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बाहरी अवांछित घ्वनियों को प्रकृति का संगीत समझें और उसे ध्यान में बदलें     
  

        आज ध्यान की जो विधि मैं बताने जा रहा हूँ, वह ध्वनि से संबंधित है और यह विधि विज्ञान भैरव तंत्र से है। पहले यह समझ लें कि जब हम शिव कहते हैं तो शिव मतलब क्या? आप लोग जो शिव की फोटो देखते हैं घर, मंदिर में, वह शिव नहीं। असली में शिव कौन है, वह नथिंग है, एम्टीनेस, दे ग्रेट वॉयड या वह जो पूरे ब्रह्मांड में अपने आप को एक्सप्रेस कर रहा है, अलग-अलग डाइमेंशन पर अपने आप को एक्सप्रेस कर रहा हैं, मतलब कॅन्शसनेस। प्योर इण्टेलीजेंस, प्योर कॅन्शसनेस। वह कॅन्शसनेस किसी न किसी बॉडी के द्वारा अपने आप को एक्सप्रेस करता है और परम ज्ञान देता है, प्रमुख उपदेश देता है ताकि जीव की वापसी हो, वह वापस वहां तक पहुंचे, जो उसका वास्तविक घर है। जीव है जो भटक रहे हैं, वापस घर आए, अपने स्वरूप तक पहुंचे; क्योंकि परम शांति, परम सुख तो वहीं पर है, वापस घर आने में। अभी बाहर भटक रहे हैं। इसीलिए कभी इस पृथ्वी पर किसी ने ऐसा ज्ञान बताया, ध्यान की विधियाँ बताई कि ये-ये विधियाँ है, इनसे हम वहां तक पहुँच सकते हैं। उसी तरह से विज्ञान भैरव तंत्र किताब है, उसमें 112 विधियाँ बताई गई है, कहानियों के माध्यम से, जो भगवान शिव ने पार्वती को बताई। हम उन कहानियों में नहीं जायेंगे। विधियां क्या है, उनमें से एक विधि को हम समझते हैं और यह विधि ध्वनि से संबंधित है।

        मैं इस विधि के बारे में इसलिए बताना चाहता हूँ क्योंकि कुछ लोग जब ध्यान करते हैं तो साउंड को सुनकर डिस्टर्ब फील करते हैं, आवाजें आती है, कई प्रकार की आवाजें आती है, जिसकी वजह से थोड़ा सा अंदर ही अंदर वे जर्क यानी झटका महसूस करते है औरया डिस्टर्ब फील करते हैं और आंखें खोल देते हैं। तो इन आवाज़ों को कैसे ध्यान में कन्वर्ट करें, यानी कि मेडिटेशन में कैसे कन्वर्ट करें। 

        एक बहुत ही सुंदर बात मुझे याद आ गई। एक बार मैं अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में कुछ पढ़ रहा था, कुछ सालों पहले। तो अल्बर्ट आइंस्टीन में मुझे उनके बारे में ऐसा कुछ पढ़ने को मिला कि जब वह स्टडी करता था, कुछ अध्ययन करता था तो उन साउंड को, जो बाहर से आते थे, तो अल्बर्ड आइंस्टीन उन साउंड को प्रकृति का म्यूजिक समझता था। बाहरी साउण्ड को वह म्यूजिक ऑफ दी नेचर कंसीडर करता था। जिससे वह साउण्ड उसे बाधित नहीं करता था और वह अपने काम में फोकस ही रहता था। 

        ध्वनि से संबंधित विधि समझत है, शिव पार्वती को कहते हैं कि ध्वनि के केंद्र में स्नान करो। मानो कि किसी जलप्रपात की अखंड ध्वनि में स्नान कर रहे हो या अपने दोनों हाथों की उंगलियों को कानों में डालकर नादों के नाद, अनहद नाद को सुनो और परम सत्य को उपलब्ध हो जाओ। मैं फिर से दोहरा रहा हूँ, ऐसा अनुभव करो कि ध्वनि के केंद्र में स्नान कर रहे हो। मानो कि किसी जलप्रपात क अखण्ड ध्वनि में स्नान कर रहे हो या अपनी दो उंगलियों को दोनों कानों में डालकर नादों के नाद, अनहद नाद को सुनो।

