कैसे एक राजा की समाधि लग गई जब वह एक ग्वाला से मिला?
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एक कहानी आप लोगों से शेयर करता हूँ। एक राजा और एक ग्वाला की। एक बार एक राजा था। उसके जीवन में सबकुछ था लेकिन शांति नहीं थी। उसका राज्य बहुत बड़ा था और उसका विस्तार करता रहता था। बहुत सारे सैनिक थे। राजपाठ अच्छा चल रहा था। उसके राजदरबार में किसी चीज की कमी नहीं थी। आवश्यकता अनुसार सैनिक थे, मंत्री, राज दरबार था। राज-पाठ के सारे साधन, साजो सामान, खाने-पीने के सारे सामान अवेलेबल थे। वह हर चीज थी जिसकी उसको जरूरतें थी, उन सारी चीजों से उसका राज्य परिपूर्ण था सिवाय शांति। राजा के अंदर शांति नहीं थी। वह कभी-कभी अशांत हो जाता था। वह दुखी हो जाता था। वह सोचता था कि मैं राजा हूँ, मेरे पास सब कुछ है, यह सब कुछ है फिर भी मैं अंदर से बेचैन क्यों रहता हूँ। कई दिनों से वह अपने आप से यह प्रश्न पूछा करता था।
एक दिन वह अंदर से बहुत बेचैन हो गया और रात भर सो नहीं पाया। अगली सुबह वह अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर निकल गया। चलते-चलते पता ही चला और वह जंगल के काफी अंदर चला गया। आप लोगों ने भी कभी नोट किया होगा जब आप बैचेन होते है, गुस्से में होते हैं, तो किसी शांत जगह में जाकर अकेले बैठने को मन करता है। वहां कोई नदी हो तो नदी के पास अथवा पहाड़ हो तो पहाड़ों में अकेले बैठने का मन करता है जहां पर दूसरा कोई मनुष्य ना हो। सब कुछ छोड़-छाड़कर किसी शांत जगह में जाकर बैठने को मन करता है। ऐसी ही राजा की दशा थी। इसी प्रकार राजा अंदर बेचैन थे और जंगल में चले गए। सोचा कहीं एकांत में बैठूं। जंगल में चले तो गए लेकिन बेचैनी तो खत्म ही नहीं हो रही थी, बेचैनी तो बनी ही रही। इसी दरम्यान राजा ने वहां एक बहुत मधुर बांसुरी की आवाज सुनी।
कोई व्यक्ति था उस जंगल में जो बांसुरी बजा रहा था, बहुत ही मधुर स्वर में, बहुत ही लय, धुन में। राजा तक वह ध्वनि पहुंची। राजा के कानों में बांसुरी की वह ध्वनि उतर गई। राजा के कानों से होते हुए बांसुरी की वह ध्वनि राजा के रोम-रोम में, नाभी तक पहुंच गई। राजा ने महसूस किया कि उस ध्वनि को सुनकर वह शांत हो रहे है। राजा को वह ध्वनि इतनी अच्छी लगी कि सुनते-सुनते थोड़ी ही देर में राजा का मन शांत हो गया तो राजा के मन में एक प्रश्न आया, एक जिज्ञासा जग्रत हुई कि उस बांसुरी वादक से मिलने की कि यह कौन बजा रहा है, इतनी सुंदर, इतनी सुरीली ध्वनि। इतनी मधुर आवाज में बजा रहा है। जरूर यह कोइ्र्र शांत स्वभाव वाला व्यक्ति है। क्योंकि जो अंदर से कोई शांत होगा वहीं सुंदर म्यूजिक बजा सकता है। मधुर बांसुरी बजाने के लिए उसे उसमें डूब जाना पड़ता है। बाह्य जगत के जितने भी तनाव है, उनसे मुक्त होकर ही कोई मधुर संगीत बजा सकता है। इतनी सुंदर लय निकाल सकता है।
