Blogs

  • Home
  • Blog
  • तुरंत ध्यान में कैसे जाये? - मृत्यु ध्यान विधि
E4INeM7PpYT12giV38vCQHlFO.jpg

        रमन महर्षि का नाम सुना होगा, आपने। 12 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हो गया था। ध्यान देने वाली उनकी माता ही थी। पढ़ाई में उनका विशेष रूचि नहीं थी किन्तु शुरू से ही अध्यात्म में रूचि थी। जब वे 17 साल साल के थे, उनके घर में किसी की मृत्यु हो गई। बीमार होने के कारण मृत्यु से ठीक पहले परिवार के सदस्य वहीं बैठे थे, रमण भी वहीं बैठे थे। रमण ने देखा कि सब लोग रोने-चिल्लाने लगे। चला गया, चला गया, बोलकर रो रहे थे। रमण बुद्धि लगा रहे है, चला गया! कहां चला गया! शरीर तो इधर ही पड़ा है। जब कोई मर जाता है तो बोलते है, न, कि चला गया। तो रमण सोच रहे थे कि कहां चला गया। सत्रह साल के किशोर सोच में पड़ गया।

        इस जीवन में, आध्यात्मिक जीवन में उनका कोई गुरू नहीं था। मैं आपको बता रहा हूँ कि उनका आध्यात्मिक जीवन की शुरूआत कैसे होती है। इधर सदस्य बोल रहे थे, चला गया, चला गया और रो रहे थे दूसरी तरफ रमण के दिमाग में विचार चलने लगे कि कहां चला गया, मैं तो सामने ही बैठा हूँ, कैसे और कहां चला गया जबकि शरीर तो अभी भी पड़ा ही है। जबकि सब लोग आ रहे है, रो रहे है और ऐसे ही बोल रहे है। इधर बाहर लोग रो रहे है, रमण वहां से उठे कमरे में गए और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। अब 17 साल के बच्चे की बुद्धि कितनी काम करेगी। रूम बंद करके, वह लेट गए और लेट कर मरने का प्रयास कर रहे हैं। यह देखने के लिए कि कौन जाता है, क्या जाता है, मैं भी मर कर देखूं। ध्यान और कुछ नहीं है, अंत में मृत्यु को प्राप्त करने जैसा ही है। तो रमण जमीन पर लेट गए और मरने का भाव कर रहे हैं। और आपको पता हो कि जो जैसा भाव करें, वैसा ही शरीर रूप लेने लगता है, शांत होने लगता है, शिथिल होने लगता है। अब यदि मैं आप लोगों में यह भाव उत्पन्न करवाऊँ कि बहुत गर्मी है, बहुत गर्मी है तो आप एसी में बैठे हो तो भी आप को गर्मी लगने लग जायेगी। तो जैसा भाव करोगे, वैसा एनर्जी फ्लो हो जाती है। एक बार बहुत गर्मी में, मैंने लोगों को भाव करवाया कि बहुत ठंड है, बहुत ठंडा हे तो लोग कंपने लग गए, एक आदमी तो बहुत देर तक कंपता ही रहा। उनको मैं पूरे हिमालय पर्वत पर इमैजिनेशन में लेकर चला गया था।

        सच तो यह है कि जो बाहर ए.सी. लगी है, वैसी ही आपके अंदर भी एक ए.सी. फिट है। लेकिन आप लोग भीतर की ए.सी. को यूज ही नहीं करते हो। गर्मी है और ठंड का भाव करोगे तो आपके अंदर का ए.सी. भी ऑन हो जाता है। हिटर भी है, हीटर भी ऑन हो जाता है। आपको दोनों देकर रखा है। वही तो बाहर निकला हुआ है, वह नहीं होता प्रकृति में तो बनता कैसे। आपके अंदर ही सब कुछ है, इतने यंत्र है भीतर कि आज तक वैज्ञानिक पूरी तरह से समझ नहीं पाए। 