        अब इसे विस्तार से समझते है। पहले कहते है कि ध्वनि के केंद्र में स्नान करो। पहले ध्वनि के विज्ञान को समझते हैं। ब्रह्मांड की जब सृष्टि हुई, ब्रह्मांड का क्रिएशन जब हुआ या आप बोल सकते हैं जब ब्रह्मांड प्रकट हुआ या अपीअर हुआ तो पहली जो चीज ब्रह्मांड में बनी वह ध्वनि है। ध्वनि से ही इस ब्रह्मांड की सृष्टि हुई और आपके शरीर में भी ध्वनि ही वह चीज है जिसने आपको जोड़ कर रखा है। इसने ही ब्रह्मांड को जोड़ के रखा है, रोक कर रखा है। ध्वनि वह मैग्नेटिक पॉवर है जिसने सबको बांध कर रखा हुआ है। इस ब्रह्मांड में ध्वनि ही ध्वनि है। इस बात को समझ लेना है। लेकिन शिव कह रहे हैं कि ध्वनि के केंद्र में स्नान करो। ध्वनि जो है उसका भी एक आकर होता है। ध्वनि का भी एक आकर होता है, ध्वनि का आकर क्या है वर्तुल, सर्कल मतलब एक गोलाकार, बैलून अथवा शिवलिंग जैसा। मैं यहां से बोल रहा हूँ, मेरे शब्द आपके पास पहुँच रहे है, ये गोलाकर आकार में पहुंच रहे हैं। एक एनर्जी, गोलाकार आकर में; और आप तक पहुंच कर, आपके कानों से होते हुए आपके ब्रेन तक पहुँच रहे हैं। कान तो सुनता नहीं है, ब्रेन सुनता है। कानों के द्वारा वह ध्वनि आप पहुंचती है। 

        इस प्रकार आप समझ गये होंगे कि ध्वनि एक वर्तुल आकार में आवागमन करती है। ब्रह्मांड की प्रत्येक ध्वनि आप तक पहुंचती है। कोई भी ध्वनि कहां तक पहुंचती है, आप तक पहुंचती है। तो ध्वनि का आकार गोलाकार आकार होता है, वर्तुल आकार होता है और ध्वनि जब भी, जहां भी क्रिएट हो रही है तो आप तक वह अवश्य ही पहुंच रही है; क्योंकि आप उसे सुन रहे है, तो आप तक वह ट्रेवल करके आती है। ब्रह्मांड की सारी ध्वनियाँ, दुनिया की यात्रा करके आप तक आती है, आपको लक्ष्य बनाकर ही यात्रा कर आप तक पहुंचती है। दूर से दूर की ध्वनि यदि आप सुनेंगे तो आप तक पहुँगी क्योंकि आप उनको बुला रहे हो सुनने के लिए। अब यहां पर इंटरेस्टिंग बात यह है कि ध्वनि आपको क्यों सुनाई देती हैं, बताइए आप लोग। देखिए, यहां पर अपना दिमाग लगाइए, बुद्धि लगाइए, एक ध्वनि दूसरी ध्वनि को कभी नहीं सुन सकती है। ध्वनि मतलब साउंड, एक साउंड दूसरे साउंड को कभी नहीं सुन सकता है। एक ध्वनि दूसरी ध्वनि को नहीं सुन सकती है, समझ रहे हैं ना आप। यानी कि ध्वनि शून्य है, मतलब साइलेंस है। ध्वनि रहित स्थिति, जहां ध्वनि नहीं है। इसी प्रकार जो ध्वनि रहित है, वह ही ध्वनि को सुन सकता है।

