हर समय ध्यान में कैसे रहे
वैसे दिया हुआ बहुत कुछ है, लेने वाला बहुत कुछ लेकर जा रहा है। शिविर के पश्चात्, आपको आगे की यात्रा की तैयारी कैसे करनी है, इसके लिए मार्गदर्शन यह है कि आप लोग जब घर पर वापस जाएंगे तो सबसे पहले तो आप हर रोज ध्यान में बैठने का प्रयास कीजिएगा। जिसका भी ध्यान में बैठने का मन है। जो बिगिनर्स है, उनको पहले कह रहा हूँ कि कोशिश कीजिएगा, अगर समय है, 20-30 मिनट बैठने के लिए।
ध्यान के आरम्भ में जो हम यहां शिविर में प्राणायाम करवा रहे हैं, इन्हें कर लीजिए; जैसे ब्रीदिंग एक्सरसाइज, टैपिंग, क्लैपिंग, हल्की एक्सरसाइज कर लीजिए। इससे आपका शरीर भी ठीक रहेगा और फिर थोड़ा प्राणायाम कर लीजिएगा। फिर ध्यान में बैठने की कोशिश कीजिएगा।
अब ध्यान में, करना क्या है? पहले आसन में बैठना है। आसन, सही आसन को सिद्ध कर लीजिए। आसन में बैठिए। अगर पालथी या सिद्धासन या पद्मासन में नहीं बैठ पाएं तो चेयर पर बैठिए। उससे भी नहीं होगा तो लेट जाइएगा, किसी भी तरह से। उसके बाद आपका ध्यान सहज भाव से कहां जा रहा है, आप उसे देखिए। श्वांस पर जा रहा है तो श्वांस के आवागमन को देखिए। आप अजपा-जाप नाम कहिए या कुछ भी नाम दीजिए, नाम तो नाम है, वर्ड्स है। मूल बात यह है कि श्वांस के आवागमन पर ध्यान। आप बस श्वांस के साथ-साथ जाइएं। उससे दोस्ती होनी चाहिए। आपके अटेंशन एंड ब्रेथ की फ्रेंडशिप होनी चाहिए। फ्रेंडशिप का मतलब जैसे दो दोस्त साथ-साथ रहना चाहते हैं। तो आपकी श्वांस और ध्यान की दोस्ती होनी चाहिए। मन और श्वांस की दोस्ती। एक साथ जाएं, एक साथ आएं। इसमें बैठ जाइए। यह करते-करते जैसे-जैसे श्वांस छोटा होता जाएगा, ऑटोमेटिक आप थर्ड आई पर भी केंद्रित हो जाएंगे कभी-कभी। जब ध्यान आज्ञा चक्र पर जाएं तो कभी वहीं पर बने रहिए तो कभी श्वांस पर आ जाएं। कभी-कभी ऑटोमेटिक आप सहस्त्रार पर आ जाएंगे। आप लोगों को ऐसा निरंतर करते रहना है।
अगर आपके पास समय नहीं है। 24 घंटा में से आधा घंटा या 40 मिनट या एक घंटा, इतना बैठने के लिए; शायद बहुत व्यस्त भी होंगे जिंदगी में! ऐसा लोग कहते हैं ना कि समय नहीं मिलता है! लेकिन उठने वाला तो सवेरे जल्दी 3ः00 बजे भी उठेगा। अपनी एनर्जी तगड़ी कर लेगा तो कम सोएगा, जल्दी उठेगा। करने वाला तो हर हाल में कर ही लेता है, मैनेज कर ही लेता है। नहीं करने वालों के पास तो हजारों बहानें होते हैं।
फिर भी अगर नियमित बैठकर ध्यान नहीं होता है तो आप चलते-फिरते, खाते-पीते, बात-करते हुए भी श्वांस पर ध्यान केंद्रित कर सकते है। आप एनी-टाइम श्वांस पर ध्यान केंद्रित कीजिए। यदि चलते-फिरते, खाते-पीते श्वांस पर ध्यान नहीं कर पा रहे है तो अपने मन को और अंतर-जगत को देखिए। कैसे देखें, ऐसे कि जब मैं किसी से बात कर रहा हूँ तो, बात कर रहा हूँ यह भी देखिए कि बात कौन कर रहा है? और उसकी बात का असर मेरे अंदर क्या पड़ रहा है? उसे भी देखिए। अंतर्मुखी हो जाइए। ध्यान श्वांस पर नहीं है तो बातचीत करते वक्त जो कुछ बोला गया है, उसके बाद उसका असर मेरे अंदर क्या घटित हो रहा है? उसे देखिए। अंतर्मुखी हो गए हैं वो भी देखिए। आप स्वयं से बोल रहे हैं तो वह भी देखिए कि क्या बोल रहे हैं? यह अभ्यास हो जाएगा तो आप किसी को भी, कभी भी अपनी वाणी से दुख नहीं पहुंचाएंगे। क्योंकि आप पूरे अवेयर हो गए हैं एक-एक शब्द के प्रति जागरूक हो गये है कि मेरे मुख से भी क्या निकल कर जा रहा है? और पूरी