Blogs

  • Home
  • Blog
  • क्या कृष्ण ही सब कुछ है?
WCiwDG3m7RZNr6uX29ST8kAtn.png

क्या कृष्ण ही सब कुछ है?

"मैं कहता हूँ, द्वैत का बहुत महत्व है, क्योंकि द्वैत से ही हम अद्वैत में पहुंचेंगे। हमें द्वैत का कोई एक रोल लेना पड़ेगा। चाहे वह श्वांस हो या तीसरी आंख हो, चाहे शिव की अराधना करें या विष्णु की आराधना करें या किसी की भी आराधना करें; क्योंकि द्वैत की शक्ति के द्वारा ही अद्वैत तक पहुंचा जा सकता है, उसके बिना ब्रह्म की उपासना नहीं की जा सकती है। निराकार शक्ति की आराधना नहीं की जा सकती है।"

नमस्कार। एक साधिका के कमेंट बॉक्स में पूछने पर मैंने उन्हें शिवलौक, गौलोक, बैकुण्ठ धाम के बारे में एक वीडियो भेजा तो उसे देखने के बाद उन्होंने कमेंट बॉक्स में लिखा कि गुरुजी, इस्कॉन वाले तो कहते हैं कि कृष्ण ही सब है, और हम कुछ कहे तो वे झगड़ा करने लग जाते हैं। आगे उस साधिका ने कहा कि मैं भी पहले हरे राम, हरे कृष्ण का ही मंत्र जाप किया करती थी। बहुत सालों तक जप किया लेकिन अब मैं ध्यान कर रही हूँ।

तो उनको मैं यही उत्तर देना चाहता हूँ कि देखिए, इस्कॉन के जितने भी अनुयायी है, वे कृष्ण को ही सब कुछ मानते है लेकिन उनके कहने के पीछे का तात्पर्य क्या है, यह भी समझना जरूरी है। कहीं वे भी तो योग माया में नहीं फंसे हुए हैं। यदि केवल तस्वीर, कथा कहानियों में ही फंसे है, तो योग माया में फंसे हुए है। और हो सकता हैं, वे कृष्ण को, परम चेतना, परम तत्व के रूप में मानते है, यदि ऐसा है तो सही है क्योंकि हमें परमात्मा के लिए आत्मा, कृष्ण, शिवा, कुछ कुछ कोई एक नाम तो देना ही पड़ेगा, समझाने के लिए। लेकिन अगर वह सोचते है कि नहीं, कृष्ण वैसे ही है जैसे तस्वीरों में दिखते है, कोई बैकुण्ठ धाम है, कोई गौलोक है, तो वे भ्रम में है। उन्हें अभी कृष्ण, बैकुण्ठ लोक, कथा-कहानियों के पीछे के रहस्य को समझना पड़ेगा।

मैक्सिमम इस्कॉन फॉलोअर्स को मैंने देखा है, मैंने भी प्रैक्टिकली बहुत अध्ययन किया है। हरे राम, हरे कृष्ण जप करने के लिए मुझे भी बचपन से सिखाया गया था। आज भी मेरे गांव में, जो मंदिर है, वहां पर हरे राम, हरे कृष्ण का जप होता है, साल में कितनी ही पूजा होती है, लोग जाते हैं। मैं भी प्रारम्भिक अवस्था में धोती पहन कर  जाता था, मैं भी बचपन से यही करके आया। मेरे चित्त में भी यही था। मैं नहीं कहता कि हरे राम, हरे कृष्ण मत कीजिए। लेकिन इसके पीछे का विज्ञान समझिए।

लेकिन बाद में, जब मैं ध्यान के मार्ग पर आया तो चीजों को अच्छी तरह से समझना स्टार्ट किया, इन्वेस्टिगेट स्टार्ट किया, तो धीरे-धीरे चीजों को मैं समझने लग गया कि ये सब क्या है। मेरे साथ बोधि की जब घटना घटी, जब मेरी समाधि लगी, इक्कीस अप्रैल 2021 को, पहले कुंडलिनी शक्ति का जागरण, फिर नेक्स्ट डे ही समाधिष्ठ होना। तब मुझे सारी चीजें समझ में आई।