        यहां एक चीज और समझ ले कि यह भी कैसे पता चल रहा है कि ध्वनि है। ध्वनि बन रही है, यह केसे पता चल रहा है। ध्वनि से पहले क्या है साइलेंस। साइलेंस मतलब शून्य, साइलेंस। तो साइलेंस से ही तो ध्वनि बना। तभी तो आपको पता चल रहा है कि हां, ध्वनि भी है। अगर साइलेंस नहीं है तो ध्वनि के बारे में हमें कैसे पता चलेगा। जैसे आपकी जिंदगी में दुख होता है, और दुख के बाद जब सुख होता है, तभी तो आप अनुभव करते है कि दुख भी होता है, सुख भी होता है। तो ध्वनि के बारे में आपको कैसे पता चल रहा है, जब भी ध्वनि क्रिएट होता है तो साइलेंट से क्रिएट होता है; पहले साइलेंस होता है। अब देखिए, अभी साइलेंस है, अब मैंने ताली बजाई, तो एक ध्वनि क्रिएट हुई। ये साइलेंस से क्रिएट हुई और हमारे तक ध्वनि पहुंची और फिर साइलेंस में समा गई, वो ध्वनि खत्म हो गए। 

        इसी प्रकार, आपके अंदर एक ध्वनि शून्य केंद्र है, ऐसा शून्य केंद्र है जहां पर कोई ध्वनि नहीं है, आपके ही अंदर है, जस्ट इनसाइड यू, ध्वनि रहित केंद्र है, इसलिए आप ध्वनि को सुन पाते हैं, नहीं तो सुन नहीं पाते। ध्वनि और साइलेंस इन दोनों का होना जरूरी है, यदि ध्वनि ही ध्वनि रहेगा तो कौन किसको सुनेगा। साइलेंस का होना भी जरूरी है, तभी तो हम साइलेंस में से ध्वनि को कैच करते हैं। तो आपके अंदर  ध्वनि शून्य का एक केंद्र है, इसलिए आप ध्वनि को सुनते हैं और दुनिया आप तक पहुंचती है और वह जो ध्वनि शून्य केंद्र है, वही आत्मा का केंद्र है, वही महाशून्य का केन्द्र है, ग्रेट वाइड है, आपके अंदर , वही परमात्मा का केंद्र है उस शून्य तक ध्वनि पहुंचती है। आपके अंदर है। देखिए, मैं कितने एग्जांपल्स दे रहा हूँ, उदाहरण दे रहा हूँ आपको समझाने के लिए कि आपके अंदर  वह शून्य का केंद्र है तभी तो आप ध्वनि को सुनते हैं और वह ध्वनि रहित, ध्वनि शून्य का केन्द्र है। तभी आप ध्वनियों को सुन पा रहे है, इतने लॉजिक भी दे रहा हूँ आपको। 

        ध्वनि क्या है, वह एनर्जी है। इतनी सारी ध्वनियां है, सभी क्या है, एनर्जी है। शिव कहते है कि ध्वनि के केन्द्र में ध्यान करों। तो अब आपको केन्द्र समझ आ गया होगा। आपके भीतर जो ध्वनि रहित, शून्य का केन्द्र है, वहां आप जाओ, रहो और बाहर से जो भी ध्वनियां आ रही है, उनको समझो कि वे ऊर्जाएं है, ऊर्जाएं मतलब एनर्जी। साउण्ड्स आर एनर्जी। सारी ऊर्जाए ट्रैवल करके मुझ तक आ रही है और मैं उनमें स्नान कर रहा हूँ, आई एम हेविंग द बाथ इन दी साउंड एण्ड आई एम हेविंग द बाथ इन दी एनर्जी ऑफ दी साउंड। शब्दों की ऊजाओं में मैं स्नान कर रहा हूँ। क्लियर है, जितने भी शब्द आ रहे है, हम सुन रहे हैं, सभी चमत्कारी है। इनमें अपने आप में एनर्जी है जो आप तक आ रहे हैं और आप तक तक क्यों रहे हैं क्योंकि आप ध्वनि शून्य हो, इसीलिए आपको टारगेट करके आ रहे हैं, क्योंकि ध्वनि का लक्ष्य होता है, साइलेंस। जहां पर साइलेंस हो, वह ही उसका लक्ष्य है, वहीं पर पहुंचना ध्वनि का लक्ष्य होता है। 