अवेयरनेस आ जाएंगी कि सामने वाले के एक-एक शब्द के प्रति मेरे अंदर क्या प्रतिक्रिया घटित हो रही है? यह जागरूकता हटी तो तुरंत उसके शब्दों का हृदय पर आघात हो जाएगा। इमोशन बबल फटने लग जायेंगे और सामने वाले पर भी आप बरस सकते हो। यह जागरूकता रहेगी तो आप उदास भी नहीं होंगे, दुखी भी नहीं होंगे और अहंकार की निरंतर चेकिंग होगी, जांच होती है। जैसे किसी ने आपकी पत्नी तारीफ की कि वह तो देवी स्वरूप है तो तुरंत अंदर जाइए और देखिए कि मेरी पत्नी की किसी ने तारीफ की है, उसका असर मेरे अंदर क्या असर हो रहा है? हो रहा है तो ये तो अहंकार है। असली ध्यान बता रहा हूँ, अवेयरनेस, सजगता, होशपूर्वक जीवन जीना। किसी ने मेरे पत्नी की बुराई कर दी और मैंने सुन लिया तो भी अपने भीतर झांके कि उस बात का मेरे अंदर असर हो रहा है क्या? कुछ बुरा लग रहा है? तो किसे? अच्छा भी लग रहा है तो किसे? अहंकार को अच्छा लग रहा है। बुरा भी लग रहा है तो भी अहंकार को बुरा लग रहा है।
आपकी दुकान पर आज ढ़ेर सारे कस्टमर आ गए और ढेर सारी सेल्स हो गई। पैसा ज्यादा आ गया तो उसको लेकर आपके चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई। तो किसको मुस्कुराहट है? अहंकार को। तब भी ध्यान घटित हो रहा है क्या? बेचते वक्त भी ध्यान घटित होना चाहिए। किन्हीं एक-दो दिन, क्या हुआ कि एक भी कस्टमर नहीं आ रहा हैं, तब क्या कुछ उदासीपन आ गई, तो भी भीतर देखों, कौन उदास हो रहा है? क्या घटित हो गया, अंदर? यह सारा खेल अहंकार के साथ होता है। तब भी अंदर देखना है क्योंकि अभी भी आपको बाह्य जगत ही तो प्रभावित कर रहा है ना! आत्मा तो अप्रभावित है, तो आपका बाह्य जगत ही आपको खुशी के लेवल को, दुःख के लेवल को घटा रहा है, बढ़ा रहा है। किसी की तारीफ से, व्यापार में बिक्री से अंहकार आपको ऊपर-नीचे कर रहा है।
गुरु जब किसी शिष्य पर पूरी तरह से टूट पड़ता है तो वह चाहता है कि उसकी जिंदगी में, कदम-कदम पर ज्यादा दुःख आएं ताकि उसके अहंकार का पूरी तरह से तहस-नहस हो जाएं। दुःख आएं, गाली मिलें, ठोकर मिले-पति से मिलें, पत्नी से मिलें, परिवार से मिलें, जगत से मिलें, सबसे मिलें, तो भीतर बार-बार चेक करें, बार-बार चेक करें। जब देखोगे कि स्वतंत्र हो चुका हूँ, खाली हो चुका हूँ आकाश की भांति तो फिर किसी की भी बात आ रही हो लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी, प्रभावित नहीं होंगे। तब आपको पता चलेगा, आरे, ये क्या हो गया! तारीफ करें तो भी एक जैसा, गाली दे तो भी एक जैसा। बाह्य जगत मुझे प्रभावित ही नहीं कर रहा है। प्रेम बना हुआ है अंदर। अंदर शून्यता बनी हुई है।
तो इस प्रकार, आंख खोल के ध्यान करों। देखो, भीतर मुड़कर। जप कर रहे हो, तब भी देखो। जब भी जप करें हो, तो देखो कि जप कौन कर रहा है? जप करने वाला कौन है? दोनों काम करों। अभी तक तो आप बेहोशी में जप किए जा रहे हो। अब अंदर भी देखो कि जप कौन कर रहा है? जब देखोगे तो पाओंगे कि यह मन कर रहा है, अब मैं देख भी रहा हूँ कि जप कर रहा है कोई, जान भी रहा हूँ कि कोई जप कर रहा है। तो जप करने वाला कौन है, मन। गुरु जप क्यों पकड़ा देता है क्योंकि मन इतना चंचल होता है जैसे कि बंदर। इधर आया, उधर गया, एक जगह वह कभी ठहरता ही नहीं है, इसी प्रकार से तो मन है। वह एक जगह स्थिर होना चाहता ही नहीं है, वह इधर-उधर भागना चाहता है, क्योंकि वह जिंदगी भर बाहर ही भागा है, उसे कभी