पूर्णिमा के दिन ध्यान क्यो करना चाहिए?
‘‘हमारे शरीर में भी सत्तर से अस्सी प्रतिशत पानी
है। इसी कारण, जैसे समुद्र के पानी में ज्वार-भाटा उठता है, ठीक वैसे ही हमारे शरीर
में भी एनर्जी अप हो जाती है। सत्तर प्रतिशत पानी है न, इसलिए चन्द्रमा का, पूणि्र्ामा
का असर हमारे शरीर पर भी होता है। चन्द्रमा हमारी पूरी एनर्जी को ऊपर पुल करता करता
है, खींचता है। स्पेशल पूर्णिमा के दिन हमारे ब्लड के अंदर जो न्यूरान्स है वे अधिक
क्रियाशील हो जाते हैं और इसीलिए लोगों के अंदर ज्यादा एनर्जी होती है।"
सर्वप्रथम सभी को मेरी अंतरात्मा से शुभकामनाएं। आज रक्षाबंधन है
और पूर्णिमा है। इसे हम राखी पूर्णिमा भी कहते हैं। आज बहुत ही शुभ दिन है। इस पृथ्वी
को हम माता कहते हैं और इसके उपग्रह को हम चन्द्रमा कहते है, इसे हम चंदा मामा भी कहते
हैं। पृथ्वी और चन्द्रमा का भाई और बहन का रिश्ता है, इस प्रकार पृथ्वी हमारी मां और
चंद्रमा हमारे लिए मामा है। राखी पूर्णिमा के दिन बहनें अपने भाइयों को रक्षा सूत्र
बांधती है। इसी पूर्णिमा को रक्षा बंधन त्यौहार भारत की परम्परा है।
हिन्दू परम्परा और ज्योतिष विज्ञान के अनुसार चैत्र से लेकर फाल्गुन
तक बारह माह होते हैं और एक साल में बारह अमावस्य और बारह पूर्णिमाएं आती है। आपको
पता होगा कि प्रत्येक माह को पन्द्रह-पन्द्रह दिवस, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में बांटा
गया है। प्रथम पन्द्रह दिवस कृष्ण पक्ष और दूसरे पन्द्रह दिवस शुक्ल पक्ष के। कृष्ण
पक्ष के अंतिम दिन अमावस्य होती है और शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन पूर्णिमा होती है अर्थात्
फुल मून डे। पूर्णिमा के सन्दर्भ में, पृथ्वी और चंद्रमा के संबंध पर हम थोड़ी नजर डालते
हैं।
चंद्रमा का पृथ्वी के जल के साथ गहरा संबंध है। आप लोगों
को पता होगा कि जब पूर्णिमा आती है तो समुद्र में ज्वार-भाटा आता है जिसे अंग्रेजी
में टाइड्स कहते है। ज्वार, टाइड्स ऊपर उठते हैं। केवल राखी पूर्णिमा के दिन ही नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा के दिन ऐसा होता है, हर महिने पूर्णिमा आती है और हर पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार भाटा उठता है।
आप लोगों को यह भी पता होगा कि हमारे शरीर में भी
सत्तर से अस्सी प्रतिशत पानी है। इसी कारण, जैसे समुद्र के पानी में ज्वार-भाटा उठता
है, ठीक वैसे ही हमारे शरीर में भी एनर्जी अप हो जाती है। सत्तर प्रतिशत पानी है न,
इसलिए चन्द्रमा का, पूर्णिमा का असर हमारे
शरीर पर भी होता है। चन्द्रमा हमारी पूरी एनर्जी को ऊपर पुल करता करता है, खींचता है।
स्पेशल पूर्णिमा के दिन हमारे ब्लड के अंदर जो न्यूरान्स है वे अधिक क्रियाशील हो जाते
हैं और इसीलिए लोगों के अंदर ज्यादा एनर्जी होती है।
ज्यादा एनर्जी कैसे होती है, उसको समझ लेना है। न्यूरान्स जब अधित
क्रियाशील हो जाते है, तो जिसके अंदर जैसी एनर्जी होती है, वो ही एनर्जी अप होती है।