        छेखिए, ध्वनि किस प्रकार से शक्ति है, ताकत है, एक ऊर्जा है; मुझे एक बात याद आ रही है, कहीं पर मैंने पढ़ा था कि किसी एक देश में सोल्जर्स एक साथ जा रहे थे। वे बहुत सारे सोल्जर्स थे और उनको एक ब्रिज से गुजरना था। वहां उनके कैप्टन ने उन लोगों को कहा कि तुम सब इस पुल के पार जाओ। एक साथ उनको जाने के लिए ऑर्डर दिया गया। आप सबको पता है कि आर्मी सोल्जर बूट पहने हुए रहते हैं। हैवी बूट पहनते हैं वो लोग; क्योंकि उनको जहां-तहां दौड़ भाग करनी पड़ती है। तो वे सभी सैनिक भी हैवी शूज पहने हुए थे। वे सभी सोल्जर्स एक साथ दो लाइनों में उस पुल से गुजर रहे थे और कदमताल करते हुए उनके पांव एक साथ उस ब्रिज पर पड़ रहे थें, धम, धम, धम। मतलब एक साथ उनके पांव ऊपर उठ रहे थे और एक साथ नीचे गिर रहे थे। एक साथ पांव ब्रिज पर पड़ने से तेज ध्वनि उत्पन्न हो रही थी, सोल्जर्स के पांवों की ध्वनि मात्र से वह ब्रिज टूट गया। 

        ध्वनि एक ऊर्जा है। ध्वनि से आपका कलेजा फट सकता है। आपकी बॉडी फट सकती है। जब बम ब्लास्ट होता हैं तो ध्वनि ही होती है ना, जिससे आस-पास की चीजें फट जाती है। तो आर्मी के सोल्जर्स के जूते ब्रिज पर एक साथ पड़ने से जो ध्वनि उत्पन्न हुई उससे ब्रिज टूट गया। तो ध्वनि में इतनी शक्ति है। इसलिए ध्वनि को आप हल्के में न लें। जैसे ही आपके अंदर डेवलपमेंट होगी तो आप धीरे-धीरे समझते चले जाएंगे। 

        इसलिए जब भी आप लोग ध्यान के लिए बैठे और कोई भी ध्वनि आ रही है, तो आपको उससे डिस्टर्ब नहीं होना। उसकी जगह यह सोचना है कि मैं ध्वनि के केंद्र में स्नान कर रहा हूँ, मैं ध्वनि रहित शून्य के केंद्र में हूँ। ध्वनि मुझ तक आ रही है और मुझमें पर बारिश की तरह बरस रही है और मैं उसमें स्नान कर रहा हूँ, यानी कि ऊर्जाएं आ रही है और ऊर्जाओं से मैं भर रहा हूँ। जितनी अधिक ध्वनि आ रही है उतना अधिक मैं ऊर्जा से भर रहा हूँ, एनर्जी से भर रहा हूँ और मेरा शरीर अधिक से अधिक  ऊर्जायुक्त होते जा रहा है। एनर्जाइज होते जा रहा है। शरीर पूरी एनर्जी से भर रहा है फिर आप अपने को एनर्जी, एनर्जी, एनर्जी से भरपुर पायेंगे। धीरे-धीरे पूरे ब्रह्मांड के साथ एक होने लग जाएंगे। फिर आप स्वयं अनुभव करेंगे कि ध्वनि एनर्जी है और मुझमें समा रही है और मैं एनर्जी के केंद्र में स्नान कर रहा हूँ और अंदर एनर्जी से भरपुर होते जा रहा हूँ। मैं शून्य के केंद्र में, ध्वनिरहित केन्द्र में हूँ। 

        फिर आप देखेंगे कि ब्रह्मांड की जो पूरी एनर्जी है, उसके साथ आप एक होने लग जाएंगे। आपको इस हाड-मांस के शरीर का भान ही नहीं रहेगा। ऊर्जाओं का आभास रहेगा, अंदर शून्य के केन्द्र में रहेंगे और साक्षी बनकर ध्वनि को बस एनर्जी के रूप में अनुभव करेंगे। समझ गए।

