कुण्डलिनी जागरण, आत्म साक्षात्कार और गॉड रिलाईजेशन से परे जाना है।
-निर्वाण और महानिर्वाण में अंतर और लक्षण
-किसी आकृति, रोशनी, मूर्ति पर अटकना मतलब मार्ग अवरूद्ध करना
-भीतर से सबकुछ छोड़़ना पड़ता है
‘‘जब प्रारब्ध कम होते हैं, तो आप देखेंगे कि आपके भीतर, आपके जो संकल्प हैं, वे हकीकत में बदल रहे हैं। यदि आप कोई काम के बारे में सोच रहे हैं कि यह काम हो जाना चाहिए तो कल प्रकृति में वह काम आपके लिए अपने आप तैयार हो जाएगा। कहाँ से, किस माध्यम से होगा, आप भी समझ नहीं पायेंगे। कुछ चीजें स्वयं ही आपके पास पहुंच जाएंगी। तो यहाँ पर भी साधक फँस जाता है, क्योंकि उसको बहुत मजा आता है। ’’
कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के बाद बहुत साधक फँस जाते हैं, क्योंकि इसके बाद अद्भुत अनुभव होने शुरू हो जाते हैं। आपके साथ अलग-अलग चीजें घटित होना प्रारम्भ हो जाती हैं।
हर साधक में अलग-अलग तरह की चीजें होती हैं, अर्थात् अलग-अलग अनुभव होता है। जैसे- किसी को बोलने की कला आ जायेगी, किसी को पढ़ने की कला आ जाती है अर्थात् बुद्धि और तेज हो जाएगी और फोकस करना आ जाएगा, तो वह इस दुनिया में और कुछ करना चाहेगा। कोई बड़ा गुरु बनना चाहेगा, कोई पैसा या बंगला बनाना चाहेगा, तो कोई अपने को साबित करने के लिए कुछ न कुछ करना चाहेगा। कुछ करने का जज्बा बना ही रहेगा।
कुण्डलिनी शक्ति पूरी तरह से जगने पर वह बहुत शक्तिशाली और प्रभावशाली बन जाता है। अगर वह ठान लेगा कि मुझे यह करना है, तो करके रहेगा। उसके प्रारब्ध लगभग बहुत साफ हो चुके होते हैं, और उनकी बहुत तेजी से क्लीनजिंग हो रही होती है। जैसे ही कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है, तो जीवन में अचानक से बहुत दुख भी आयेंगे। कभी-कभी सुंदर अनुभव होते हैं, तो कभी कष्टदायक अनुभव होते हैं। इट हैप्पन्स टू कन्ज्यूम योर कार्मिक अकाउण्ट्स। यह आपके कर्मां के हिसाब- किताब को खत्म करने के लिए होता है।
जब प्रारब्ध कम होते हैं, तो आप देखेंगे कि आपके भीतर, आपके जो संकल्प हैं, वे हकीकत में बदल रहे हैं। यदि आप कोई काम के बारे में सोच रहे हैं कि यह काम हो जाना चाहिए तो कल प्रकृति में वह काम आपके लिए अपने आप तैयार हो जाएगा। कहाँ से, किस माध्यम से होगा, आप भी समझ नहीं पायेंगे। कुछ चीजें स्वयं ही आपके पास पहुंच जाएंगी। तो यहाँ पर भी साधक फँस जाता है, क्योंकि उसको बहुत मजा आता है।
तो हमें इस पर भी रुकना नहीं है। इसके आगे की जो यात्रा है, वहाँ पर होता है, आत्म-साक्षात्कार, परमात्मा का साक्षात्कार, गॉड-रिअलाईजेशन। जब ऐसा लगता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ, आत्मा ही सब कुछ है, मैं आत्म-स्वरूप हूँ। तो हमें यहां पर भी नहीं रूकना है। हालांकि मैंने भी कई व्याख्यान में यह बताया है कि ब्रह्म ही सब कुछ है, तो यह साधक के स्तर के अनुसार उन्हें समझाना पड़ता है। लेकिन इसके आगे भी आपको निकलना है।
इसके आगे भी साधक अलग-अलग अनुभूति के स्तर तक पहुँच जाते हैं। लेकिन हमें उसमें फंसना नहीं है, रूकना नहीं है। कभी कॉस्मिक बॉडी अर्थात् ब्रह्मांडीय शरीर की अनुभूति होगी जो सूक्ष्म रूप से पूरे ब्रह्मांड की प्रतीती है। यह भी एक तल पर आपका ही शरीर है। लेकिन उसके बाद भी अभी यात्रा शेष है।