एक जगह ठहरना सिखाया ही नहीं, और अब अचानक आप उसे अंदर लाना चाहते है, एक जगह पर टिकाना चाहते है, एक पाईंट पर। उसको बोलते हो कि यहीं पर, तुम ठिके रहो, ऐसा कभी उसने सिखा ही नहीं। मन जिंदगी भर बाहर ही भागा है तो बाहर ही भागना चाहता है। अब आप चाहते हो, उसको पकड़ कर, मैं एक पाईंट पर एकाग्र करूँ, लेकिन फिर भी वह बाहर ही भागता है। आप फिर उसे पकड़ कर लाते है, किन्तु वह बाहर ही भागता है। तो कभी-कभी क्या किया जाता है कि गुरु कहता है कि चलो, इसके मन को कुछ दे दो। सारा खेल मन को कुछ पकड़ाना है, तो गुरु जप दे देगा, मंत्र दे देगा। पकड़ लो, किसको दिया, मन को। मन उसको पकड़ कर, अब उसी में संलग्न होने लग गया।
यदि छोड़ दोगे तो इधर-उधर भागेगा। जप में, कम से कम पुनरावृत्ति चल रही है, रिपीटेशन चल रही है। मंत्रों की ध्वनि, जप ध्वनि चल रही है, चल रही है। इस प्रकार मन जप करते-करते, दो साल, तीन साल, चार साल, 5 साल, 8 साल, 15 साल धीरे-धीरे-धीरे वो स्थिर होने लगता है। और जब घटना घटित होने का समय आता है तो जप भी बंद हो जाता है। जिव्हा भी बंद हो जाती हैं और जो मानसिक पुनरावृति हो रही थी मन में, वह भी बंद हो जाती है।
अब वह साफ-साफ देखता है कि मंत्र जाप या कोई भी जाप कौन कर रहा है, मन ही कर रहा है और मन को मारना है। अब कम से कम कुंडलिनी जाग्रत हो गई है, ऊपर आ गई है। अब तो मन को मारना है। अब गुरू चाहता है कि अब इसका सब छूट जाए जो पकड़ा है। क्योंकि पकड़े रहेगा तो बचा रहेगा। एकाग्रता के लिए, एक समय पकड़ाना पड़ता है और जब पूरी तरह से एकाग्र हो गया तो अब मंत्र जप छोड़ने का समय आ जाता है। गुरु ने जल पहले पकड़वाया भी है और अंतिम समय में गुरू ही बोलता है कि अब इसको छोड़ना भी पड़ेगा। जिसका सहारा लिया, उसको भी बाद में छोड़ना पड़ता है। बहुत दिन से उसका सहारा लिया। अब गुरू बोल रहे है कि इसको छोड़ो, तो बड़ा दुख होता है अंदर। कैसे छूटेगी यह? तो गुरु के पास कुछ ना कुछ उपाय होता ही है। जैसे मैंने कहा कि जप मत छोड़ां, करते रहों, लेकिन भीतर से देखते रहां कि जप भी कौन कर रहा है? जानते रहों कि कौन जप कर रहा है? देखते-देखते देखोगे कि यह मन कितने दिन तक जप करेगा? अपने आप अंदर से बोलेगा कोई कि कितने दिन तक मन को कुछ पकड़ा कर रखोगे? कब तक पकड़ कर रखोगे? वो मन धीरे-धीरे विलय होते चला जाएगा। विलुप्त होते चला जाएगा तो अपने आप छूट जाएगा। अचानक से नहीं छूटता है, प्रयास करते करते।
आप इस प्रकार का ध्यान निरंतर कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि ध्यान ऐसे ही, आसन में बैठकर आँख मूंदकर, करना है। चलते-फिरते आंख खोल कर भी ध्यान करों। मुझे अभी सुन रहे हो तो ध्यान घटित होना चाहिए अंदर। कौन सुन रहा है? कानों में आवाज जा रही है? ब्रेन के अंदर, कौनसा इंस्ट्रूमेंट, क्या है जो सुन रहा है। ये आपको चलते-फिरते, खाते-पीते ध्यान करना है। जप करते हुए भी यह ध्यान करना है। जब प्राणायाम का समय मिल गया तब भी यह ध्यान करना है।
ध्यान बहुत उच्चकोटि के स्तर का होता है। जिसका मन ज्यादा कमजोर होता है, ज्यादा चंचल होता है तो उसको मंत्र और जप पकड़ा दो। क्योकि ध्यान में मन को एकाग्र करना बड़ा मुश्किल होता है। मंत्र जब पकड़ा दोगे तो वह रिपीट करते रहेगा। आसान होता है। अंत में छूट जाएगा। तो ध्यान में चित्त को स्थिर करना है।
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