जैसे कि किसी के अंदर नकरात्मक एनर्जी है तो नकरात्मक एनर्जी अप होने लगेगी, किसी के
अंदर सकारात्मक उर्जा है तो सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा। मतलब जिसकी जिस प्रकार
की एनर्जी है, उस एनर्जी का प्रवाह तीव्र हो जाता है। विशेषकर पूर्णिमा के दिन कमजोर
दिमाग वाले लोग बहुत भावुक हो जाते हैं और उनमें नकारात्मक विचार ज्यादा आते है और
आत्महत्या के विचार भी कभी-कभी आते हैं। इस दिन बहुत लोग आत्महत्या की भी कोशिश करते
हैं, खासकर पूर्णिमा के दिन। कमजोर दिमाग वाले
भावुक हो जाते हैं, नकारात्मक विचार के कारण आत्महत्या की कोशिश करते हैं। पूर्णिमा
के दिन, मन सबका अधिक चंचल हो जाता है क्योंकि
एनर्जी का फ्लो बहुत अधिक होता है जैसे सागर में ज्वार-भाटा उठता है उसी समान हमारे
भीतर भी एनर्जी की लहरें उठती है, ज्वार-भाटा उठता है।
आप लोगों ने सुना होगा कि कभी-कभी हमें मंदाग्नि नामक बीमारी हो
जाती है, मंदाग्नि का अर्थ है पाचन शक्ति का मंद हो जाना। मंदाग्नि पाचन क्रिया से
संबंधित बीमारी है, जब चय-उपाचय यानी कि मेटाबॉलिज्म। चयापचय अथवा मेटाबॉलिज्म क्या
है, इसको भी समझ लीजिए, जीवनयापन के लिए शरीर की कोशिकाओं में जो रासायनिक क्रियाएं
होती है, वे मेटाबॉलिज्म है। यह वह प्रक्रिया है जिससे शरीर खाए-पीए भोजन को ऊर्जा
में बदलता है। यह एक जटिल जैव रासायनिक प्रक्रिया है और चयापचय, मेटाबॉलिज्म के कारण
ही हम चलते-फिरते, दैनिक जीवन का कार्य कर पाते है। मेटाबॉलिज्म जीवों को बढ़ाता है,
उनकी रक्षा करता है, पर्यावरण के प्रति सजग रखता है, सजग करता है।
जिनको भी मेटाबॉलिज्म यानी कि चयापचय की बिमारी होती है, वे पूर्णिमा
के दिन बहुत भावुक हो जाते हैं। उनके दिमाग
का नियंत्रण शरीर पर नहीं होकर भावनाओं पर होता है। इसका कारण यह है कि उनके अंदर के
जो न्यूरॉन्स हैं, वे शिथिल हो जाते हैं और शिथिल हो जाने के कारण वे ज्यादा भावनात्मक
हो जाते हैं।
इसलिए ठीक पूर्णिमा के आस-पास
के दिनों में, स्पेशली पूर्णिमा के दिन हमें नकरात्मक यानि कि तामसिक आहार नहीं लेना
चाहिए, तामसिक चीजों को देखना भी नहीं चाहिए, तामसिक जगहों पर भी नहीं जाना चाहिए।
ठीक पूर्णिमा से तीन दिनों के आस पास, जितना हो सके, हमें पवित्रता बनाए रखनी चाहिए।
जैसे मैंने आप लोगों को बताया कि जिसमें जैसी ऊर्जा होती है, वैसी ही उर्जा पूर्णिमा
के दिन अप होने लगती है। पूर्णिमा पर आप सभी अपने भीतर उठने वाली ऊर्जा को महसूस कर
सकते है कि कैसे इस समय एनर्जी हाई फ्लो, मन थोड़ा चंचल, इधर-उधर भागदौड़ करना चाहता
है। इन सभी कारणों से हिन्दू धर्म में पूर्णिमा को विशेष महत्त्व दिया गया है।
पूरे बारह महीनों में बारह पूर्णिमाएँ आती है और हर पूर्णिमा हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। पूर्णिमा में साधना
करने पर, आप बहुत आगे भी जा सकते हैं और बहुत पीछे भी जा सकते हैं। बहुत सारे लोगों
का जीवन इसमें बनता है और बहुत सारे लोगों का जीवन बिगड़ भी जाता है। जो लोग जीवन के