राजा बांसुरी की आवाज को सुनते-सुनते, आवाज को फॉलो करते हुए उस व्यक्ति तक पहुंच गए। वहां पहुंच कर देखा कि एक पेड़ के नीचे एक निर्धन व्यक्ति, एक ग्वाला बैठा था। वह काफी खुश दिख रहा था, सुखी दिख रहा था और शांत बैठा हुआ था और बांसुरी बजा रहा था। वह बालक कुछ गायों को लेकर जंगल में आया था और गायें चरा रहा था। राजा उस ग्वाला के पास पहुंचे और उसे कहा कि तुम बड़े सुखी, शांत और खुश दिख रहे हो। लेकिन तुम्हारे कपड़ों से तो लग रहा है कि तुम बहुत निर्धन हो, गरीब व्यक्ति हो। तुम्हारे पास धन दौलत नहीं है तो भी इतने शांत, सुखी और खुशी कैसे हो। यह कैसे संभव है।
ग्वाला ने जब राजा को देखा, पहले तो उसने राजा को प्रणाम किया फिर ज्वाला ने कहा राजा से कहा कि राजा साहब, मैं बहुत ही सरल व्यक्ति हूँ, मुझमें कोई खास बात नहीं है। मैं कोई असाधारण व्यक्ति नहीं हूँ मैं बहुत ही साधारण व्यक्ति हूँ और मैं बहुत सुखी हूँ, बहुत ही खुश हूँ मेरी जिन्दगी में। मेरे अंदर कोई चिंता नहीं है। मैं बहुत शांत हूँ। मैं अंदर शांति है, यह बात सही है और इसकी कारण है कि मेरे मन के अंदर गंदे विचार, कामनाओं के विचार, फ़ालतू के विचार नहीं चल रहे हैं जो मुझे अशांत करें। इसलिए मैं शांत हूँ। अगर मन में गंदे विचार आ जाए, फ़ालतू के विचार चलने लग जाए, तो अशांत हो जाएंगे लेकिन मेरे साथ यह नहीं होता इसलिए मैं शांत हूँ।
तो राजा को समझ में आया कि मेरे अशांत होने का कारण कहीं यह तो नहीं है कि मेरे अंदर गंदे विचार चलते है, कामनाओं के, वासनाओं के, फ़ालतू के विचारों में मैं उलझ जाता हूँ। इसी वजह से तो मैं अंदर से अशांत हो जाता हूँ, बेचैन हो जाता हूँ। राजा ने जब अपने अंदर, अंतर्मुखी होकर देखा तो उनको उत्तर मिला, हां, मेरे अंदर कामनाओं के विचार है। अब ये कौनेसे विचार है, राजा के अंदर यह विचार है कि वह अपने राजपाट को कैसे बढ़ाएं, राज्य का विस्तर कैसे करूँ, सैनिक खर्च के लिए लोगों पर कैसे कर बढाऊँ। कर कैसे ज्यादा लूँ और कैसे मैं अपने राज्य का विस्तार करूं। कैसे और ज्यादा धनवान बनूं राजपाट को बढ़ाऊँ और शक्तिशाली बनूं।
उस गरीब ग्वाला ने राजा को कहा कि राजा का काम तो सेवक का काम होता है। वह तो जनता का सेवक है। उसे तो अपनी प्रजा की सेवा करनी चाहिए। लेकिन यदि उसके मन में राजा की भावना आ जाएगी तो यह उसे बेचैन कर देगी। सेवक की भावना आ जायेगी जब सेवा करने लग जाएंगे। ग्वाले के ये अच्छे विचार हैं। लेकिन हमें सब विचारों से मुक्त होना है। राजा ने जब अपने अंदर, अंतर्मुखी होकर देखा कि मेरे अंदर ऐसे ही विचार चलते हैं तब राजा को इस बात का ज्ञान हुआ और राजा चुपचाप, उस जंगल में, शांत अवस्था में, कहीं बैठ गए और अपने अंदर के विचारों को साक्षी बनकर देखने लग गए।
