होता है। 

सात्विक वृत्ति वाले लोगों की प्रत्येक चीज सात्विक होती है, सात्विक पढ़ना, सात्विक जीवन, सात्विक देखना, सात्विक सुनना, सात्विक स्पर्श, सात्विक दर्शन, सात्विक आहार, सात्विक जगहों पर भ्रमण, सात्विक लोगों से मिलन। इस प्रकार वे लोग सात्विक ईको-स्टिम या डिपार्टमेण्ट से जुड़े रहते हैं। उसके मोबाइल में सोशियल मिडिया पर सात्विक लेख, सात्विक विडियो, सात्विक ऑडियो ही देखने को मिलेंगे। इनके हृदय में क्षमा भाव रहता है। ये किसी को भी क्षमा कर देते हैं। तो ऐसे धैर्य शक्तिवान, क्षमावान, सत्य का सेवन करने वाले, ईर्ष्या रहित, आसक्तिरहित दैविक गुण वालों के लिए असली में ध्यान है। उनको ही ध्यान लगता है। उक्त वृत्तिवाले ही ध्यान से कनेक्ट कर पाते है।

सत, रजस और तमस ये तीन ही बंधन के कारण है। इसमें बंधे हुए है लोग। हमारा जीव या कहे आत्मा वह इसमें बंधा हुआ है। हमें इससे पार निकलना है, इससे जो पार चला गया, वो तर गया। आप यदि तामसिक बुद्धि वाले हो तो आपको तामसिक से राजसिक पर आना है, फिर राजसिक से सात्विक पर। जब आप में सात्विकता आ जायेगी तो आपका ध्यान लगना शुरू हो जायेगा। तभी आप एकाग्र हो पाओगे। फिर एक दिन आप इन तीनों गुणों से ऊपर चले जायेंगे जो कि निर्गुण की अवस्था है। हम परमात्मा को कहते हैं निर्गुण की अवस्था। वहां पर कोई हलचल नहीं है, साइलेंस है। परम शांति, परम आनंद, ज्ञान स्वरूप, नित्य स्वरूप सत्चित्त आनंदस्वरूप, निराकार स्वरूप। एक दिन आप उस जगह पर पहुंच जाते हो। इन तीनों गुणों को ही हमें पार करना है। जब कोई भी साधक, कोई भी मेडिटेटर इन तीनों गुणों से पार चला जाता है, तभी उसका जीवन सफल होता है। अन्यथा सभी भटक ही रहे है जैसे दुर्गा पूजा में छोटे बच्चे का माँ-बाप से हाथ छुट जाता है और वे कैसे भटकते है वैसे आप सब भटक रहे हो। 

राजसिक वृत्ति वाले इच्छाओं से परिपूर्ण होते हैं, महत्वाकांक्षी होते हैं, बहुत बड़े-बड़े सपनों में ही खोए रहते हैं, विषयों के प्रति आसक्त रहते है और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। हर क्षण उसी में लीन रहते हैं। उनका ध्यान हमेशा बाह्य जगत की ओर प्रवाहित हो रहा है। उनकी नदी की धार बाहर की ओर बह रही है। वे अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए आसक्तियुक्त होकर बाहर की ओर बह रहे हैं। राजसी लोग गुस्सेले होते है, उनके अंदर गुस्सा बहुत होता है, इनके अंदर लोभ होता है, इनके अंदर चिंताएंँ होती है, इनके अंदर अहंकार होता है, इनके अंदर इर्ष्या होती है, निरंतर कॉम्पिटिशन होता है, तुलना होती है, ये दूसरों की सफलता देखकर भी खुश नहीं होते हैं। मेरा नाम कैसे हो, मेरे पास ज्यादा पैसा कैसे आएं, हमारे परिवार कैसे खुश रहें। ये इच्छाओं से परिपूर्ण होते हैं। ऐसे लोग अशांत होते हैं और चंचल रहते हैं। इस प्रकार राजसिक वृत्ति वाले लोग काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह से परिपूर्ण होते हैं। इनका भोजन बहुत मसाले युक्त और गर्म होता है।