प्रति, प्रकृति के प्रति थोड़े से भी सतर्क है, जिनके अंदर सजगता है, उनका जीवन बनता
है और जो इन सब रहस्यों को जानते ही नहीं है, और कुछ भी अनाप-सनाप कर लेते हैं इस समय,
तो उनका जीवन बिगड़ता है। यह पूर्णतः वैज्ञानिक है,
पूर्णिमा के दिन और आस-पास जिस मानसिकता से आप गुजरते है, उसी तरह
का आपके भविष्य का निर्माण भी होता है। इसलिए इस समय हम पवित्रता बनाए रखें, आध्यात्मिक
चर्चा करें, मेडिटेशन करें, साधना करें, तो ये बहुत ही अधिक सफल होते हैं इस वक्त।
मैं कहता हूँ कि पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर जितने भी स्कूल, कॉलेज है, शिक्षा
केन्द्र हैं, इंस्टिट्यूशंस है, सभी जगह आध्यात्मिक चर्चाएं होनी चाहिए, विचार विमार्श
होना चाहिए और ध्यान करवाना चाहिए। लेकिन दुःख की बात है कि वहाँ इस बारे में चर्चाएं
नहीं होती है। आज यदि हम प्राथमिक विद्यालयों से लेकर हाई स्कूल और कॉलेज, यूनिवर्सिटी
लेवल पर यह शिक्षा विद्यार्थियां दें और उन्हें ध्यान करवाएं है तो वे जिंदगी में बहुत
आगे बढ़ सकते हैं, सकरात्मक दुनिया का निर्माण कर सकते है और यदि उनके अंदर सजगता नहीं
है तो जो मन में आए वही करेंगे और उसी दिशा में आगे बढ़ते जाएंगे।
पूर्णिमा के दिन, सूर्य
की तुलना में चन्द्रमा पृथ्वी के ज्यादा नजदीक होता है और चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण
के कारण समुद्र का जल ऊपर की ओर उठता है जिसे ज्वार कहते है और जब नीचे गिरता है तो
भाटा कहलाता है। पूर्णिमा के दिन जल और वातावरण
में विशेष ऊर्जा होती है, इस दिन चंद्रमा पृथ्वी की चीजों को अधिक ऊपर खींचता है। इसलिए
हमें इस दिन ध्यान करना ही चाहिए।
ध्यान के कई मानसिक और शारीरिक फायदें हैं। साइकोलॉजिकल बेनिफिसेंट,
फाइनेंशियल बेनिफिट्स, फिजिकल बेनेफिट्स, मेंटल बेनिफिट्स, सोशियल बेनिफिट्स है और
सबसे अधिक स्पिरिचुअल बेनिफिट्स है। लेकिन मेडिटेशन सिर्फ आंख बंद करके बैठने से ही
नहीं होता है। हमें पता होना चाहिए कि हम आंख बंद करके क्यों बैठे हैं, हम कहां जाना
चाहते हैं, किस चीज की लिए बैठे हैं, यह भी हमें जानना जरूरी होता है। जब हम आंख बंद
करके बैठते हैं, ध्यान करते हैं तो हमारी यात्रा बहुत आगे बढ़ती है।
आप और हम, सबमें एक ही समान आध्यात्मिक शक्ति दी गई है, किसी के
अंदर कम और किसी में ज्यादा नहीं। सबके अंदर
एक बराबर है। कौन कितनी गहराई तक पहुंचता है, जो जितनी गहराई तक पहुंचकर आएगा, यह तो
वह ही बताएगा। यह हम पर निर्भर है कि हम कितनी गहराई तक पहुंच रहे हैं। सागर की कितनी
गहराई में जा रहे है। ध्यान एक ऐसा महासागर है जिसकी गहराई का कोई अंत ही नहीं है।
जब हम कहते हैं कि ध्यान कीजिए, आप भीतर जाइए तो हम इस पांच-छः फुट के शरीर के भीतर
की बात नहीं कर रहे है। इसके अंदर क्या रखा है, यह तो हड्डियों के खंभों पर खड़ा हुआ
है। इसमें तो केवल मांस है, मल-मूत्र है, पानी है, इन सबसे ही भरा हुआ है।
जब आप भीतर जाते हैं तो भीतर जाते-जाते आप ब्रह्मांड के भीतर जाते