जब तक आपको खुद को अनुभव नहीं होगा, तब तक आपको समझ में नहीं आयेगा। सिर्फ कल्पनाओं में ही फंसे रहेंगे। अनुमानित ज्ञान ही आपके पास होगा कि ऐसा नहीं है, ऐसा है। मैं कृष्ण के फॉलोअर्स को इस रूप में मानता हूँ कि ये लोग कृष्ण के बालक की तरह, बाल्यकाल में फंसे हैं। फिर से रिपीट कर रहा हूँ। ये सारे लोग बालक की तरह, बाल कथाओं में फंसे हैं और ये फंसे रह जाएंगे, इनको मुक्ति भी नहीं मिलेंगी; अगर इन प्रतीकात्मक चीजों को अच्छी तरीके से नहीं समझेंगे तो। यदि उन्हें मुक्ति चाहिए तो उन्हें चीजों को अनुभव करके समझना पड़ेगा। इमेजिनेंशन में आप यदि सारे लोक बना लेंगे तो इससे काम नहीं चलेगा। इनसे निकलना है, पर फंसना नहीं है। आप हरे राम, हरे कृष्ण भी कर रहे है, तो क्यों कर रहे हैं। उस तत्व दृष्टि के पास जाए, समझे।

मैं कहता हूँ, द्वैत का बहुत महत्व है क्योंकि हम द्वैत से ही अद्वैत में पहुंचेंगे। हमें द्वैत का कोई एक रोल लेना पड़ेगा। चाहे वह श्वांस हो या तीसरी आंख हो, चाहे शिव की अराधना करें या विष्णु की आराधना करें या किसी की भी आराधना करें; द्वैत की शक्ति के द्वारा ही अद्वैत तक पहुंचा जा सकता है, उसके बिना ब्रह्म की उपासना नहीं की जा सकती है। निराकार शक्ति की आरधना नहीं की जा सकती है।

लेकिन हमारा लक्ष्य है, उस परम सत्य तक पहुंचना। वहां पर पहुंचकर हम स्वयं नहीं रहते हैं। जैसे नमक पानी में मिलाया, तो नमक पानी में घुल गया और पानी के साथ एक हो गया। इसी प्रकार से, बोधि उपरान्त हमारा व्यक्तिगत परिचय समाप्त हो जाता है। मैंने पहले भी कहा कि जैसे  ब्रह्मपुत्र नदी जाकर जब सागर में मिलती है तो ब्रह्मपुत्र का अपना अस्तित्व खत्म हो जाता है, वह सागर ही बन जाती है। ठीक ऐसा ही इस मार्ग में होता है।

प्रकृति आपको फेस टू फेस, हमेशा ज्ञान दे रही है। प्रकृति हर जगह दिखा रही है, अपना ज्ञान दे रही है कि देखो, समझो, देखो और समझो। हर घटना जो आपके साथ घट रही है, उसी में ज्ञान छिपा है। आप बस उसके प्रति जागरूक नहीं है। समझ नहीं रहे हैं। प्रकृति का डिजाइन भी उसी तरह से हुआ है। कहीं भी जाओ, जाकर देखो। सारी नदियां भी जाकर सागर में मिल रहे हैं। इसमें निहितार्थ को समझें। प्रकृति के नियम को जानना चाहते हैं तो प्रकृति की प्रत्येक चीज को आब्जर्व कीजिए, तो भी आपको पता चल जाएगा।

अंत में, मेरा कहना है कि आप कहीं भी, ऐसी चीजों में ना फंसे, आप ध्यान के मार्ग पर आगे बढे और अच्छे से ध्यान करे। कोई भी प्रश्न है तो आप मुझसे पूछ सकते हैं, कमेंट में लिख सकते हैं। मैं पूरा प्रयास करूंगा, आपको बताने के लिए। धन्यवाद।

Leave a Comment

300 characters remaining