क्या आत्म-बोध के लिये कुंडलिनी जागरण जरूरी है?
ब्रह्मरन्ध्र खुलेगा तभी तो आप आत्मा तक पहुंचेंगे। ब्रह्मरन्ध्र के खुले बिना, आप आत्मानुभूति कैसे कर लेंगे, भ्रम होगा। बिना कुंडलिनी जागरण आत्म अनुभूति हो ही नहीं सकती है, कभी संभव नहीं है।
क्या
आत्म-बोध
के
लिए
कुण्डलिनी
जागरण
जरूरी
है?
इस
प्रश्न
का
निवारण
सुन
लीजिए।
यह
भ्रम
है
कि
बिना
कुण्डलिनी
जागरण
आत्म
बोध
हो
सकता
है।
भ्रम
कैसे
होता
है?
अकेले
शांति
में,
शांति
वाले
माहौल
में
जाकर
ध्यान
करते
हैं,
ध्यान
करते
करते
शांत
हो
गए।
आस-पास
कोई
डिस्टर्ब
करने
वाला
नहीं
हैं।
तो
कभी-कभी
लगता
है
कि
मैं
शांत
हो
गया।
यही
शांत
स्वरूप
है।
मैंने
आत्मा
को
उपलब्ध
कर
लिया।
मुझे
मिले
है
ना,
65,
75,
77 साल
के
सन्यासी,
बड़ी-बड़ी
दाढ़ी
वाले
मिले
है,
वहां
आसाम
में।
आप
खुद
ही
सोच
कर
देखिए।
बिना
कुंडलिनी
शक्ति
जागरण
के
आत्मानुभूति
कैसे
हो
सकती
है?
क्योंकि
इस
सिस्टम
में,
सूक्ष्म
शरीर
में
यदि
यह
घटित
ही
नहीं
होगा,
आपके
लिए
दरवाजा
ही
नहीं
खुलेंगा,
तो
यात्रा
आगे
कैसे
बढ़ेगी?
शक्ति
जागृत
होकर
थर्ड
आई
तक
आएगी।
आकर
सिर
में
घूमेगी
और
ब्रह्मरन्ध्र
खुलेगा,
तभी
तो
आप
आत्मा
तक
पहुंचेंगे।
ब्रह्मरन्ध्र
के
खुले
बिना,
आप
आत्मानुभूति
कैसे
कर
लेंगे?
भ्रम
होगा।
आज तक बिना ब्रह्मरन्ध्र खुले, किसी को अनुभूति नही हुई। हो ही नहीं सकती है। ब्रह्मरन्ध्र खुलेगा तभी शक्ति सहस्त्रार पर संवेदना महसूस होगी और आप धीरे-धीरे शून्य होते चले जाएंगे, शून्य होते चलेंगे। ये प्रोसेस है, बिना इसके गुजरे हुए, आत्मानुभूति हो नहीं सकती है। ऐसा कभी नहीं हो सकता है, चाहे आप जितना चिंतन-मनन कर लो, नहीं हो सकता है।
हां,
यह
भी
हो
सकता
है,
चिंतन-मनन
से
धीरे
धीरे
सूक्ष्म
रूप
से
उसी
तरह
से
घट
गया
और
अकर्त्ता
स्थिति
में
आ
गए।
निराकार
स्वरूप
में
आ
गए।
एक
रूप
हो
गए,
शून्य
हो
गये।
काम
करते
हुए
भी,
महसूस
नहीं
कर
पा
रहे
कि
मैं
कर
रहा
हूँ।
खाते
हुए
भी
महसूस
नहीं
होता
कि
मैं
खा
रहा
हूँ।
बस
शरीर
खा
रहा
है,
शरीर
चल
रहा
है,
खाना
भी
हो
रहा
है,
नाचना
भी
हो
रहा
है,
बस
हो
रहा
है।
किसी
से
झगड़ा
भी
होगा
तो
झगड़ा
हो
रहा
है,
उसमें
मैं
कर
रहा
हूँ
यह
भाव
नहीं
आएगा।
बस
चीजें
हो
रही
है।
जैसे
हवाएँ
बह
रही
है,
पेड़-पौधें
बड़े
हो
रहे
हैं,
पहाड़
पर
कितने
जंगल
हो
रहे
हैं,
पेड़-पौधें
हो
रहे
हैं,