अन्त में फिर बॉडी लेस, टाइमलेस, एम्प्टीनेस की स्थिति आती है, जहाँ पर सब कुछ मिट जाता है। ब्रह्म है, यह भी मिट जाता है, यह भी नहीं रहता है। तब आपको अगर बुद्ध के अनुसार कहें तो निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है। हालांकि कई शास्त्रों में इसी को कहा गया है, आत्म-साक्षात्कार या निर्वाण। लेकिन यह सब कुछ होने के बाद भी पूर्व के संस्कार उभरते रहते हैं, आते रहते हैं। धीरे-धीरे खत्म होंगे, पूर्व संस्कार और फिर आती है महासमाधि या बुद्ध की भाषा में कहें तो महानिर्वाण।
निर्वाण और महानिर्वाण में अंतर और लक्षण-
किसी ने जाकर पूछा था बुद्ध से कि निर्वाण के बाद क्या होता है तो बुद्ध कहते हैं कि निर्वाण के बाद, बस एक लौ है। यानि वह अभी है। तो साधक पूछता है कि महापरिनिर्वाण के बाद? अर्थात् जब मुक्ति हो जाती है तब? उसके बाद में क्या बच जाता है? तब बुद्ध प्रत्युत्तर देते हैं कि लौ मिट जाती है, फिर कोई सवाल नहीं उठता है। तो महापरिनिर्वाण में यह घटित होता है, अन्त में।
यहाँ पर पूर्ण रूप से सारी इच्छाएँ मिट जाती हैं, बस करूणा ही रह जाती है। फिर इस शरीर को छोड़ देना पड़ेगा। यहाँ पर ब्रह्मांड की कोई भी शक्ति, आपके सामने कुछ कर नहीं पाएंगी। सब आपने विलीन हो जायेंगे। आयेंगे उड़ते हुए और सब आपमें विलीन हो जायेंगे, जैसे सब नदी-नाले इधर-उधर से डोलते-बहते हुए सागर में आकर विलीन हो जाते हैं। इसी तरह से किसी ने आपको गाली दी, किसी ने कुछ शुद्ध कह दिया, किसी ने कुछ भी कहा, वो सारी, उनकी कहीं हुई चीजें/एनर्जी आप तक आई लेकिन आपमें विलीन हो जायेगी। आपके चेहरे पर हमेशा मुस्कराहट ही बनी रहेगी।
आँखों में प्रेम ही रहेगा। होठों से प्रेम ही निकलेगा। चलने में प्रेम, बोलने में प्रेम, उठने में प्रेम, बैठने में प्रेम, खाने से प्रेम, देखने से प्रेम। प्रेम के सिवाय कुछ नहीं बचेगा आपमें। अन्त में, यह प्रेम, यही जो लौ, यही लहर है, यह भी विलीन हो जाती है। इसमें आप स्वतन्त्र होते हैं, यदि आप चाहते हैं तो कभी भी शरीर को छोड़ सकते हैं।
कई विडियों में मैंने कहा भी है। तो स्वयं की जांच करना है। बहुत लोगों की कुण्डलिनी जागृत हो जाती है और बहुत लोगो कों भ्रम हो जाता है कि मुझे आत्म-साक्षात्कार हो गया है। किन्तु उनके आचरण में कुछ दिखता नहीं है।
इस पृथ्वी पर यदि एक भी बुद्ध पुरुष हो जाए, तो वह लाखों को जागृत करेगा। क्योंकि वह सत्य स्वरूप होता है, सत्य है ना वहाँ पर, सत्य है। मेरा ऐसा कोई सेशन नहीं हुआ है, आज तक कि जिसमें दो-चार लोग जागृत नहीं हुए हां। तभी तो मैं आप लोगों को जोर देकर बोल सकता हूँ। असम से लेकर यहां तक और पूरे भारत में जहां भी मेरे शिविर हुए हैं, कोई ऐसा सेशन ही नहीं हुआ है, जिसमें साधकां की जागृति नहीं हुई हो।
हमारे इंस्टीट्यूट में मैं क्लास लेता था। क्लास में परमात्मा की वाणी ही निकलती है। एक दिन जब क्लास में मुझे कहा गया कि आप ध्यान करवाइए। पहली बार जब हम ध्यान के लिए बैठे थे, ध्यान किया था, तो पहली बार के ध्यान में ही चार लोग जागृत हो गए थे। तेरह से चौदह लोग बैठे थे उस सेशन में। तब मुझे भी समझ नहीं आया कि यह हो क्या रहा है?