अब सात्विक आहार क्या है, हल्का, ताजा और शुद्ध शाकाहारी भोजन सात्विक होता है। सात्विक आहार में लहसुन और प्याज भी आते है, यहां तक कि दूध भी वर्जित है, अगर ना लेता है तो अच्छा है। राजसिक वृत्ति वाले को बहुत चटक-मटक, तेल-मसाला युक्त भोजन चाहिए जैसे, तली हुई चीजें, मसालेदार व्यंजन, चाय, कॉफी, चॉकलेट, मिठाईयां, मांस, डेयरी प्रोडक्ट आदि। राजसिक भोजन टेस्ट में भले ही अच्छा लगते हो लेकिन बेचैनी, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, अनिद्रा, अंशाति बढ़ाता है।

यदि आप चाहते हो कि मेरी जिन्दगी में शांति आएं, मेरी जिन्दगी में सुख आएं तो आप चाहते हो कि मेरी जिंदगी में प्रेम की गंगा बह जाएं, प्रेम की धारा बहें, मैं सुख पूर्वक जीवन  जीऊँ, शांतिमय जीवन जीऊँ, प्रेममय बन जाऊं, तो आपको पूर्णतया सात्विक भोजन लेना पड़ेगा। इधर आप राजसिक आहार ले रहे है और उधर सुख-शांति का जीवन चाहते है, बिना सात्विक आहार के सात्विक परिणाम हो नहीं सकते है। आपको जैसा रिजल्ट चाहिए, वैसा आंसर भी तो लिखना पड़ेगा ना। क्वेश्चन के आंसर्स कुछ और लिख रहे हो और एक्सपेक्ट कर रहे हो रिजल्ट कुछ और आएं, ऐसा तो हो नहीं सकता। 

यह एक अलाइनमेंट है, अगर आपको परम शांति की अनुभूति करनी है, शांति रूपी, परम सागर, महासागर मैं आपको प्रवेश करना है, अगर आपको आनंद चाहिए, प्रेम चाहिए, शांति चाहिए, सुख चाहिए तो आपको सात्विक आहार ही लेना चाहिए।

तामसिक प्रवृत्ति वालों लोगों का आहार राजसी प्रवृत्ति वालों लोगों की तरह ही होता है। विशेष रूप से बासी, बचा हुआ, मांस, नशीला जो शरीर और मन पर बहुत ही बूरा असर करता है। तामसिक भोजन से शरीर को शक्ति और ऊर्जा नहीं मिलती केवल पेट भराई होती है। तामसिक भोजन सुस्ती और आलस्य बढ़ाता है। तामसिक वृत्ति वाले लोगों में आलस, जड़ता, मूढ़ता, मादकता रहती है। जड़ता मतलब इनमें कोई एक्टिवनेस, फुर्तिलापन नहीं होता, आलस्य रहता है, यही जड़ता है। मूढ़ता मतलब कोई ज्ञान ही नहीं रहता कि जीवन में क्या करना है, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, अपने बारे में कोई खोज ही नहीं, केवल पशुवत जीते है। मादकता मतलब ये नशीलें पदार्थों का सेवन करते है। तो ये तामसिक वृत्ति वाले लोग है।

पूरे ब्रह्मांड में ये तीन गुण व्याप्त है। ब्रह्मांड इन तीनों गुणों से ही चल रहा है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश को प्रकृति के तीन गुणों सत्व, रजस और तमस से जोड़ा गया है। ब्रह्मा को राजसिक गुण का प्रधान माना जाता है, विष्णु को सात्विक गुण का प्रधान माना जाता है, महेश को तमो गुण का प्रधान माना जाता है। परमाणु के तीन भाग- इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की भी वहीं कहानी है। इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन और ब्रह्मा, विष्णु और महेश के गुणधर्म एक जैसे ही है। इलेक्ट्रॉन नेगेटिवली चार्ज होकर घूम रहा है, प्रोटॉन पॉजिटिवली है और एक न्यूट्रल है। जो प्रोटॉन कहते है वह ब्रह्मा शक्ति है। इलेक्ट्रॉन विष्णु की शक्ति है जो कि पालन कर रहा है, घूम रहा है। न्यूट्रॉन शिव की शक्ति है। आप एक एटम के स्ट्रक्चर को साइंटिफिकली भी देखोंगे तो यही पाओगे। न्यूट्रॉन शिव की शक्ति है क्योंकि शिव वह चीज को न्यूट्रल करना चाहता हैं। इन्हीं शक्ति को कहते है- ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ये सब प्रतीकात्मक है, इनमें मत फंस कर मत रह जाना।