फूल
लग
रहे
हैं,
फल
लग
रहे
हैं,
फिर
पक
रहे
हैं
गिर
रहे
हैं,
इस
प्रकार
नेचुरली
कितनी
सारी
चीजें
हो
रही
है
तो
वैसे
ही
आपके
अंदर
भी
स्वभावतः
अभी
भी
हो
ही
रहा
है
लेकिन
आप
अपने
बुद्धि
और
मन-अहंकार
के
कारण,
ऐसा
लगता
है
कि
ये
मैं
कर
रहा
हूँ।
जब
यह
पता
चल
जाए
कि
यह
भी
स्वभावतः
मेरे
साथ
भी
हो
रहा
है,
जैसे
एक
पेड़
के
साथ
होता
है।
पेड़
कभी
कोशिश
नहीं
करते,
वे
कभी
नहीं
सोचते
कि
मैं
बढ़
रहा
हूँ,
बढ़
गा्रे
कर
रहा
हूँ।
मैं
ऐसा
फैल
जाऊंगा।
मैं
ऐसा
करूंगा,
वैसा
करूँगा।
सब
कुछ
सहजतः
प्राकृतिक
रूप
से
हो
रहा
है।
इसी
तरह
से
हमारे
अंदर
नेचुरली
चीज
हो
ही
रही
है।
आपके
अंदर
जो
प्रकृति
रूपी
चेतना
बह
रही
है
इट
इज
एट
द
वेरी
नेचुरल
स्टेट।
इसको
जो
जान
लेता
है
वो
अकर्त्ता
की
स्थिति
में
आ
जाता
है।
साक्षी
की
स्थिति
में
आ
जाता
है
कि
बस
हो
रहा
है।
बिना
इसके
जागरण
के,
बिना
कुंडलिनी
शक्ति
जागरण
के,
बिना
ब्रह्मरन्ध्र
खुले
हुए,
आत्मानुभूति
नहीं
होगी?
क्योंकि
आत्मा
अनुभूति
का
मतलब
है
स्वयं
को
जानना
और
यह
तभी
संभव
है
जब
आप
इतने
शांत
हो
जाते
हो
कि
इस
शरीर
की
मृत्यु
होती
है
तो
आप
होशपूर्वक
ब्रह्मरन्ध्र
के
द्वारा
निकल
सकते
हो।
हमारे
शरीर
के
दस
द्वार
है।
जब
ब्रह्मरन्ध्र
खुलेगा
ही
नहीं
तो
आपको
तो
दूसरे
द्वारों
से
निकलना
पड़ेगा।
ये
द्वार
ही
फिक्स
करते
हैं
कि
कौनसे
द्वार
से
निकलने
से
कौनसे
लेवल
की
गति
मिलेगी।
जैसे
मैंने
पहले
भी
बताया
कि
आपको
मौका
मिले
तो
पता
करना,
ये
बहुत
ही
साइंटिफिक
है।
कोई
भी
मृतक
लाष
को
देखना;
घर
पर
किसी
की
नेचुरल
डेथ
हो
जाए
तो
उनको
देखना।
अगर
उनकी
जीवात्मा
गुदाद्वार
रास्ते
से
निकली,
तो
कुछ
लेटरिंग
निकल
आएगी।
ऐसे
हमने
बहुत
एक्सपेरिमेंट
किया
है।।
पेशाब
वाले
रास्ते
से
प्राण
बाहर
निकलेंगे
तो
कुछ
पेशाब
निकल
आएगी।
ये
दोनों
अधोगति
है,
अधोगति
है।
जिस
गति
में,
जिस
लेवल
में
थे,
उससे
भी
नीचे
चले
गए।
जैसे
सरकारी
विभाग
में
कोई
एक
अच्छा
अधिकारी
नौकरी
कर
रहा
हो
और
उसने
कुछ
ऐसा
कर्म
कर
दिया
जिसकी
वजह
से
उसकी
नीचे
पोस्टिंग
(पदस्थापन)
कर
दी
गई
अथवा
उसको
जेल
में
डाल
दिया
गया
अथवा
उसकी
सारी
संपत्ति
को
सीज़
कर
लिया
गया।
ठीक
इसी
प्रकार
से
उसकी
कर्मों
की
गति
की
वजह
से
उसे
नीचे
भेज
दिया
जाता
है।
वह
नीचे
वाले
योनि
को
प्राप्त
कर
लेगा।
कानों
से
निकलना
अच्छा
है
क्योंकि
कान
से
हम
क्या
करते
हैं?