        शिव अब आगे कहते हैं कि अपने दोनों हाथों की दो तर्जनी ऊंगलियों से अपने दोनों कानों को बंद कीजिए, दोनों हाथों के अंगुठों का प्रयोग करके भी कान बंद कर सकते है। फिर वे आगे कहते है कि दोनों ऊंगलियों को कानों में डालकर नादों के नाद, अनहद नाद को सुनो और परम सत्य को उपलब्ध हो जाओ। मतलब नादों के नाद कौन है, अनहद नाद है, उसे सुनो। नाद का मतलब भी होता है ध्वनि, साउण्ड। लेकिन कान बंद करके जो ध्वनि सुनाई देती है, वह ब्रह्माण्ड की ध्वनि है, जिसे वैज्ञानिक ने खोज करके इसे सही साबित कर दिया है। ब्रह्मांड का अपना एक साउंड है, एक ध्वनि है जो सबको सुनाई नहीं देती है। जो हमिंग हंहंहंहंहंहं या ओम का एक साउंड है। यह साउंड अनक्रिएटेड है। अनक्रिएटेड अर्थात् अनिर्मित साउण्ड है जिसका कोई जन्म नहीं है। यह साउण्ड पहले से है, हमेशा से है और यह साउण्ड सबको सुनाई नहीं देता है। जो योगी लोग होते हैं, जिन्होंने सत्य की उपलब्धि कर ली हैं या उसके लगभग नजदी होते हैं या कोई जो ऐसी साधना के मार्ग पर अग्रसर हैं, जिन्हांने कई महीनों तक सुनने की प्रैक्टिस की है, तो उनको सुनाई देता है, या जो पूर्ण लिब्रेटेड हो जाते हैं, उनको यह ध्वनि पूरी सुनाई देती रहती है। पूरी और तेज सुनाई देती है यह ध्वनि। उनके आस-पास लोग हैं, लेकिन उन लोगों को सुनाई नहीं देती परन्तु योगी को सुनाई देती है।

        बाहर की ध्वनि तो मात्र नाद है, आंतरिक ध्वनि नादों का नाद है। पहले शिव कहते है कि बाह्य ध्वनि जो आ रही है, वर्तुल आकार में एनर्जी के रूप में, इसमें स्नान करों, मानों किसी अखण्ड जल प्रपात में आप स्नान कर रहे हो। फिर आगे शिव कहते है कि नादों के नाद, अनहद नाद को सुनो जो हमें अंदर से सुनाई देता है, जिसका स्रोत आंतरिक है। अनहद नाद अर्थात् वहीं ओंकार की ध्वनि, हमिंग की ध्वनि, वह साउण्ड सुनाई देता है। उस साउंड को सुनते, सुनते, सुनते एक दिन आप इस साउंड के परे चले जाएंगे और उपलब्ध हो जाएंगे। 

        अब एक बार हम सब इसे प्रैक्टिकली करते है। तो एक बार आप लोग अपने कानों को बंद करें और देखें कि आपके अंदर एक साउंड सुनाई दे रहा है कि नहीं, वही नादों का नाद अनहद नाद है। वह अनहद नाद मतलब जो अनंत साउंड है, जो कभी रुकता नहीं है, इसकी कोई सृष्टि होती नहीं है। एक बार सभी अपने दोनों कान को ऊंगली या अंगठों से बंद करें, पूर्णतया बंद करें कि बाहर की आवाज अंदर आना बंद हो जाएं। अपने भीतर चलें जाएं और भीतर के नाद को सुनें। एकाग्र होकर सुनें। ठीक है, अब खोल दें। अभी थोड़ा सा रिलैक्स लग रहा है ना आपको, थोड़ी देर में ही। कान बंद करके जो ध्वनि सुनाई दे रही थी, वह अनहद नाद है और कान खोलने उपरान्त, अभी जो ध्वनि आ रही है यह बाह्य ध्वनि है, यह केवल नाद है।