किसी आकृति, रोशनी, मूर्ति पर अटकना मतलब मार्ग अवरूद्ध करना-
जागरण की यात्रा में, आगे चलकर सारे देवी-देवताओं, ब्रह्मा-विष्णु-महेश की भी विस्मृति हो जाती है। यदि इस समय आपको कोई लाइट दिखे, कोई विष्णु, कृष्णा, राधा दिखें, तो अपने भीतर यह मत समझ लेना कि हो गया परमात्मा का साक्षात्कार। जगह-जगह लोग इस चक्र में फंसे हुए हैं। बड़े-बड़े लोग वृंदावन में फँसे हुए हैं, राधा देख रहे हैं, विष्णु देख रहे हैं, शंकर देख रहे हैं।
जहाँ भी किसी देवी-देवता के दर्शन की बात हो, उनके साक्षात्कार की बात हो तो समझ जाना कि सब फँसे हुए हैं। ईश्वर ने आपको बुद्धि दी है ना, तो उससे समझना है। आप मुझे बताइए, आप यहां पर बैठे हैं और कृष्ण आ गए, वही कृष्ण जिसकी आप रोज पूजा करते हैं या मान लीजिए शिव ही आ गये, तो आपको क्या लग रहा है कि आपको मुक्ति मिल गई? बल्कि आपके जीवन में और झमेला बढ़ गया! कैसे?
वो आ गए, तो आप तो बहुत मुग्ध हो गये उनको देखकर। अच्छा, वह आ गए और दस दिन निरन्तर आपके साथ में रहें, आप जहां जाएं वहां वे भी साथ जा रहे हैं, ध्यान से समझिएगा, आप खाना खा रहे हैं, वहां भी वह साथ हैं, चौबिस घण्टें यदि कृष्ण या शिव आपके साथ में हैं, जिस रूप में हम उनको साथ चाहते हैं, वे हर जगह आपके साथ-साथ हैं, तो एक दिन आपको भी लगेगा कि ये मुझे कब एकांत में रहने देंगे! ये कब मुझे अकेले रहने देंगे! आपको उनको कहना ही पड़ेगा कि मुझे एक घंटा दिजिएगा ना अकेले रहने के लिए। ऐसा लगता है न, बहुत सारे लोगों के साथ रहते-रहते कि मैं थोड़ा सा एकांत में रहूं।
परमात्मा जो है, वह स्वयं एकांत है और आप भी एकांत ही ढूंढ रहे हो। भीतर से एकांत होना चाहते हैं और वही परम शांति की अवस्था है। वही परम आनंद की अवस्था है। जहां कोई नहीं, किसी के बारे में कोई विचार भी नहीं।
अब अगर राम, कृष्ण आकर, मानो चले भी गए, तो आपका मन चिन्तन में पड़ जायेगा। वो कहां होंगे? क्या कर रहे होंगे? कहां बैठे होंगे? आप फिर से चिंतन करने लग गये?
भीतर से सबकुछ छोड़़ना पड़ता है-
जबकि यह मार्ग, मैं जो मार्ग बताता हूँ, वहाँ आपको सब कुछ छोड़ना है, भीतर से छोड़ना है, बाहर तो वे हैं ही। उनके प्रति आसक्ति से मुक्त होना है। मैं चहाता हूँ कि आपको चिंतन से भी मुक्ति मिले। कुछ पकड़ा हुआ है, चाहें वह भौतिक पदार्थ हो या रिश्ते-नाते, उनके प्रति आसक्ति छोड़ दें, मुक्त हो जाओ। यही है मन की मुक्ति।
जबकि आज लोग सबसे ज्यादा इसी में फंसे हैं। किसी न किसी चीज को पकड़ कर बैठे हैं। कोई न कोई पूजा पाठ, कर्मकाण्ड करते हैं, कोई भगवान की फोटो को लेकर, मूर्ति को लेकर। आप जाकर इनकी चीजों को उलटा-पुल्टा कर दीजिए, विध्न डाल दीजिए, तो वे परेशान हो जायेंगे, गुस्सा हो जाएंगे। तो फिर इतनी पूजा पाठ, कर्मकाण्ड करने के बाद भी उनमें धैर्य, शांति, अक्रोध तो आया ही नहीं। यह उनकी गलती नहीं है, क्योंकि उनको यह पता ही नहीं है कि हम पूजा पाठ क्यों कर रहे हैं। वास्तव में जन्मों-जन्मों से पूजा पाठ कर करके इस जगह पर पहुँचे हैं, तो उनसे यह छूटता नहीं है। लेकिन एक दिन उनको इन सबको छोड़ना पड़ेगा।
मैं बार-बार कहता हूँ, ये सभी साधन हैं, हमें ऊपर ले जाने के लिए। लेकिन यदि जीवन भर इन्हीं में अटके रहे तो फिर आगे की यात्रा कब होगी। हमें उस परम तत्व, आत्म तत्व को जानना है। वहां पहुंचने के बाद ऐसी दशा आ जाती है कि कोई डिस्टर्ब कर रहा है, अशांत और परेशान कर रहा है, तो भी इसका कोई प्रभाव न पड़ता है।
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