श्रवण
करके
ज्ञान
प्राप्त
करते
हैं
इसलिए
इसे
उत्तम
माना
गया
है।
फिर
आंखों
से
निकलना,
आंखें
खुली
है
तो,
गति
थोड़ी
सी
ऊपर
गई
है,
जहाँ
पर
थे,
उससे
ऊपर
गई
है।
मुख
से,
नाक
से,
गति
लगभग
एक
ही
बराबर
में
रह
जाती
है।
दो
छिद्र
है,
मुख
है,
इन
सबकी
काउंटिंग
करोगे
तो
नौ
अंक
आएंगे
और
सहस्त्रार,
ब्रह्मरन्ध्र
को
मिलाकर
ये
कुल
दस
द्वार
है।
योगी
जो
सन्यासी
होता
है
उसके
प्राण
दसवे
द्वार
अर्थात्
ब्रह्मरन्ध्र
से
निकलेगा।
स्वांस
उल्टा
चलने
लग
जाएगा।
निकलता
हुआ
स्वांस
उल्टा
चलने
लग
जाए,
तो
सोच
लेना
कि
जाने
का
समय
आ
गया।
तो
योगी
का
भी
स्वांस
उल्टा
चलेगा
और
जो
अभी
पूर्णता
को
प्राप्त
नहीं
किया
है,
उसका
भी
स्वांस
मृत्यु
के
समय
उल्टा
चलने
लगता
है।
मृत्यु
से
पहले
करीब
नौ
महीने
पहले।
इसी
प्रकार,
जब
माँ
के
गर्भ
में
बच्चा
आता
है
तो
आप
गर्भ
विज्ञान
को
पढ़े
तो
करीब
चालीस
से
पैन्तालिस
दिन
के
प्रोसेस
में,
गर्भ
में,
उसके
बाद
से
उसका
स्वांस
का
सिस्टम
स्टार्ट
होती
है।
तो
जब
से
स्वांस
का
सिस्टम
गर्भ
में
स्टार्ट
होता
है,
प्रकृति
से
मां
के
गर्भ
में
ही
स्टार्ट
होता
है।
और
जब
मां
के
कोख
से
बाहर
निकलता
है।
ठीक
वही
ड्यूरेशन
मरने
से
पहले,
धीरे-धीरे
स्वांस
बीच-बीच
में
बाहर,
कभी-कभी
क्षण
भर
रुकेगा,
बाहर
आएगा।
इस
तरीके
से
सिम्टम्स,
लक्षण
आने
लगते
हैं।
और
अंतिम
समय
में
स्वांस
एकदम
बाहर
निकलेगा।
कोई
रोकना
चाहे
तो
चाह
कर
भी
कोई
रोक
नहीं
पायेगा।
देख
रहे
हो
कि
मेरी
बच्ची
है,
बेटा
है,
मेरा
रिश्तेदार
है,
एक्सीडेंट
हो
गया;
कुछ
भी
हो
गया,
रोक
ले
कोई।
पृथ्वी
पर
डॉक्टर,
वैज्ञानिक
कोई
पैदा
ही
नहीं
हुआ
है
कि
उसे
रोक
लें।
तो
उसका
स्वांस
उल्टा
ही
निकलेगा।
देखते-देखते-देखते
उसके
प्राण
निकल
जायेंगे।
शरीर
में
पंच
वायु
है।
प्राण
वायु
एक
ही
है
लेकिन
इसे
शरीर
के
अलग
अलग
हिस्सों
में,
पंच
वायु
में
विभक्त
किया
गया
है।
उदान-सिर
और
गले
में,
प्राण-हृदय