        बहुत सारे लोग क्या करते हैं कि अपने कानों में कुछ डालकर कान बंद कर लेते है ताकि बाहर का साउंड ना आए और अंदर का साउंड ही सुनाई दें। वे आंतरिक साउण्ड पर ध्यान करते है। अनहद नाद को सुनकर ध्यान करते हैं। इसी साउंड को संदीप माहेश्वरी जी ने अपने सेशन में साउंड ऑफ साइलेंस कहते है। बहुत सारे लोग स्पीकर लगाकर भी उसको सुनते हैं। तो इसको सुनते, सुनते, सुनते, सुनते आप एक दिन परम को उपलब्ध हो जाएंगे, सत्य की उपलब्धि हो जाएगी। बाद में, क्या होता है कि इसको सुनते, सुनते कुछ लोग तो उपलब्धि के भी बहुत नजदीक पहुंच जाते हैं, और बिना कान बंद किए भी उस ध्वनि को सुनने लग जाते हैं। जैसे अभी मैं हूँ, मैं अभी ध्यान दूं, तो मुझे अभी वह ध्वनि, अनहद नाद सुनाई दे रही है और बहुत तेजी से। तेजी से मतलब कान बंद करके जो साउण्ड सुनाई दें, उससे भी तेज साउण्ड में सुनाई दे रहा है। यही अनहद नाद है। 

        इसे सुनते-सुतने एक दिन आपकी कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है। जब यह शक्ति सुषुम्ना नाड़ी से प्रवाहित होकर ऊपर उठती है तो आपके सारे चक्र जागृत होते ह, फिर सहस्त्रार चक्र खुलता है, ब्रह्मरंध्र खुलता है और आप ब्रह्म में प्रवेश कर जाते है। आपको सेल्फ रिअलाइज हो जाता है, मतलब आप स्वयं को जान लेते हैं फिर आप पूरे सिस्टम को जान लेते हैं, तब आपको ये ध्वनि पूर्ण रूप से सुनाई देती है। कुछ लोग इसे अनहद नाद तो कुछ इसे ओंकार की ध्वनि कहते हैं। गुरु नानक को जब उपलब्धि हुई, जब वह एनलाइटेंन हुए तो इससे पहले गुरु नानक को यह ध्वनि ही सुनाई दी थी, ओंकार की ध्वनि इसीलिए गुरु नानक कहते हैं कि एक ओंकार सतनाम; क्योंकि उनको पहले यही ध्वनि सुनाई दी। 

        मैं आशा करता हूँ कि ध्वनि से संबंधित यह ध्यान की विधि आप लोगों को अच्छे से समझ आ गई होगी। आप इसका अभ्यास करें तो आप अवश्य, शीघ्र ही बोधि को उपलब्ध होंगे। आपको दो बातें बताई कि एक जो बाहर की ध्वनि आ रही है, उनको भी आपको सुनना है, और धारणा करनी है कि यह जो ध्वनि एनर्जी है, मुझ तक आ रही है, मैं ध्वनि शून्य का अंदर हूँ और मैं उसमें स्नान कर रहा हूँ, आई एम हेविंग द बाथ। ये बाह्य ध्वनि है, नाद है। कभी कान बंद करके आंतरिक ध्वनि सुनना है, अनहद नाद। तो आप कान बंद करके भी ध्यान कर सकते हैं, 2 मिनट 4 मिनट।

        जब भी ध्यान के लिए बैठे, ध्यान करें और कोई ध्वनि आ रही होती है तो उन्हें बाधा न समझें, इन सारी ध्वनियों को ऊर्जा में कन्वर्ट करके, अपने आप को ऊर्जावान महसूस करें। अपने अंदर शून्य के केन्द्र में पहुंच कर यह धारणा करें कि सभी ध्वनियाँ ऊर्जा है, मुझ तक ट्रेवल करके आ रही है, ऐसा मानना है यानी कि ध्वनि को ऊर्जा में कन्वर्ट कर लेना है।

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