        तो रमण यह भाव करने लगे कि मैं मर रहा हूँ, मर रहा हूँ, मर रहा हूँ। जैसे भाव करता गया, तो शरीर शिथिल होते गया, बिल्कुल स्थिर, शिथिल, हाथ-पैर ठंडे पड़ने लग गये, उनका हिलना-डुलना बंद हो गया। कभी ध्यान में होता है ना, एक उंगली भी चाहे तो हिलती नहीं है। ऐसे ही पड़े रहे। धीरे-धीरे इतने अंदर जाते गए, जाते गए कि जाते-जाते उन्हें पता ही नहीं चला कि उनका श्वांस भी रूक सा गया, श्वांस का आना-जाना रूक गया और किसी भी प्रकार की आवाज सुनाई देना भी बंद हो गया। क्योंकि समाधि में इन सबकी अनुभूति सब कुछ बंद हो जाता है। और इस तरह से, उसी रूम में वह कुछ देर तक पड़े रहे। 

        इसके बाद जब वापस आए, समाधि से जब वापस बाहर आए तो परिजनों के पास गये और बोले आप सब ये क्या कर रहे हो। तुम लोग का यह क्या रोना-धोना लगा हुआ है। कोई कहीं नहीं जाता हैख् कोई मरता नहीं है। बिना मतलब सब रो रहे हो, वो कहीं नहीं गया। क्योंकि रमण महर्षि अब शिवानंद में प्रवेश के आनंद को समझ गये थे कि कोई मरता नहीं, मृत्यु है ही नहीं। फिर भी लोग रो ही रहे, रो ही रहे। उन लोगों की दशा देखकर वह बोले कि मुझे इन लोगों के साथ नहीं रहना और सब कुछ छोड़कर निकल गए। मां और परिवार को छोड़ कर अरूणाचल नामक एक पहाड़ पर चले गए। वहां पर जाकर, वे बहुत सालों तक ध्यान करते रहे। यद्यपि उनकी कहानी आगे और है लेकिन मैं इसे यही पर बंद कर रहा हूँ। कभी पेड़ के नीचे चार चार दिनों तक समाधि में बैठे रहते थे, लोगों को पानी डालना पड़ता था, होश में लाने के लिए, खिलाने के लिए। 

        हमने आपको बोला ना, निर्विचार, निर्विकार स्थिति में आप चले जाओगे, जहां मन शून्य होगा, इसको समाधि कहते हैं। आप समाधि की अवस्था में चले जाएंगे। समाधि की अवस्था में आपको कोई आवाज नहीं सुनाई देता है, कोई विचार नहीं होता है कि आप कौन हो, कहां बैठे हो, यह भी पता नहीं चलता, इन सबसे परे चले जाते हो, आप होते ही नहीं हो, क्योंकि इसकी प्राप्ति की अवस्था पंच-इंद्रियों और बुद्धि से परे की अवस्था है। कभी भी, इंद्रिय और बुद्धि उधर पहुंच नहीं सकता है। तो यह मृत्यु ध्यान की विधि थी, रमण महर्षि की। 

        आप लोग भी यह ध्यान की विधि अपना सकते हो, जब भी आप पड़े हुए हो, लेटे हुए हो। भाव करो कि मेरा शरीर शिथिल हो रहा है, मर कर देखूं कि मरना क्या है। आप लोगों से मैं कहता हूँ यदि आप मरने की कोशिश करोगे तो भी नहीं मरोगे आप लोग।

        आराम से मरो आप लोग, सोकर, ध्यान में जाकर, मर सकते हैं क्या। आप लोग कहेंगे कि ऐसा थोड़े ही होता है, मरने के लिए तो सुसाइड करना पड़ता है। यानी कि आराम से मरने की शक्ति नहीं है। आराम से वही मर सकते हैं जो योगी है, जो एनलाइटेंड है, वही मरने की कला जानता है। वह कंशियसली मरता है, मरता क्या है, कंशियसली शरीर को छोड़ता है, इस शरीर को ड्रॉप कर देता है। इससे बड़ी सफलता आपको क्या चाहिए कि इस शरीर को होश में रहकर आप आराम से छोड़ सकते हो।

Leave a Comment

300 characters remaining