यह शक्ति हर कण-कण में व्याप्त है, हर जगह व्याप्त है। अब इसे आप साइंटिफिकली समझो या शास्त्रों के अनुसार समझो। बात एक ही है। तो ये आहर भी तीनों गुणों से परिपूर्ण वाले आहार हैं। पृथ्वी पर लोग भी इन तीन प्रवृत्ति के हैं। पूरी पृथ्वी के लोगों में से आकपो कुछ लोग सात्विक मिलेंगे, जो सबसे प्रेम करते हैं, ईर्ष्या रहित मिलेंगे, तुलना रहित वाले लोग मिलेंगे। कुछ रासिक वृत्ति के लोग भी मिलेंगे और कुछ लोग तामसिक वृत्ति वाले भी मिलेंगे। सत, रजस और तमस इन तीन गुणों में लोग भी बंटे हैं, आहार भी बंटा है  और सब कुछ बंटा हुआ है। फिल्म भी बंटी हुई है, गाने भी बंटे हुए है, किताबें भी बंटी हुई है। जो जैसी वृत्ति वाले हैं, वे उसी वृत्ति वाली चीजों में संलग्न है। 

जब हम ध्यान की बात करेंगे, मेडिटेशन की बात करेंगे तो यहां पर सात्विक वृत्ति वाले लोग ही ध्यान में जा सकते हैं। राजसिक वृत्ति वालों का मन ही बहुत चंचल है, तो उनका ध्यान कैसे लगेगा। वे ध्यान के लिए बैठेंगे लेकिन उनका ध्यान बाहर ही जाएगा, घर में जाएगा, ऑफिस में जाएगा, सपनों में चला जाएगा, कहीं और खो जाएगा लेकिन बाहर ही जाएगा, आदत पड़ी हुई है बाहर जाने की। कई जन्मों से उस वृत्ति में है, बाहर ही भटक रहा है, अब अचानक से कोई आकर बोले कि तुम भीतर जाओ, अब भीतर कैसे जायेंगे और जाता कौन है, मन। मन ही तो भीतर और बाहर जाता है। 

और जो तामसिक वृत्ति के, मूढ़ अवस्था में है, उनकी तो बात ही छोड़ दो, उनको तो कुछ मतलब ही नहीं है ध्यान से। अब कम-अधिक ये तीनों गुण आप लोगों में भी हैं, किसकी क्या वृत्ति है, यह आपको खुद ही ढूंढना है। इन तीनों गुणों की खास बात यह है कि इन तीनों गुणों का कंपटीशन चलता रहता हैं; जैसे सात्विक विचार के लोग चाहते है कि समाज सात्विक हो जाएं, समाज में सुख-शांति हो, हत्याएं ना हो। यहां तक कि वो चाहते हैं कि एनिमल्स की भी हत्या ना। सभी अच्छे कर्म करें। 

राजसिक लोग अहम भाव में ज्यादा जीते है, मैं‘पन में जीते है, हर पल मेरा-मेरा-मेरा, नेम-फेम पॉपुलैरिटी चाहिए। भाग रहे, दौड़ रहे जिंदगी में, पता है कि सब छोड़कर जाते हैं अंत में, कुछ लेकर तो जाते नहीं है। तो राजसिक वृत्ति के लोगों के लोभ के कारण ही समाज में चोरी, डकैती, करप्शन, हत्याएं होती है। तुम मेरी राह के रोड़े बन गए, मेरे सपनों को पूरा करने में बाधा डाल रहे हो, ऐसा सोचकर, जरूरत पड़ी तो सामने वाली की हत्या करवा देते है राजसिक लोग या दुश्मनी मोल ले लेंगे क्योंकि मेरी जो पैसा आ रहा था, तुमने उसमें बाधा उत्पन्न कर दी, तो उसके साथ दुश्मनी कर ली। अब उनमें दुश्मनी हो गई। ये सब राजसिक वृत्ति वालों लोगों की प्रवृत्तियां होती है।