हैं और एक दिन ब्रह्मांड से भी परे चले जाते हैं। जिस दिन आप ब्रह्मांड के पर चले गए,
उस दिन आप सब जान जाएंगे। उस दिन आपको लिबरेशन मिल गया। उस दिन आपको मुक्ति मिल गई।
उस दिन आपके साथ एनलाइटनमेंट की घटना घट गई और मोक्ष की प्राप्ति हो गई। वहां आपके
साथ कोई थॉट नहीं होगा, कोई ज्ञान नहीं होगा। आप कोई थॉट या वृत्ति को लेकर वहां नहीं
जाएंगे। वहां पर कोई ज्ञान को लेकर जा भी नहीं पाएंगे।
जब हम ध्यान करते हैं, तो ध्यान करते-करते एक ऐसी स्थिति में पहुंच
जाते हैं जहां बिल्कुल विचार नहीं होता है, कोई विचार नहीं होता है, निर्विचार की स्थिति
में चले जाते हैं, जहां कोई विचार नहीं है, कोई थॉट्स नहीं है। ध्यान करते-करते अचानक
से आप उस महासागर में प्रवेश कर जाओगे, जिसे महाशून्य भी कहते हैं, प्योर इंटेलीजेंस
भी कह सकते है।
ध्यान करते-करते मन को शून्य कैसे करें यानि मन के ऊपर कैसे चले
जाएं, मन को जीरो कैसे करें? नियमित ध्यान करते-करते हैं, एकद दिन यह घटना घट जाती
है। किसी के अंदर बहुत ही स्लोली घटित होता
है, उसे पता भी नहीं चलता है, धीरे-धीरे। धीरे-धीरे वह अनंत महसूस करने लगता है। कभी-कभी
जब हम ध्यान करते हैं तो ध्यान करते-करते हमारी श्वांस-प्रश्वांस यानी श्वांस जो अंदर
जा रही है, बाहर निकल रही है, ध्यान की गहराई में, श्वांस एक क्षण के लिए भी रुक जाए
तो हमारी कुंडलिनी शक्ति जाग्रत हो जाती है। कुंडलिनी शक्ति हमारे भीतर मूलाधार में
रहती है। बहुत सारे लोग बोलते हैं लॉअर कंशियसनेश। जैसे ही श्वांस थोड़ी देर के लिए
रुक जाता है, यानी कि न बाहर जाता है न ही अंदर जाता है, मतलब शून्य हो जाता है, एक
पल के लिए तो कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है।
आप लोगों को पता है हमारे भीतर इडा, पिंगला और सुषम्ना नाड़ी होती
है। जब कुंडलिनी शक्ति जागृत हो जाती है तो श्वांस सुषम्ना नाड़ी से प्रवाहित होते हुए,
धीरे-धीरे सहस्त्रार तक आती है और किसी-किसी के तो ब्रह्मरंध्र में भ्रमण करके ब्रह्म
के साथ एक हो जाती है जिसे एकीकरण कहते हैं या एकात्म स्थिति में चले जाना कहते हैं।
किसी किसी के आज्ञा चक्र तक ही आती है।
यह सब साधक की पात्रता के अनुसार यह सब घटित होता है। जिसकी जैसी
स्थिति है, उसी स्थिति अनुसार कुंडलिनी शक्ति ऊपर आती है। जिसका शुद्धिकरण नहीं हुआ
है, जिसका अभी समय नहीं आया है, वह समझ नहीं पाएगा। कुंडलिनी जाकरण की प्रक्रिया बहुत
ही आराम से होती है, अचानक से सब कुछ होगा तो उसके साथ, सब गड़बड़ हो जाता है। अचानक
से कोई भी काम अच्छे से नहीं होता है। धीरे-धीरे जितना हो सके, होने देना चाहिए।
तो पूर्णिमा का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। स्पेशली अगर आप अपने
जीवन को एक सकारात्मक का रूप देना चाहते हैं, एक सकारात्मक दिशा की ओर ले जाना चाहते
हैं, आध्यात्मिक उपलब्धि या उस आध्यात्मिक केंद्र पर पहुंचना चाहते हैं तो पूर्णिमा
बहुत ही शुभ दिन है। आज के दिन इतना ही मुझे कहना था।
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