जंगल बिल्कुल शांत था, सन्नाटा था। राजा धीरे-धीरे एकाग्र होते गए और अपने विचारों को देखते गए, विचारो के साक्षी बन गए। आप भी इस बात को नोट करना, जब आप किसी शांत जगह पर चार से पांच घंटें बैठे हो, जहां कोई भी आपको डिस्टर्ब ना करें, किसी भी तरह की बाधाएं ना पहुंचे और आप अपने विचारों को देखेंगे तो आप अपने विचारों के साक्षी जब बन जाएंगे। कछ समय उपरान्त आप पायेंगे कि आपके सारे विचार धीरे-धीरे समाप्त हो रहे है। वेन यू बिकम विटनेस ऑफ योर थॉट्स, देट आर मूविंग इन योर माइण्ड, देन यू विल फाइण्ड, योर ऑल थॉट्स आर डिसअपीयरिंग। तो विचारों को देखने से, उनके साक्षी बनने पर, विचार धीरे-धीरे समाप्त हो जाते है।
राजा के साथ भी यही घटित हुआ। शांत जंगल में, बैठे-बैठे, विचारों को देखते-देखते, राजा के विचार समाप्त होते गए और जैसे-जैसे विचार समाप्त होते गए, राजा अंदर से शांत होते गए। और इतना शांत हो गए कि भीतर शून्यता छा गई। उसी जंगल में चार से पांच घंटे बैठे रहे और मन के सारे विचार खत्म हो गये। मन शून्य हो गया और राजा महाशून्य को उपलब्ध हो गए, परम शिव को उपलब्ध हो गए, परम सत्य को उपलब्ध हो गए। इस तरह से उनके साथ इनलाइटनमेंट की घटना घटी। एक ही दिन में सब कुछ घटित हो गया, विचारों के ओह पोह से बैचेन होकर जंगल को जाना, निर्धन ग्वाला से मिलन, उससे ज्ञान करना और शांत जंगल में ध्यान करना, अपने विचारों को देखना, विचारों का साक्षी होना, पहले शून्य और फिर महाशून्य में समाना, अति अद्भुत।
उनके साथ ऐसा होना था, जिनको इस बात का बोध हो जाता है कि मेरे पास सबकुछ है फिर भी में अशांत क्यों हूँ, बैचेन क्यों हूँ, वे ही इस मार्ग पर बढ़ते है और आगे चलकर उपलब्ध होते है। राजा भी जंगल में गए क्योंकि उनका मन बेचैन था, वह सोचने लगे कि मेरे पास राजपाट है, धन दौलत है, सब कुछ है, जो जीवन में चाहिए लेकिन फिर भी अंदर शांति नहीं है। जब इस बात का उन्हें ज्ञान हुआ कि सब कुछ रहते हुए भी मैं अशांत क्यों हूँ, यही बोध उन्हें परम बोध तक लेकर चला गया, एक छोटे से बोध ने।
यही चीज लोगों को समझ में नहीं आती है कि तुम जितने भाग-दौड़ बाहर कर रहे हो, जितनी भी हाय तौबा मचा रहे हो, उथल पुथल मचा रहे हो, जितना भी द्वन्द्ध है, द्वेष है, क्लेष है, राग-द्वेष जो कुछ भी है तुम्हारी जीवन में, इन सबका कारण तुम खुद रचे हुए हो और रच रहे। आपने खुद ने इनके कारण निर्माण किए है और अभी भी निर्माण कर रहे हो। एक बार अंतर्मुखी होकर, अपने अंदर देखो कि वाकई में दुनिया की ये सब चीजें, तुम्हें वह परम शांति और सुख देने वाली हैं क्या? नहीं, परम शांति और सुख का केन्द्र हमारे अंदर है, उस केन्द्र तक हमें पहुंचना है।
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