ये तीनों गुण एक दूसरे से कंपटीशन करते रहते हैं। जैसा समाज में हो रहा है, वैसा आपके अंदर भी हो रहा है। आप लोगों ने कभी ख्याल नहीं किया है, ऐसा नहीं है कि आप हमेशा राजसिक में ही रहते हो, कभी सात्विक पर आ जाते हो। ये तीनों गुण एक दूसरे को हराने में लगा रहते है। राजसिक चाहता कि मैं तामसिक और सात्विक को हरा करके में राजा रहूँ। सात्विक चाहता है कि मैं तामसिक है राजसिक को नीचे दबाकर, मैं राजा रहूं और इसी प्रकार तामसिक चाहता है कि मैं सात्विक और राजसिक को नीचे दबाकर, मैं इन दोनों पर डोमेन रहूं, इन दोनों पर मेरा प्रभुत्व रहें। चारों तरफ नजर दौड़ाएं तो सभी इसी में तो लगे है कि सभी जगह मैं ऊपर रहूं, मैं यहां का मालिक रहूं, मुझे सीनियर पोस्ट मिलें, सभी लोग इसी में लगे है। पद, प्रतिष्ठा, पोजीशन, पॉवर सभी इसके चक्कर में लगे हुए हैं। आपके अंदर भी यही वृत्ति काम कर रही है, यही वृत्ति अन्दर और बाहर, एक समूह में काम कर रही है। इसीलिए जो आपके अंदर है वहीं बाहर है। जो आपके अंदर घटना घट रही है वह बाहर भी घट रही है। 

इसी प्रकार से कभी कभी राजसिक वाले लोगों के अंदर सात्विक वृत्ति आ जाती है, कुछ दिनों के लिए, कुछ महीने के लिए और वे सात्विकता में रहते हैं किन्तु कुछ समय बाद फिर बिछड़ जाते हैं जब वे वापस राजसिक लोगों से मिलते है, या वैसी फिल्म देखते है, या वैसे ही वातावरण में जाते है तो उनकी सात्विकता दब जाती है और राजसिकता ऊपर आ जाती है। लेकिन तामसिक डायरेक्ट सात्विकता पर नहीं आता है। तामसिक कभी-कभी राजसिक हो सकता है। पशुवत जीवन जीने वाले समाज में अनेक तामसिक लोग है, जो सात्विक और राजसिक पर हावी रहते है। तो सात्विक, राजसिक और तामसिक गुणों का निरन्तर कंपटीशन हमारे अंदर  चलते रहता है।

एक योगी का मुख्य लक्षण सात्विक वृत्ति की निरंतरता बनाए रखना है। वह हमेशा सात्विक आहार लेता है, सात्विक प्रवृत्ति में रहता है, सात्विक विचार करता है, सात्विक चीजों को पढ़ता है, सात्विक चीजों को सुनता है, सात्विक लोगों से मिलता है। हमारी बुद्धि-विचार जब सात्विक हो जाती है तब ही हम ध्यान कर सकते हैं। सात्विक होने के लिए आपको बहुत प्रवचन सुनना पड़ते है, बहुत ज्ञान लेना पड़ता है, बहुत अध्ययन करना पड़ता है। प्रकृति, ब्रह्मांड, माया, सत्य के प्रति तब कहीं जाकर धीरे-धीरे जाकर वह वृत्ति आती है। जब वह वृत्ति आज जाएं तब आप सोचना कि अब ध्यान में एकाग्र हो सकते है। एकाग्र मतलब की अब भीतर आपका ध्यान लगेगा अन्यथा आंख बंद करके आप भले कितना ही बैठो, मगर ध्यान बाहर ही रहेगा, भीतर नहीं जायेगा।

Leave a Comment

300 characters remaining