क्षेत्र,
अपान-पेट
के
नीचे
का
क्षेत्र,
समान-
हृदय
और
पेट
के
बीच
और
व्यान
पूरे
शरीर
में
व्याप्त
होती
है।
पांच
जगह
पर,
इसलिए
इसके
पांच
नाम
हो
जाते
है।
लेकिन
है
वो
एक
ही।
जैसे
कोई
है
एक,
लेकिन
किसी
के
लिए
माता
है,
किसी
के
लिए
सिस्टर
है,
किसी
के
लिए
दादी
मां
है,
ऑफिस
में
जाएं
तो
बॉस
या
बाबू
या
स्कूल
में
पढ़ाने
जाए
तो
टीचर
बन
कहलाता
है,
तो
किसी
गुरु
के
सामने
शिष्य
बन
जाता
है।
उसी
प्रकार
से
प्राण
वायु
अपने
आप
को
पंच
जगह
पर
विभक्त
कर
लेता
है।
नियत
करके
जो
काम
करता
है,
तो
हम
पंचवायु
कहते
है।
मृत्यु
के
समय
एक-एक
करके
सभी
वायु
निकल
जाती
हैं।
अंत
में,
व्यान
वायु
भी
निकल
जाता
है।
खेल
खत्म
हो
जाता
है।
निकलते
समय
यह
पहले
तो
आज्ञाचक्र
तक
पहुंचती
है
और
कोई-कोई
साधक
का
सहस्त्रार
तुरंत
भी
खुल
जाता
है।
हाँ,
आज्ञाचक्र
से
सहस्त्रार
तक।
कभी
कभी
क्या
होता
है,
वह
शक्ति
साधक
को
भी
देखती
है,
ना।
ब्रह्मरंध्र
खुलने
का
मतलब
हो
सकता
है
कि
आप
वापस
घर
ना
जाएं,
ऐसा
भी
हो
सकता
है।
वह
शक्ति
इतनी
अद्भुत
है
कि
आप
अंदर
से
एक
संत
सन्यासी
बन
जाएंगे,
ब्रह्मरन्ध्र
खुल
गया
तो।
इसलिए
कुंडलिनी
भी
एकदम
से
सब
कुछ
नहीं
करेगी।
वह
पहले
यहां
आज्ञाचक्र
तक
आती
है,
और
जो
बहुत
तेजस्वी
और
सब
कुछ
संभालने
वाले
होते
हैं,
उनके
दस
दिन
के
अंदर,
यहां
सहस्त्रार
पर
केंद्र
महसूस
होने
लग
जाती
है।
जो
यहां
तक
पहुँच
जाता
है,
उसका
ध्यान
अपने
आप
घटित
होने
लग
जायेगा।
जहाँ
भी
बैठेंगे
ध्यान
लगने
लग
जाएगा।
शरीर
कमजोर
हो
जाएगा।
चेतना
का
बहुत
फैलाव
हो
जाएगा।
विराटता
आने
लगेगी।
कभी
लगेगा
कि
पूरा
ब्रह्मांड
में
हूँ।
पूरी
ऊर्जा
से
भर
जाएंगे।
ऊर्जा
ही
ऊर्जा,
कभी
इसे
भी
छोड़कर,
कुछ
चिंतन
मनन
आगे
चलेगी।
छः
महीना,
एक
साल
में
क्या
होगा
कि
कर्त्ता
भाव
धीरे-धीरे
मिटते-मिटते
और
सहस्त्रार
खुल
जाता
है।
बार-बार
ध्यान
में,
मैं
कहता
हूँ,
ना
सहस्त्रार
पर
ध्यान
लाओ।
बार-बार
प्रेशर
करेंगे
तो
यह
खुल
जाएगा।
खुलने
का
मतलब
एनर्जी
बाहर
निकल
जाएगी
और
बहुत
ही
हल्का
महसूस
होगा
और
आप
भी
धीरे-धीरे
बाहर
ही
निकल
जाओंगे।
इसलिए
एडवांस
साधक
को
यहां
ध्यान
लगाना
चाहिए।
हृदय
में
भी
ध्यान
लगाइए।
अनाहत
चक्र
पर
भी
लगा
सकते
हैं।
कई
लोगों
के
अंदर
ऊर्जा
का
स्तर
इतना
डाउन
होता
है
कि
उनको
बहुत
बार
शक्तिपात
करना
पड़ता
है,
ऊर्जा
दे
देकर,
दे
देकर,
बहुत
ऊपर
लाना
पड़ता
है,
तब
धीरे-धीरे
उनकी
एनर्जी
ऊपर
आती
है।
लेकिन
एक
बार
शक्तिपात
हो
गई
तो
वह
अपनी
गति
ले
लेगी,
आगे
जाकर।
उसका
हम
समय
निर्धारित
नहीं
कर
सकते
है।
लेकिन
जो
जितना
ज्यादा
ध्यान
करेंगे
जितने
सेशन
में
आएंगे,
जितनी
शक्तिपात
मिलेंगी,
उतनी
ही
अधिक
एनर्जी
ऊपर
उठेगी।
और
जो
पहले
से
ऊर्जा
एकत्रित
किए
हुए
है,
उनकी
बात
अलग
है।
कुछ
ऐसे
पक्के
हुए
साधक
शिविर
में
आते
है
कि
उनको
बस
इंतजार
होता
है
कि
एक
बार
गुरुजी
मेरे
पास
आए।
मेरे
देखने
मात्र
से
वे
लय
में
आने
लग
जाते
है।
जैसे
ही
मैं
उनके
पास
जाता
हूँ,
तो
कुंडलिनी
शक्ति
प्रसन्न
हो
जाती
है
और
तुरन्त
अवेकनिंग
हो
जाती
है।
उस
वक्त
चिलाना-रोना
ये
अपने
हाथ
में
नहीं
होता
है।
क्यों
रो
रहा
हूँ?
क्यों
चिल्ला
रहा
हूँ?
यदि
कोई
आकर
कहे
कि
रोइएँ
तो
आप
रो
नहीं
पाएंगे।
देखिए
ये
एक
परमानंद,
उत्साह
की
स्थिति
होती
है,
जब
लोगों
के
अंदर
कुंडलिनी
पूर्ण
रूप
से
अवेकण्ड
होती
है
तो
उनको
एक
दो
मिनट
अपने
बस
में
कुछ
नहीं
होता
है,
कुछ
बस
में
नहीं
होता
है।
मतलब
हाथ-पैर
वाइब्रेशन
होने
लगते
है।
जबरदस्त
हिलने
लगना,
रोना
बस
में
नहीं
होता
है,
कुछ
देर
के
लिए।
जैसे
अभी
मैं
कहूँ
कि
आप
चेयर
से
उठिए
और
छलांग
लगाइए।
तो
चेयर
से
भी
उठ
नही
पा
रहे
है
और
वीडियो
रिकॉर्डिंग
आप
लोग
देखोगे
जो
यहां
से
रिकॉर्ड
हो
रही
है,
लेकिन
उस
वक्त
कहां
से
इतनी
शक्ति
आती
है
जो
उनको
उठा-उठा
कर
पटक
देती
है।
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